...जाते-जाते देश भर में अलख जगा गई 'दामिनी'
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...जाते-जाते देश भर में अलख जगा गई 'दामिनी'

देश की बहादुर बेटी `दामिनी` अब नहीं रही। आखिर क्‍या कसूर था उसका। क्या उसे जीने का हक नहीं था। दरिंदगी की शिकार दामिनी ने आखिर क्या गुनाह किया था, जो हैवानों ने उसे इतनी बड़ी सजा दे दी। सजा भी ऐसी कि जिंदगी ही छीन ली, जबकि उसके अंदर जीने की भरपूर चाहत थी। इसी चाहत और जिंदादिली की बदौलत वह अपने परिवार के लिए उम्मीदों की नई किरण थी।

बिमल कुमार
देश की बहादुर बेटी `दामिनी` अब नहीं रही। आखिर क्‍या कसूर था उसका। क्या उसे जीने का हक नहीं था। दरिंदगी की शिकार दामिनी ने आखिर क्या गुनाह किया था, जो हैवानों ने उसे इतनी बड़ी सजा दे दी। सजा भी ऐसी कि जिंदगी ही छीन ली, जबकि उसके अंदर जीने की भरपूर चाहत थी। इसी चाहत और जिंदादिली की बदौलत वह अपने परिवार के लिए उम्मीदों की नई किरण थी।
उसके परिवार के लिए उम्मीदें तो धूमिल हो गई पर इस दुनिया से जाते-जाते भी उसने देश, समाज, मानवता के लिए उम्मीद की एक ऐसी अलख जगा दी जो शायद ही कभी बुझे। इसी अलख के बीच जहान को रौशन करने के लिए आज पूरा देश एक साथ उठ खड़ा हुआ है ताकि फिर किसी दामिनी के साथ ऐसी दरिंदगी न हो। इंकलाब करते हुए हर देशवासी बस इंसाफ मांग रहा है। इंसाफ न सिर्फ दामिनी के लिए बल्कि करोड़ों और `दामिनी` के लिए ताकि उसकी अस्मिता पर कोई आंच न आए।
इंसाफ मिला तो वह न केवल दामिनी के लिए होगा बल्कि देश की सभी बहू-बेटियों के लिए भी होगा। आए दिन हैवान महिलाओं की अस्मिता को तार-तार कर रहे हैं और सरकारें फिर भी सोई हुई है। आज दामिनी का हमारे बीच न होना मानवता, इंसानियत के मुंह पर ऐसा तमाचा है, जिसकी टीस चिर काल तक बनी रहेगी। उसकी मौत से हर कोई दुखी, स्‍तब्‍ध और गहरे शोक में है। हर कोई कानून और सामाजिक बदलाव के साथ लोगों को जगाने का आह्वान भी कर रहा है। हर तरफ यही आवाज उठ रही है कि इस बहादुर बेटी की मौत बेकार नहीं जानी चाहिए। सरकार को इस घटना से सबक लेते हुए कानून में बदलाव कर उसे इतना कठोर बनाना चाहिए कि कोई भी दरिंदा ऐसा जुर्म करने से पहले सौ बार सोचे। सजा ऐसी हो कि रुह कांप उठे।
देश में बड़े पैमाने पर लोग बदलाव के लिए जागे हैं। इस बदलाव में जिंदगी जीने का सवाल जो जुड़ा है। जब बहू-बेटियां ही सुरक्षित नहीं होंगी तो जिंदगी के क्‍या मायने रह जाएंगे। देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में लोगों की यही मांग है कि अब बस और नहीं.....। हमें केवल इंसाफ चाहिए। आखिर अस्मिता का जो सवाल उठ खड़ा हुआ है।
दामिनी जब तक जीवित रही, बहादुरी से दुनिया का सामना किया। अपने अंत काल में भी उसने इसी बहादुरी का परिचय दिया। उसने जिस कदर संघर्ष किया, उससे हर लड़की को अपने अधिकारों के लिए लड़ने का साहस मिला। अपने घर पर बच्‍चों को पढ़ाते हुए भी हमेशा वह खुशमिजाज रहती थी। संघर्ष के दिनों भी कभी उसके चेहरे पर शिकन नहीं आती थी। दामिनी अपने अंतिम समय में भी जीवन और सम्मान के लिए लड़ी। सही मायनों में वह सच्ची नायिका थी और भारतीय युवाओं एवं महिलाओं के लिए उत्कृष्टता का प्रतीक है।
