कश्मीर: दरगाह अग्निकांड की जांच के आदेश
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कश्मीर: दरगाह अग्निकांड की जांच के आदेश

यहां पीर दस्तगीर साहिब दरगाह सोमवार को आग की चपेट में आ गई। आग से दरगाह को काफी नुकसान पहुंचा है लेकिन 11वीं शताब्दी के मुस्लिम संत दस्तगीर साहिब के अवशेष पूरी तरह से सुरक्षित हैं। राज्य सरकार ने इस घटना के जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

श्रीनगर : यहां पीर दस्तगीर साहिब दरगाह सोमवार को आग की चपेट में आ गई। आग से दरगाह को काफी नुकसान पहुंचा है लेकिन 11वीं शताब्दी के मुस्लिम संत दस्तगीर साहिब के अवशेष पूरी तरह से सुरक्षित हैं। राज्य सरकार ने इस घटना के जांच के आदेश दे दिए गए हैं। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दरगाह में पवित्र अवशेष (संत की दाढ़ी का पवित्र बाल) को एक अग्निरोधी कक्ष में रखा गया था इसलिए वह सुरक्षित हैं।
जम्मू एवं कश्मीर सरकर ने अग्निकांड की जांच के आदेश दे दिए हैं। इस अग्निकांड में लकड़ी की यह दरगाह पूरी तरह खाक हो गई। जल्दबाजी में बुलाए गए एक संवाददाता सम्मेलन में कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री अली मुहम्मद सागर ने कहा कि कश्मीर के डिविजनल उपायुक्त असगर समून आग के कारणा की जांच करेंगे।
सागर ने कहा कि दरगाह के पुनर्निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। अलगववादी हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों गुटों ने इस अग्निकांड पर आश्चर्य प्रकट किया है। राज्यपाल एनएन वोहरा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और नेशनल कांफ्रेंस के संरक्षक फारुख अब्दुल्ला ने भी इस अग्निकांड पर गहरा खेद व्यक्त किया है।
इस बीच करीब 300 साल पुरानी इस दरगाह में आग लगने के बाद श्रीनगर में तनाव की स्थिति बनी हुई है। लकड़ी की यह दरगाह खानयार क्षेत्र में स्थित है। युवाओं के समूहों ने खानयार में पुलिस पर पथराव किया और भीड़ ने एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। सुबह 6.30 बजे लगी इस आग पर काबू पाने के लिए वहां दमकल की दर्जनों गाड़ियां पहुंच गई थीं।
अग्निशमन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि आग लगने के कारणों का पता नहीं चल सका है। मुस्लिम संत शेख अब्दुल कदीर ही पीर दस्तगीर साहिब या गौस-ए-आजम नाम से मशहूर हैं। ग्यारहवीं शताब्दी के इस संत के प्रति कश्मीर के सभी धर्मावलम्बियों की श्रद्धा है। मुसलमान जहां इन्हें संत गौस-ए-आजम कहते हैं, तो हिंदू काहनूव संत कहते हैं। रोचक बात यह है कि यह संत कभी भी कश्मीर नहीं आए थे और 337 साल पहले अफगान गवर्नर अब्दुल्लाह खान उनके पवित्र अवशेष यहां लाए थे। (एजेंसी)

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