`गांधी बिफोर इंडिया` में गांधी, जिन्ना पर चौंकाने वाला तथ्य

इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा का विचार है कि ऐसा संभव है कि भारत और पाकिस्तान के विभाजन से 50 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना ने दक्षिण अफ्रीका में ही कानूनी साझीदार बनना लगभग तय कर लिया था।

नई दिल्ली : जाने माने इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा का विचार है कि ऐसा संभव है कि भारत और पाकिस्तान के विभाजन से 50 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना ने संभवत: दक्षिण अफ्रीका में ही कानूनी साझीदार बनना लगभग तय कर लिया था।
गुहा ने उपलब्ध साहित्य और अभिलेखीय रिकॉर्ड के आधार पर यह नतीजा निकाला है कि ऐसा संभव हो सकता है।
गुहा ने कल शाम यहां ‘गांधी बिफोर इंडिया’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। इस पुस्तक को पेंगुइन इंडिया ने प्रकाशित किया था।
उन्होंने कहा, ‘अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में एक अभिलेख पुस्तिका में गांधी को भेजे गए पत्रों का रिकॉर्ड रखा जाता है। इस पुस्तिका में एम ए जिन्ना के दो पत्र हैं जो कि 21 जनवरी 1897 और 23 मार्च 1897 को लिखे गए थे।’’ हालांकि इन पत्रों की विषय वस्तु उपलब्ध नहीं है लेकिन गुहा ने कहा कि उन्होंने उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर यह ‘विलक्षण जानकारी’ एकत्र की।
जिन्ना का 1897 में लंदन से लौटना, उनका अपने गृहनगर कराची जाना और खुद को वकील के तौर पर स्थापित करने के लिए बंबई में उनका संघर्ष ज्ञात तथ्य हैं। गुहा ने इसके लिए गांधी और भारत स्थित एक वकील कलिहार खान के बीच हुए पत्र व्यवहार के हवाल से कहा, ‘जिन्ना 1897 में बंबई में एक ऐसे वकील थे जिसके पास काम नहीं था। गांधी भी इसी शहर में पांच वर्ष पहले ऐसे ही वकील थे। गांधी अपने लिए एक साझीदार ढूंढ रहे थे और जिन्ना के पास काम नहीं था। जिन्ना गुजराती थे और गांधी भी गुजराती थे। दक्षिण अफ्रीका में हिंदू और मुसलमान दोनों गुजराती थे।’
उन्होंने सवाल उठाया, ‘क्या ऐसा हो सकता था कि भारत और पाकिस्तान के विभाजन से 50 वर्ष पूर्व गांधी और जिन्ना ने दक्षिण अफ्रीका में लगभग कानूनी साझेदारी कर ली थी?’ गुहा ने दावा किया कि हाल में जारी इस पुस्तक के जरिए पहली बार महात्मा गांधी के जीवन के महत्वपूर्ण रचनात्मक वर्षों की पूरी जानकारी दी गई है। उन्होंने कहा, ‘गांधी के सबसे मौलिक, अकाट्य और अब भी प्रासंगिक विचारों में से धार्मिक बहुलवाद का विचार है। धार्मिल बहुलवाद पर जोर देना आज भी भारत के लिए निश्चित ही जरूरी है।’
गुहा ने कहा, ‘गांधी को पूरी तरह से समझने के लिए उन्हें हर दृष्टिकोण से देखने की जरूरत हैं। उन्हें केवल उनके, उनके दोस्तों और अनुयायियों के नज़रिए से ही नहीं अपितु उनके दुश्मनों और विरोधियों के नज़रिए से भी देखने की जरूरत है।’ लेखक ने अपनी किताब में मोहनदास कर्मचंद गांधी को बनाने में दक्षिण अफ्रीका की महत्ता को पहचाना है।
गुहा ने कहा, ‘यही दक्षिण अफ्रीका वह जगह थी जहां वह सच्चे भारतीय बने। यहीं वह महिलाओं और पुरषों के समान अधिकारों के प्रति अधिक संवेदनशील बने, यहीं वह एक प्रारंभिक पर्यावरणविद् बने, यहीं वह विचारक बने और ‘सत्याग्रह’ करने वाले बने और यहीं उन्होंने दुर्लभ नैतिक साहस हासिल किया।’ (एजेंसी)

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