यूएन में नरेंद्र मोदी के दो टूक बोल

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। वैश्विक पटल पर एक बड़ी शख्सियत के रूप में उभर रहे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के इस सबसे बड़े मंच से क्या संदेश देते हैं, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई थीं। मोदी ने अपने 35 मिनट के भाषण में ज्वलंत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करते हुए संयुक्त राष्ट्र को उसकी जिम्मेदारियों का अहसास भी कराया। मोदी ने इस मंच से स्टेट्समैन की तरह दुनिया के साथ संवाद किया।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। वैश्विक पटल पर एक बड़ी शख्सियत के रूप में उभर रहे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के इस सबसे बड़े मंच से क्या संदेश देते हैं, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई थीं। मोदी ने अपने 35 मिनट के भाषण में ज्वलंत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करते हुए संयुक्त राष्ट्र को उसकी जिम्मेदारियों का अहसास भी कराया। मोदी ने इस मंच से स्टेट्समैन की तरह दुनिया के साथ संवाद किया।

मोदी के भाषण में भूख, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, तकनीकी हस्तांतरण और यूएनएससी में सुधार तो रहे ही लेकिन उनका सबसे ज्यादा जोर आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के मुद्दे पर रहा। आतंकवाद की चर्चा करते हुए मोदी ने पाकिस्तान को सीधा और स्पष्ट जवाब दिया कि वह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत के लिए तैयार हैं बशर्ते वह आतंक के साए से निककर वार्ता के लिए शांतिपूर्ण माहौल बनाए। एक दिन पहले पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ की ओर से कश्मीर मसला उठाए जाने के बाद दुनिया भर की नजरें मोदी पर लगी थीं कि आखिर वह नवाज को क्या जवाब देते हैं। नवाज ने कश्मीर में जनमत संग्रह कराए जाने और कश्मीर समस्या का हल संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुरूप करने की मांग की थी। मोदी ने दुनिया के सामने भारत की यह राय एक बार फिर स्पष्ट कर दी कि कश्मीर समस्या का समाधान द्विपक्षीय बातचीत से ही हो सकता है। किसी तीसरे पक्षकार का दखल भारत को मंजूर नहीं है।

आतंकवाद पर बोलते हुए मोदी ने इस समस्या को लेकर गंभीर चिंता प्रकट की और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को उसकी जिम्मेदारियों की याद दिलाई। भारतीय पीएम ने कहा कि पूरी दुनिया इस समस्या से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित है। दुनिया के कई भागों में तनाव एवं संघर्ष का माहौल है। आतंकवाद दिनोंदिन अपने पैर पसारता जा रहा है। मोदी ने कहा कि आतंक की इस वैश्विक समस्या से निपटने के लिए सभी देशों को आगे आना होगा और अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। खासतौर से यूएन को अपने फैसलों में उन देशों की राय भी लेनी चाहिए जो उसके लिए शांति सैनिक उपलब्ध कराते हैं। आतंकवाद की समस्या पर अपनी बात रखते हुए मोदी ने कहा कि कुछ देश आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने के साथ-साथ इसे बढ़ावा दे रहे हैं, यहां भी उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ था।

मोदी ने अपने दृढ़ एवं आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व का आभास यूएन को बखूबी कराया। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी की जो चुनौतियां हैं उनके समाधान के लिए यूएन को ईमानदारी पूर्वक प्रयास करने होंगे। उन्होंने संकेत दिया कि 21वीं सदी की चुनौतियों और आधुनिक जरूरतों को पूरा करने में आज की महासभा सक्षम नहीं है। इसके लिए उन्होंने इस संस्था में सुधार एवं बदलाव को अनिवार्य बताया। खास बात है कि मोदी ने यूएनएससी में सुधार की मांग नहीं की बल्कि इसे अनिवार्य बताया। मोदी का इशारा यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर था कि उनका देश इस दिशा में अब और हीलाहवाली बर्दाश्त नहीं करेगा। मोदी ने यूएन को और अधिक लोकतांत्रिक बनाए जाने के साथ ही इसे 21वीं सदी की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने पर जोर दिया।

यूएन में मोदी अमेरिका को भी आईना दिखाने से नहीं चूके। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के फैसलों के बहाने अमेरिका पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय फैसलों में कुछ देशों की मनमानी और आतंकवाद पर दोहरापन नहीं चलेगा। मोदी ने 'गुड टेररिज्म' और 'बैड टेररिज्म' के जरिए अमेरिका को घेरा।

गौरतलब है कि सीरिया में बशर अल-असद सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विद्रोहियों की ओर से मचाए गए उत्पात एवं रक्तपात को अमेरिका ने 'गुड टेररिज्म' बताते हुए उनकी मदद की और जब यही विद्रोही (आईएस आतंकी) इराक में अमेरिकी नागरिकों को मारने लगे तो अमेरिकी प्रशासन ने उसे 'बैड टेररिज्म' का नाम दे डाला। मोदी ने कहा कि इस तरह की सोच आतंकवाद के खिलाफ हमारी मुहिम को कमजोर और हमारी मंशा पर सवाल खड़े करेगी। मोदी ने समुद्र का जिक्र करते हुए चीन की विस्तारवादी नीति पर भी सवाल खड़े किए। मोदी ने कहा कि जो समुद्र कभी हमें जोड़ता था वह आज संघर्ष को हवा दे रहा है। मोदी का संकेत पूर्वी एवं दक्षिणी चीन सागर में जापान एवं वियतनाम के साथ चीन के विवाद को लेकर था।

कुल मिलाकर मोदी ने शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय माहौल बनाने के लिए दुनिया भर के देशों से यूएन मंच का सदुपयोग करने की अपील की। मोदी ने याद दिलाया कि धरती के कई भागों में भूख और गरीबी है। इसे दूर करने के लिए सभी देशों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। साथ ही जलवायु परिवर्तन एवं तकनीक हस्तांतरण के मसले पर भी भारतीय पीएम रास्ता निकालने की कोशिश करते दिखे।

अपने आक्रामक अंदाज के लिए मशहूर मोदी संयुक्त राष्ट्र में संयत और गंभीर नजर आए। उन्होंने अपनी बात विनम्रता पूर्वक लेकिन दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ रखी। यूएन की उपयोगिता पर सवाल खड़े करने और कुछ देशों का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख किया जाना भले ही संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान को नागवार गुजरा हो, लेकिन बदलते समय में यह जरूरी है कि सबको अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो एक बेहतर दुनिया और बेहतर कल के लिए।

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