छठ के लिए तैयार बिहार
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छठ के लिए तैयार बिहार

छठ जनमानस का लोकपर्व है और बिहार के बाहर तथा राज्य में यह लोगों को एकजुट करने तथा अपनी संस्कृति का दीदार कराने का पर्व है।

पटना : दिवाली की समाप्ति के बाद शरद ऋतु के आगमन की आहट के एहसास के साथ बिहार में कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाए जाने वाले लोकपर्व छठ की रौनक आस पास के परिवेश में दिखने लगती है।

 

बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से छठ का पर्व मनाया जाता है लेकिन बिहार की बात ही कुछ अलग है। तालाब, पोखर, सरोवरों और नदियों पर बने घाटों की साफ सफाई , मौसम के फलों और फसलों के साथ अटूट रिश्ते का यह पर्व प्रकृति प्रेम का प्रतीक है। छठ में सूर्य की उपासना की जाती है जो धरती पर मौजूद प्राणियों और पेड़ पौधों के लिए उर्जा के प्रमुख स्रोत हैं।

 

छठ जनमानस का लोकपर्व है और बिहार के बाहर तथा राज्य में यह लोगों को एकजुट करने तथा अपनी संस्कृति का दीदार कराने का पर्व है। गांव देहात के अलावा शहरों में इस अवसर पर छठ के लोकगीतों की स्वरलहरियां गूंजने लगती हैं।

 

कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी के दिन नियम स्नान आदि से निवृत होकर फलाहार किया जाता है। पंचमी के दिन दिनभर के उपवास के बाद किसी नदी या सरोवर में स्नान करके अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। षष्ठी के दिन उदीयमान सूर्य की उपासना के साथ यह पर्व संपन्न होता है।

 

कई परिवारों में छठ का पर्व पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए मनाया जाता है। बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासियों के लिए यह ‘होमकमिंग’ का समय होता है। छोटे शहर हो या बड़े, सभी स्थानों से बिहार की ओर आने वाले ट्रेनों में भारी भीड़ होती है। छठ का अपना बाजार होता है। सूर्य देव को शाम और प्रात: अघ्र्य देने के लिए जितनी भी वस्तुओं की दरकार होती है वह सहज ही किसी कृषक के घर में उपलब्ध होती है। केला, मूली, नींबू, नारियल, अदरक, गेहूं, ईंख सभी कुछ आसानी से उपलब्ध होने वाले फल और कृषि उत्पाद हैं। किंवदंती है कि सूर्य उपासना का पर्व छठ वैदिक काल से ही चली आ रही परंपरा है जबकि कई लोग इसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के काल से जोड़कर देखते हैं। रामराज्य की स्थापना के दिन से ही कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को पर्व मनाने की शुरूआत हुई है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास और सूर्य आराधना की थी।

 

एक अन्य मान्यता के अनुसार पांडव जब जुए में सबकुछ हार गये थे और जंगल में भटक रहे थे तो कष्ट से छुटकारे के लिए द्रौपदी ने सूर्य उपासना की थी। जिसके बाद पांडवों को खोया हुआ अपना वैभव दुबारा प्राप्त हुआ था।

 

बिहार में छठ को राजकीय पर्व का दर्जा प्राप्त है। राज्य के अलावा जहां जहां काम काज की तलाश में बिहारवासी पहुंचे हैं वहां वहां छठ मनाया जाता है। पटना में 70 से अधिक घाट हैं जहां छठ के आयोजन के लिए वृहद पैमाने पर तैयारियां की जाती है क्योंकि बारिश के मौसम के बाद पानी एकाएक उतरता है। गंगा नदी के किनारे छठ करने का श्रद्धालुओं का उत्साह ही अलग तरह का होता है।

 

वहीं दिल्ली में यह यमुना के तटों पर पूर्वी घाट, वजीराबाद, रामघाट, सूर घाट, रिंग रोड, गीता घाट, नांगलोई में जयविहार, आईपी स्टेट, शालीमार बाग और यमुना घाट पर मनाया जाता है। कानपुर में पनकी पावर हाउस के पास मनाया जाने वाला छठ पर्व काफी विख्यात है। असम में ब्रहमपुत्र के तट के किनारे, कोलकाता और मायानगरी मुंबई में जुहू तट पर छठ मनाने का चलन है। छठ सामाजिक परंपरा के निर्वाह का भी पर्व है। यह सामाजिक ताने बाने को और मजबूत करने वाला तथा भेदभाव को दूर करने वाला पर्व है। समाज के सभी वर्ग के शिल्पकार जैसे कुम्हार, बेंत और बांस का काम करने वालों के बनाये गये सूप, दीये और अन्य मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। समाज के निचले वर्ग के कुछ लोग ढोल आदि बजाते हैं और मेहनताना पाते हैं।

 

प्रकृति के इस पर्व में किसानी जीवन में प्रयुक्त होने वाली सभी वस्तुओं का उपयोग होता है। छठ की पूजा में प्रयुक्त वस्तुएं ऐसी होती है जो एक आम कृषक के घर पर उपलब्ध हो सकती हैं। फलों की महंगाई का ही असर केवल इस पूजा पर पड़ता है। पर्यावरण और प्रकृति के पर्व छठ के बहाने लोग नदी को स्वच्छ रखने का संकल्प लेते हैं और सफाई कराते हैं। (एजेंसी)

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