विनाशकारी अंत की ओर बढ़ रही है धरती
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विनाशकारी अंत की ओर बढ़ रही है धरती

तेजी से बढ़ रही जनसंख्या अब धरती के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने धरती के अंत की ओर बढ़ने की चेतावनी देते हुए कहा है कि वह समय दूर नहीं जब हमें जीवन देने वाले प्राकृतिक संसाधन ही नष्ट हो जाएंगे। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के बढ़ते उपयोग को इसका कारण बताया है। उनका कहना है कि यदि मौजूदा हालात पर अभी काबू नहीं किया गया तो परिस्थितियां बेहद भयावह हो सकती हैं।

वाशिंगटन : तेजी से बढ़ रही जनसंख्या अब धरती के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने धरती के अंत की ओर बढ़ने की चेतावनी देते हुए कहा है कि वह समय दूर नहीं जब हमें जीवन देने वाले प्राकृतिक संसाधन ही नष्ट हो जाएंगे। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के बढ़ते उपयोग को इसका कारण बताया है। उनका कहना है कि यदि मौजूदा हालात पर अभी काबू नहीं किया गया तो परिस्थितियां बेहद भयावह हो सकती हैं।
विज्ञान पत्रिका नेचर में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती अब उस दिशा में बढ़ रही है जब कई प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी और आमूलचूल बदलाव होंगे। ऐसा एक बार 12 हजार साल पहले ग्लेशियर के पिघलने के दौरान हुआ था। ये वे प्रजातियां हैं, जिन पर हम निर्भर हैं। इस कारण हमारा अस्तित्व संकट में आ जाएगा। वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी नौ अरब तक पहुंच जाने का अनुमान है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंथनी बारनोस्की ने कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि इस सदी के अंत तक यह धरती ऐसी नहीं रहे जैसी अभी है। बारनोस्की समेत अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कुल 17 वैज्ञानिकों का यह अध्ययन तेजी से बदल रहे वातावरण और पारिस्थितिकी पर आधारित है। अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि यदि परिस्थितियों में सुधार नहीं होता है तो आने वाले समय में जीवन के लिए अनिवार्य वनस्पति और परिस्थितियां ही शेष नहीं रह जाएंगी। इससे वैश्रि्वक अस्थिरता का माहौल बन जाएगा। बारनोस्की के अनुसार इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि हम प्रकृति से ले तो भरपूर रहे हैं लेकिन उसे लौटा कुछ भी नहीं रहे हैं। इससे धरती पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है।
इस परिवर्तन का ताजा उदाहरण अंतिम हिम युग की समाप्ति के समय देखने को मिला। तीन हजार वर्ष पूर्व धरती का लगभग 30 प्रतिशत भाग हिमाच्छादित था, लेकिन अब यह वैसा नहीं रहा। ज्यादातर बदलाव महज डेढ़ हजार पूर्व ही हुए हैं। औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में 35 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड बढ़ी है। इसकी वजह से तापमान में भारी बढ़ोतरी हुई है। जहां हिमयुग में मानव धरती के 30 प्रतिशत भाग तक सीमित था वहीं आज उसने अपनी हद बढ़ाकर 43 प्रतिशत कर ली है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि प्राकृतिक संपदा का जरूरत से ज्यादा दोहन भविष्य में पृथ्वी ही नहीं मानव जाति के विनाशकारी अंत का कारण साबित होगा। (एजेंसी)

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