खूब खाएं फल-सब्जियां, दूर भगाएं पैनक्रियाज कैंसर

डाक्टरों का कहना है कि पैनक्रियाज यानी अग्नाशय का कैंसर बहुत दुर्लभ ही होता है लेकिन इसका पता काफी समय बाद चल पाता है और तब तक यह बेकाबू हो चुका होता है । इसलिए यह कैंसर हो ही नहीं, इसके लिए लोगों को धूम्रपान से तौबा करने के साथ ही खूब मात्रा में फल और सब्जियों को अपने खानपान का हिस्सा बनाना चाहिए।

नई दिल्ली : डाक्टरों का कहना है कि पैनक्रियाज यानी अग्नाशय का कैंसर बहुत दुर्लभ ही होता है लेकिन इसका पता काफी समय बाद चल पाता है और तब तक यह बेकाबू हो चुका होता है । इसलिए यह कैंसर हो ही नहीं, इसके लिए लोगों को धूम्रपान से तौबा करने के साथ ही खूब मात्रा में फल और सब्जियों को अपने खानपान का हिस्सा बनाना चाहिए।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में डा. बी आर अम्बेडकर इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर अस्पताल में प्रोफेसर और क्लीनिकल ओनकोलोजिस्ट डा. पी के जुल्का ने बताया कि पेनक्रियाज यानी अग्नाशय का कैंसर विभिन्न प्रकार के कैंसर में सर्वाधिक भयावह माना जाता है क्योंकि शरीर में जब तक इसका पता चल पाता है, तब यह अपनी पकड़ काफी मजबूत कर चुका होता है ।
उन्होंने बताया कि तंबाकू और धूम्रपान इस कैंसर को न्यौता देने के प्रमुख कारण हैं । इसलिए लोगों में धूम्रपान के खिलाफ जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है ।
चिकित्सकों का कहना है कि पेनक्रियाज कैंसर में पैनक्रियाज के मुहाने पर ट्यूमर होता है जिससे पैनक्रिटिक डक्ट में अवरोध पैदा होता है और पीलिया हो जाता है । ट्यूमर का आकार बढ़ने पर यह समीप की तंत्रिकाओं और अंतड़ियों पर दबाव डालता है । तंत्रिकाओं पर दबाव के कारण पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है और अंतड़ियों पर दबाव से भूख न लगने की शिकायत पैदा होती है । इससे न केवल वजन कम होता है बल्कि उल्टी और दस्त जैसी शिकायतें भी सामने आती हैं ।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, पैनक्रियाज कैंसर के मरीजों के जिंदा रहने की संभावना नहीं के बराबर होती है और बीमारी का पता लगने के बाद मरीज छह महीने से लेकर अधिकतम पांच साल तक ही जीवित रह पाता है ।
अमेरिका में कैंसर से होने वाली मौतों में पैनक्रियाज कैंसर का चौथा नंबर है । गौरतलब है कि एप्पल कंपनी के सह संस्थापक स्टीव जाब्स की असमय मृत्यु पैनक्रियाज के कैंसर के चलते ही हुई थी । पश्चिमी देशों में पैनक्रियाज कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है लेकिन भारत में भी अब यह बीमारी पैर पसारने लगी है और मिजोरम में इसके सर्वाधिक मामले सामने आ रहे हैं ।
सर गंगाराम अस्पताल के मेडिकल ओनकोलोजी विभाग के अध्यक्ष डा. श्याम अग्रवाल कहते हैं कि पैनक्रियाज कैंसर काफी आक्रामक होता है और तेजी से बढ़ता है । इसका पता चलने के पांच साल के भीतर भीतर मरीज की मौत हो जाती है ।
प्रोफेसर जुल्का ने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए कोई विशेष फार्मूला नहीं है लेकिन अभी तक कैंसर चिकित्सा जगत में यही माना जाता है कि अत्याधिक धूम्रपान करने और आहार में फलों और सब्जियों का सेवन नहीं करने वालों के इस बीमारी की चपेट में आने की अधिक आशंका रहती है । इसलिए बीमारी से बचने के लिए धूम्रपान छोड़ना और शाक सब्जियों एवं फलों का अधिक सेवन करना लाभकारी हो सकता है ।
डा. जुल्का ने बताया कि इस बीमारी के उपचार की कोई एक सीधी विधि नहीं है । कई मामलों में पहले ट्यूमर को ऑपरेशन के जरिए निकाला जाता है और उसके बाद कीमोथरेपी या रेडियोथरेपी दी जाती है लेकिन कई मामलों में पहले कीमोथरेपी और रेडियोथरेपी के जरिए ट्यूमर को छोटा कर उसे सर्जरी से निकाला जाता है । उन्होंने कहा कि इसीलिए यह मरीज दर मरीज निर्भर करता है कि उसकी स्थिति के अनुसार किस प्रकार का इलाज प्रभावी होगा।
उन्होंने बताया कि पैनक्रियाज रीढ़ के हड्डी के सामने और पेट में काफी गहराई में होता है, यही वजह है कि पैनक्रियाज का कैंसर आमतौर पर चुपचाप बढ़ता रहता है और काफी बाद में जाकर इसका पता चलता है । इस बीमारी में शुरूआती लक्षण नदारद रहते हैं या उभरते भी हैं तो अन्य बीमारियों से मिलते जुलते होते हैं ।
वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2002 में सामने आए पैनक्रियाज कैंसर के 2,32,000 मरीजों में से वर्ष 2010 तक 2,27,000 की मौत हो गयी। (एजेंसी)

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