संगीत, सुकून और आपकी सेहत

संगीत की न तो कोई परिभाषा होती है, न ही इसे सीमा में बांधा जा सकता है और न ही यह अपने पराये का भेद जानता है।

नई दिल्ली: संगीत की न तो कोई परिभाषा होती है, न ही इसे सीमा में बांधा जा सकता है और न ही यह अपने पराये का भेद जानता है। शायद यही वजह है कि दुनिया ने हमेशा ही हर तरह के संगीत को सर आंखों पर लिया और इसकी स्वर लहरियों का करिश्मा भी तब तक जारी रहेगा जब तक यह दुनिया रहेगी।
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मनोचिकित्सक डा स्मिता देशपांडे कहती हैं कि संगीत इलाज करने वाली दवा नहीं है लेकिन यह कई मानसिक समस्याओं से उबरने में कारगर हो सकता है। संगीत की स्वर लहरियां अवसादग्रस्त व्यक्ति को सुकून दे सकती हैं और उसका ध्यान अन्य बातों की ओर लगाने में मददगार हो सकती हैं।
राजधानी के एक पॉश इलाके में आर्ट ऑफ लीविंग की कक्षाएं चलाने वाली माया रवीन्द्रनाथ कहती हैं ‘संगीत कोई जादू नहीं है लेकिन व्यवहारिक रूप में देखें तो यह जादू से भी कहीं बढ़ कर है। मगर यह जादू तब ही काम करेगा जब व्यक्ति खुद को इसमें डुबोने के लिए तैयार हो। बेमन से संगीत सुनने पर यह कानफोड़ू महसूस होगा।’

कभी अच्छा खासा सामान्य जीवन बिता रहे छत्तीसगढ़ के बिलासपुर निवासी बंसत साहू की दुनिया अब बिस्तर पर सिमट चुकी है क्योंकि एक हादसे ने उन्हें पहले विकलांग बनाया और फिर लकवाग्रस्त कर दिया। लेकिन बिस्तर पर पड़े पड़े संगीत की स्वर लहरियां सुनते बसंत ने पहले तो धीरे धीरे अपनी उंगलियां हिलानी शुरू की और फिर उन उंगलियों में ब्रश बांध कर पेन्टिंग बनाने लगे।
पूरे छत्तीसगढ़ में अपनी पेन्टिंग की प्रदर्शनी लगा चुके और सराहना बटोर चुके बसंत बेहद धीरे और अस्पष्ट शब्दों में बोलते हैं। उनकी मां कमला साहू ने बताया ‘बसंत दुर्घटना के बाद पूरी तरह हताश हो चुके थे क्योंकि उन्हें पता था कि अब उन्हें हमेशा दूसरों की मदद पर निर्भर रहना होगा। बचपन में बसंत बांसुरी बजाते थे। हादसे के बाद उन्हें बहलाने के लिए हम अक्सर उन्हें संगीत सुनाते थे। चाहे वह भजन हों, या फिल्मी संगीत और धीरे धीरे उनका मन लगने लगा। उनकी उंगलियों में हरकत शुरू हुई और उन्होंने बहुत मुश्किल से समझाया कि उसमें ब्रश बांध दें। पहले आड़ी तिरछी लकीरें और अब उन्होंने जीने की राह खोज ली है।’ (एजेंसी)

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