दुष्‍कर्म सरीखे जघन्य अपराध को अंजाम देने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सभी कदम जल्‍द उठाए जाएं ताकि फिर कोई ऐसी अकल्‍पनीय एवं दर्दनाक घटना का शिकार न हो पाएं। उसकी याद में सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि इस भयावह हादसे को लेकर उपजी भावनाएं और ऊर्जा जाया नहीं जाना चाहिए। दोषियों को जल्द और कठोर सजा के साथ ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़ा कानून बनाए जाए ताकि देश की इस ‘प्यारी बेटी’ की लड़ाई बेकार नहीं जाए।
पूरे देश की आंखें उस समय नम हो गई जब हैवानियत की शिकार दामिनी हमारे बीच से रुखसत हो गई। दामिनी की मौत के बाद पूरा देश सदमे में है। इस जघन्य घटना ने देशवासियों में ऐसा आक्रोश भर दिया कि वे इंसाफ मांगने सड़कों पर निकल आए। सभी की एकसुर से मांग है कि दोषियों को कठोरतम दंड मिलना चाहिए। महिलाओं की आजादी, बराबरी व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी और प्रशासनिक उपायों को और मजबूत बनाया जाना चाहिए। दामिनी के साथ जो कुछ हुआ इससे क्रूर और बर्बर व्यवहार और क्या हो सकता है। उसकी मौत ने देश की अंतर आत्मा को झकझोर कर रख दिया। देश के बेटियों की सुरक्षा आज सबसे बड़ा कर्तव्‍य होना चाहिए।
सरकार दुष्‍कर्म के खिलाफ न सिर्फ कठोर कानून बनाए बल्कि पुलिस सुधारों सहित सभी आवश्यक कदम शीघ्र उठाए। दुष्‍कर्म से जुड़े कानून में तत्‍काल बदलाव लाकर ऐसी घटनओं पर तुरंत लगाम लगनी चाहिए। एक बात और महत्‍वपूर्ण है कि हमें कुछ ऐसे कदम भी उठाने चाहिए ताकि कुत्सित मानिसकता वाले सोच में भी बदलाव लाया जा सके। यह विदित है कि कोई भी कर्म सोच पर निर्भर करती है। इसलिए सोच में बदलाव जरूरी है। दिल्‍ली में हुई इस दरिंदगी से कई सवाल उपजे हैं। इनमें से एक अहम है पुलिस का रवैया। ऐसे मामलों में कार्रवाई के नाम पर महज खानापूर्ति बिल्‍कुल नही होनी चाहिए। यदि पुलिस अपनी जिम्मेदारी से बचती है तो उनके खिलाफ भी कड़े कदम उठाए जाने जरूरी हैं। क्‍योंकि देश अब और लापरवाही बर्दाश्‍त करने की स्थिति में नहीं है। इसी लापरवाही का परिणाम है कि आए दिन कहीं न कहीं किसी महिला, बहू, बेटी की आबरू लुट रही है।
दामिनी की मौत के दंश ने देश, समाज की अंतर आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। यदि ऐसे दोषियों को शीघ्र सजा नहीं मिली तो उसकी शहादत बेकार चली जाएगी। यह दामिनी के ही बलिदान का परिणाम है कि दो सप्ताह के भीतर इस दिशा में सुधार के कुछ कदम दिखाई पड़ने लगे। होना तो यह चाहिए कि दुष्‍कर्म के मामले को कानून के दायरे में लाकर शीघ्र न्‍याय मिले। फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन से कुछ उम्‍मीदें तो जरूर बंधी हैं।
