उत्तराखंड: मृतकों की संख्या अनिश्चित, 3000 अभी भी लापता

उत्तराखंड में आई आपदा में कितने लोग मारे गए इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। रविवार को राज्य के एक मंत्री ने मारे गए लोगों की संख्या 10,000 के पार जाने की आशंका को खारिज नहीं किया और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने लापता लोगों की संख्या 3000 बताई।

देहरादून/हरिद्वार : उत्तराखंड में आई आपदा में कितने लोग मारे गए इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। रविवार को राज्य के एक मंत्री ने मारे गए लोगों की संख्या 10,000 के पार जाने की आशंका को खारिज नहीं किया और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने लापता लोगों की संख्या 3000 बताई।
उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री सुरिंदर सिंह नेगी ने विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के शनिवार को किए गए दावे को खारिज नहीं किया। कुंजवाल ने आपदा में मारे गए लोगों की संख्या 10,000 के पार जाने की आशंका जताई थी।
नेगी ने कहा, ‘उन्होंने (कुंजवाल) एक अनुमानित संख्या दी है। इस समय यह एक अनुमान है। संख्या इससे कम हो सकती है या इससे बढ़ सकती है। राज्य को पूरी तरह से तबाह करने वाली आपदा में मारे गए लोगों की सही संख्या बताना जल्दबाजी होगी।’
उन्होंने कहा यह आकलन सरकारी कर्मचारियों और राहत दल द्वारा बचाए गए लोगों की संख्या पर आधारित है। इस बीच बहुगुणा ने सैलाब में लापता लोगों की संख्या 3000 बताई है। बहुगुणा ने कहा, ‘राज्य में और दूसरी जगहों पर गुमशुदगी की दर्ज कराई गई रिपोर्टों को ध्यान में रखते हुए मुझे बताया गया है कि जो लोग लापता हैं उनकी संख्या करीब 3000 है।’
उन्होंने कहा कि सभी लापता लोगों के करीबियों को मामले की रिपोर्ट अधिकारियों को देने का निर्देश दिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘लापता लोगों के आश्रित यदि हमें शपथपत्र देंगे तो हम उन्हें मुआवजे की पूरी राशि देंगे।’
उत्तराखंड में 14 जून से तीन दिनों तक भारी बारिश और बादल फटने से बाढ़ आ गई और भूस्खलन हुए जिससे सैंकड़ों लोगों की मौत हो गई, जबकि सैंकड़ों अब तक लापता हैं। प्रभावित इलाकों से अभी तक लगभग 100,000 से ज्यादा लोगों को निकाला जा चुका है, जबकि सैंकड़ों अभी भी फंसे हुए हैं।
जहां 300 से 400 लोग अभी भी बद्रीनाथ इलाके में फंसे हुए हैं और राहत की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वहीं सैंकड़ों भारवाहक और 2000 से ज्यादा टट्ट का कहीं कोई अतापता नहीं है।
एनजीओ ने दावा किया है कि इनमें कुछ सैलाब में बह गए या फिर फंसे हुए हैं जिन्हें अविलंब निकाले जाने की जरूरत है नहीं तो वे भूख से मर जाएंगे। केदारनाथ में 5 से 10 फीट नीचे कीचड़ और मलबे में कई शव दबे होने से महामारी फैलने का खतरा मंडरा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्री नेगी ने कहा, ‘हमारी पहली प्राथमिकता शवों को खोद कर निकालना है। दूसरी प्राथमिकता केदारनाथ घाटी के संपूर्ण मार्ग को बहाल करना है। तीसरी प्राथमिकता यह देखना है कि कोई महामारी नहीं फैले। हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। अभी तक डर की कोई बात नहीं है।’
प्रक्रिया को शीघ्र पूरी करने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से जमीन खोदने वाली मशीनें मांगी है। इसके अलावा राज्य सरकार ने आपदा में मारे गए पशुओं के अवशेष निपटाने के लिए केंद्र से 100 टन ब्लीचिंग पाउडर की भी मांग की है।
नेगी ने कहा, ‘मनुष्यों की मदद से शवों को खोदकर निकालना संभव नहीं है। हमने केंद्र सरकार से ऐसी मशीनें भेजने के लिए कहा है। मशीनें वायुमार्ग से गिराई जा सकती हैं और उनकी मदद से हम केदारनाथ घाटी में खुदाई कर शवों को निकालने में समर्थ हो सकेंगे।’
देश-विदेश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र केदारनाथ समुद्र तल से 3586 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे हिमालय की गोद में स्थित है। यहां तक 14 किलोमीटर पहाड़ी रास्ता पार कर पहुंचा जा सकता है।
इस बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गैरकानूनी निर्माण रोकने और उत्तराखंड जैसी आपदा से बचने के लिए केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय पर्यावरण नीति घोषित करने की मांग की है। उन्होंने उत्तराखंड की आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की भी मांग की है।
अपने राज्य के लोगों से मुलाकात करने हरिद्वार पहुंचे चौहान ने कहा, ‘जब आप प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करेंगे तो प्रकृति अपना कहर आप पर ढाएगी।’ उत्तराखंड में नदियों के किनारे खड़े हो रहे भवनों पर उन्होंने कहा, ‘गैरकानूनी निर्माण और भ्रष्टाचार साथ-साथ चलते हैं।’ (एजेंसी)

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