फिल्म मर्दानी की समीक्षा : रानी मुखर्जी की मर्दानगी ने सबको बांधा
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फिल्म मर्दानी की समीक्षा : रानी मुखर्जी की मर्दानगी ने सबको बांधा

फिल्म मर्दानी की समीक्षा : रानी मुखर्जी की मर्दानगी ने सबको बांधा

ज़ी मीडिया ब्यूरो

फिल्म मर्दानी दरअसल चोर और पुलिस के बीच का खेल है जिसके बैकड्रॉप में गर्ल चाइल्ड ट्रैफिकिंग को दिखाया गया है। सदियों से चले आ रहे देह व्यापार में बच्चियों को भी धकेल दिया गया है। आंकड़े बताते हैं कि भारत जैसे देश में हर आठ मिनट में एक बच्ची लापता हो जाती है। दुनिया में चाइल्ड सेक्स के अवैध व्यापार का भारत बड़ा केन्द्र माना जाता है। गरीब और अनपढ़ लोगों की बच्चियों को आए दिन उठा लिया जाता है और तथाकथित सभ्रांत और समाज के शक्तिशाली लोग इनका शोषण करते हैं। इन्हीं सब बातों को लेकर फिल्म निर्देशक प्रदीप सरकार ने 'मर्दानी' बनाई है। सरकार आमतौर पर कमर्शियल फॉर्मेट में फिल्म बनाते हैं, लेकिन कहीं न कहीं उसका सामाजिक सरोकार जरूर होता है।

गोपी पुथरन द्वारा लिखी गई कहानी पर बनी फिल्म मर्दानी कुछ उसी तरह का मजा देती है जिस तरह से मंजिल तक पहुंचने से सफर का मजा बढ़ जाता है। किसी अपराधी तक पुलिस किस तरह से पहुंचती है, फिल्म में ये देखना काफी दिलचस्प है। शिवानी रॉय (रानी मुखर्जी) क्राइम ब्रांच में सीनियर इंस्पेक्टर है। अपने पति और भतीजी के साथ वह रहती है। वह काफी निडर है, गालियां भी बकती है और परिवार के मुकाबले काम को कुछ ज्यादा ही प्राथमिकता देती है। सड़क पर फूल बेचने वाली लड़की 'प्यारी' से उसका खास लगाव है। उसे वह अपनी बेटी जैसी मानती है।

'प्यारी' जब उसे तीन-चार दिन दिखाई नहीं देती तो वह खोजबीन शुरू करती है। उसे पता चलता है कि प्यारी का सिर्फ अपहरण ही नहीं हुआ है, बल्कि वह संगठित तरीके से लड़कियों और व्यापार करने वाले गिरोह के जाल में फंस गई है। गिरोह को एक ऐसा इंसान चलाता है जिसके बारे में कोई जानकारी किसी के पास नहीं है। शिवानी उसके खिलाफ लड़ती है और अंत में सफल होती है।

फिल्म की शुरुआत बेहद धीमी है और शुरुआती प्रसंग बेहद बनावटी सा लगता है, लेकिन धीरे-धीरे फिल्म अपनी पकड़ मजबूत करती है और परदे पर चल रहा थ्रिलर अच्छा लगने लगता है। फिल्म की स्क्रिप्ट ऐसी नहीं है जिसे परफेक्ट कहा जाए। फिल्म को वास्तविकता के नजदीक रखने की कोशिश भी की गई है तो कई जगह सिनेमा के नाम पर छूट भी ले ली गई है। खासतौर पर क्लाइमैक्स में रानी को 'हीरो' बनाने का मोह निर्देशक नहीं छोड़ पाए हैं। रानी के हाथ में बंदूक है। सामने विलेन खड़ा है। इसके बावजूद वह बंदूक से गोलियां निकाल फेंकती है और उसकी खूब धुनाई करती है।

अपराधी को फिल्म में बेहद चालाक बताया गया है। वह किसी से भी सीधा संवाद नहीं करता, लेकिन रानी को हमेशा फोन लगाता है। उसे धमकाता है और चुनौती भी देता है। ये बात उसके किरदार से मेल नहीं खाता। चाइल्ड सेक्स के अवैध व्यापार वाला मुद्दा भी फिल्म के बीच में पीछे रह जाता है और चोर-पुलिस का खेल उस पर हावी हो जाता है।

स्क्रिप्ट की इन कमियों को सरकार का कुशल निर्देशन पता नहीं लगने देता है। उन्होंने इसे बेहद रोचक तरीके से पेश किया है जिससे पूरी फिल्म में दर्शक का इंटरेस्ट बना रहता है। गर्ल चाइल्ड ट्रैफिकिंग मुद्दे के गहराई में वे भले ही नहीं गए हो, लेकिन लगातार दर्शकों को वे इस दुनिया का अंधेरा पक्ष दिखाते रहे। उम्दा संवाद और बेहतरीन अभिनय ने उनके काम को आसान कर दिया।

फिल्म की अच्छी बात यह भी है कि बॉलीवुड के तमाम लटके-झटके से उन्होंने दूरी बनाए रखा। बेवजह के हास्य दृश्यों, नाच-गानों को उन्होंने फिल्म में स्थान नहीं दिया। ऐसे हालात फिल्म में बनने ही नहीं दिए गए। फिल्म के एक्शन में अतिरेक नहीं है। एक्शन दृश्यों को लंबा नहीं खींचा गया है और फिल्म के मूड के अनुरूप वास्तविक रखा गया है।

रानी मुखर्जी ने एक इंस्पेक्टर का किरदार पूरे आत्मविश्वास के साथ निभाया है। उनके अभिनय में ठहराव देखने को मिलता है और वे कही भी हड़बड़ी में नहीं दिखाई दी। एक्शन सीन में रानी जरूर कमजोर दिखी क्योंकि जिस तरह की फिटनेस एक इंस्पेक्टर के लिए होना चाहिए वैसी फिटनेस उनमें नजर नहीं आई। विलेन के रूप में ताहिर राज भसीन ने रानी को जबरदस्त टक्कर दी है। फिल्म में वे खून-खराबा करते या चीखते नजर नहीं आते, बावजूद इसके वे अपने अभिनय से खौफ कायम करने में कामयाब रहे।

बैनर : यश राज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : प्रदीप सरकार
कलाकार : रानी मुखर्जी, जीशु सेनगुप्ता, ताहिर राज भसीन

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