हरियाणा, राजस्थान के स्‍कूलों में ड्रॉप बॉक्स लगवाए गए, जहां छात्राएं अपनी शिकायत डाल सकेंगी और पुलिस इसके आधार पर कार्रवाई करेगी। पंजाब में नाइट पुलिस दस्ता बना, जिसमें महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया जाएगा। दिल्ली के सभी थानों में एक महिला पुलिस अधिकारी की तैनाती की बात की गई। वहीं, दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर हेल्पवलाइन नंबर की शुरुआत की गई। ऐसे पहले तो पहले ही होने चाहिए थे, लेकिन इस पर अब भ पूरी तरह अमल हुआ तभी महिलाओं को उनका पूरा सम्‍मान मिल सकेगा।
दामिनी ने एक पखवाड़े तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करने के बाद सिंगापुर में अंतिम सांस ली। उसके बाद देश भर में आक्रोश का ऐसा गुबार उठा कि दोषियों को कठोर सजा और पीडि़ता को इंसाफ को लेकर पूरा देश एकजुट हो गया और देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में विरोध प्रदर्शन हुए। महिला समूहों, युवा संगठनों और अन्य संस्थाओं ने विरोध प्रदर्शन कर सरकार को इस जघन्य कांड में जल्द कदम उठाने के लिए मजबूर किया। इस घटना से मर्मांहत लोग आर-पार की लड़ाई करने की ठान बैठे। इसी का नतीजा रहा कि सत्‍ता और शासन को भी सोचने को मजबूर कर दिया। देश और समाज में दुष्कार्म जैसी घटनाओं का जारी रहना शर्मनाक है।
किसी भी सभ्य समाज के लिए महिलाओं की सुरक्षा एक अनिवार्य शर्त होनी चाहिए। महिलओं के लिए समानता और आदर निहायत जरूरी है। तभी सच्चे मायने में समाज का विकास हो पाएगा। और तब ही हम सुरक्षित भविष्य की कामना कर सकते हैं। चिंतन और विश्लेषण का यह ऐसा समय है जब हम अपना दिल टटोलें और संकल्‍प लें कि अब और ऐसी जघन्‍य वारदात को सहन नहीं करेंगे। वहीं, हर वो धड़ा दंड का भागी है, जिसने ऐसी मानसिकता को बनाया कि पुरूष महिलाओं को अपनी संपत्ति मानकर चलता है।
ऐसी घृणित घटना को सामाजिक जागृति और कठोर सजा के जरिए रोका जा सकता है। हालांकि बहादुर बेटी दामिनी अब एक नाम बनकर रह गई। शारीरिक रूप से हमारे बीच तो वह नहीं रही लेकिन उसकी आत्मा देशवासियों के दिलों में हमेशा मौजूद रहेगी। यदि हम दामिनी को भूल जाएंगे तो उसके साथ यह सबसे बड़ा विश्वासघात होगा। अब देश और दुनिया को महिलाओं के अधिकारों और उनकी गरिमा के प्रति जागना ही होगा।
यह भी प्रश्‍न उठना लाजिमी है कि क्या एक देश को जगाने के लिए हमेशा किसी निर्दोष की मौत जरूरी है। यह निर्भय दामिनी की मौत नहीं बल्कि यह हमारे देश में मानवता की मौत है। सरकार को अब गहरी नींद से जागना चाहिए और इस बर्बर अपराध के दोषियों को ऐसी सजा देनी चाहिए, जिससे हैवान ही नहीं बल्कि ऐसा करने की सोचने वालों का भी रुह कांप उठे। दामिनी जाते-जाते देश को जगाने का एक माध्यम बन गई, पर हम उसकी कुर्बानी को दिल में सदा संजोये रखेंगे और उसकी आत्मिक शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहेंगे।

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