दोहा में ठोस निर्णय न होने से जलवायु कार्यकर्ता नाराज
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दोहा में ठोस निर्णय न होने से जलवायु कार्यकर्ता नाराज

दोहा में क्योटो प्रोटोकॉल को वर्ष 2020 तक बढ़ाने के संबंध में अंतिम समय में हुए निर्णय ने वार्ताकारों को कुछ राहत पहुंचायी है । दूसरी ओर वार्ता के दौरान ग्लोबल वार्मिंग के भयावह प्रभावों से पृथ्वी को बचाने के लिए ठोस कार्रवाई करने का अवसर गंवा देने पर जलवायु कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं ।

दोहा : दोहा में क्योटो प्रोटोकॉल को वर्ष 2020 तक बढ़ाने के संबंध में अंतिम समय में हुए निर्णय ने वार्ताकारों को कुछ राहत पहुंचायी है । दूसरी ओर वार्ता के दौरान ग्लोबल वार्मिंग के भयावह प्रभावों से पृथ्वी को बचाने के लिए ठोस कार्रवाई करने का अवसर गंवा देने पर जलवायु कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं ।
पूरे एक दिन चली इस मैराथन वार्ता के दौरान करीब 200 देश कल रात एक समझौता किया जिसमें ऐतिहासिक क्योटो प्रोटोकॉल को अगले आठ वषरें के लिए बढ़ाकर उसकी अवधि वर्ष 2020 तक कर दी गई है । हालांकि इस विस्तारित अवधि के लिए उत्सर्जन कम करने के प्रति कोई नयी प्रतिबद्धता लागू नहीं की गई है ।
उत्सर्जन को कम करने के लिए जरूरी बदलाव करने के लिए गरीब देशों को दीर्धावधिक वित्तपोषण के तरीकों पर ठोस निर्णय लेने के फैसले को उन्होंने अगले एक वर्ष तक के लिए टाल दिया । इसबीच उन्होंने जलवायु परिवर्तन के गोचर प्रभावों से निपटने के लिए अनुकूलन युक्तियों को लागू करने का भी निर्णय लिया ।
अमेरिका के पूर्वी तट को पूरी तरह बर्बाद करने वाले तूफान सैंडी और हाल ही में फिलीपीन में भयंकर आफत मचाने वाले तूफान भोपा की पृष्ठभूमि में सीओपी देशों को तत्काल उत्सर्जन को कम करके ग्रह को बचाने के लिए कोई भी प्रत्यक्ष कार्रवाई करने को तैयार नहीं कर सका ।
काफी कहासुनी, रूस के विरोध, अमेरिकी रूकावटों और मेजबान कतर की ओर से बार-बार वार्ता को विफल होने से रोकने के लिए लगाई गयी गुहारों के बाद जाकर क्योटो प्रोटोकॉल पर निर्णय हुआ ।
पूरी दुनिया के 700 गैर सरकारी संस्थाओं के समूह ‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (सीएएन)’ ने कहा कि दोहा वार्ता कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाने में असफल रहा है । साथ ही वह गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर के वित्तपोषण के लिए निश्चित कार्ययोजना बनाने में असफल रही है । ग्रीनपीस इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक कुमी नायडू ने कहा, ‘‘दो सप्ताह की वार्ता ने कोई रास्ता तैयार नहीं किया है और नेताओं को निधि (धन), लक्ष्यों और प्रभावी कार्रवाई के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर सहमति दर्शाने की आवश्यकता है ।’’ अन्य ने भी अमेरिका की ओर निशाना साधते हुए विकसित देशों पर ग्रह को बचाने की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने और जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम जिम्मेदार गरीब देशों को इस संबंध में हो रहे बदलावों के कारण बढ़ रहे खर्च से निपटने के लिए मदद करने में असफल रहने का आरोप लगाया ।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख तस्नीम एस्सोप ने कहा कि दोहा से आशा थी कि वह वर्ष 2015 तक एक प्रतिबद्धता और लक्ष्य तय करेगा और इसके लिए विश्वास को फिर से बनाने और समानता पर बल देने की जरूरत थी ।
एस्सोप ने कहा, ‘‘इन वार्ताओं ने जलवायु को विफल कर दिया है और विकासशील देशों को हरा दिया... दोहा के निर्णय में उत्सर्जन संबंधी कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है, इस संबंध में वित्तपोषण पर भी कोई निर्णय नहीं किया गया है और इसने समानता पर कोई कदम नहीं उठाया ।’’ कार्यकर्ताओं ने कहा कि वार्ता से बहुत ही अस्पष्ट सा नजीता निकला है जिसमें उत्सर्जन के लक्ष्यों को बढ़ाने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होगी ।
जी-77 और बेसिक देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) ने समानता और सीबीडीआर समेत सम्मेलन के सिद्धांतों को लागू करने की पूरजोर कोशिश की । यह सिद्धांत वर्ष 2020 के बाद के समझौते में भी लागू होंगे । विकासशील देशों को उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता के जद में लाने के बावजूद ये सिद्धांत बने रहेंगे । इससे इंकार करते हुए अमेरिका ने कहा कि वह भविष्य में इस वार्ता का पक्षकार नहीं बनने के अधिकारों को सुरक्षित रखता है ।
दोहा जलवायु वार्ता के दौरान अपनी भूमिका के लिए गैर सरकारी संगठनों की आचोलना झेल रहे अमेरिका के मुख्य वार्ताकार टोड स्टेर्न का कहना है कि सीबीडीआर के सिद्धांतों को ‘उभरती परिस्थितियों’ का समाधान करने की भी जरूरत है ।
उन्होंने कहा, ‘‘डर्बन में हमने कहा था कि, अगर हम सीबीडीआर के साथ जाते हैं तो उसमें उभरती परिस्थितियों को शामिल करने की जरूरत है और उसे सीबीडीआर 1992 के बावजूद आप जिस वक्त में हों फिर चाहे वह 2012 हो या 2020 उसे शामिल करना चाहिए । हमने कहा था कि सीबीडीआर को शामिल करने से हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उभरती हुई परिस्थितियों के साथ ।’’ टोड ने कहा, ‘‘इस वर्ष समानता और सीबीडीआर को नयी दुनिया में कैसे समझा जाए इस संबंध में गहन और गंभीर वार्ता के लिए समय और स्थान होना चाहिए और हम इसके लिए बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं ।’’ भारत ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि भविष्य में वार्ता अगर सम्मेलन के सिद्धांतों के आधार पर नहीं हुई तो बातचीत मुश्किल होगी ।
भारत की मुख्य वार्ताकार मीरा महर्षि ने कहा, ‘‘भविष्य की वार्ता समानता के नींव पर आधारित होगी । हम दस्तावेज के सभी भागों पर सहमत नहीं हैं । कुछ हिस्सों में बहुत ज्यादा समस्याएं हैं ।’’ (एजेंसी)

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