विवाहित होकर भी अविवाहित दिखने की होड़
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विवाहित होकर भी अविवाहित दिखने की होड़

यहां भारतीय हिन्दू महिलायें किसी भी तरह के सुहाग चिन्ह का कोई प्रयोग नहीं करती जैसे न बिंदी, न सिंदूर, ना पाँव में बिछिये, न हाथों में चूड़ियाँ और ना ही गले में मंगलसूत्र।

पल्लवी सक्सेना
पिछले पांच सालों में मुझे यह विवाहित होते हुए भी खुद को अविवाहित दिखाने की होड़ यहां मतलब ब्रिटेन में कुछ ज्यादा ही देखने को मिली। यहां भारतीय हिन्दू महिलायें किसी भी तरह के सुहाग चिन्ह का कोई प्रयोग नहीं करती जैसे न बिंदी, न सिंदूर, ना पाँव में बिछिये, न हाथों में चूड़ियाँ और ना ही गले में मंगलसूत्र। जब मैं शुरू-शुरू यहां आयी थी। तब मुझे लगा कि शायद "जैसा देश वैसा भेष" वाली कहावत को सच मानते हुये लोग ऐसा करते होंगे। ताकि वह भीड़ में अलग न दिखेँ। जबकि मेरा तो ऐसा मानना है, कि भीड़ में अलग दिखना ज्यादा दमदार बात है। खैर इस विषय को लेकर सब की अपनी-अपनी सोच और अपने-अपने विचार है। वैसे देखा जाये तो अब भारत में ही लोग इस आधुनिकता की अंधी दौड़ में अंधे बन भेड़चाल की भांति भागे चले जा रहे है। जिसके चलते अब वहाँ भी कोई सुहाग चिन्हों का प्रयोग पूरी तरह नहीं करता। तो फिर यहाँ की तो बात ही क्या, यह तो है ही परदेस।

बात यहाँ देश या विदेश की नहीं है बात है मान्यता की मगर पता नहीं लोग अपने आप को विवाहित होते हुए भी अविवाहित क्यूँ दिखाना चाहते है। इसके पीछे मुझे तो एक ही कारण समझ आया। पहला यह कि यदि मैं यहाँ की बात करुँ तो लोग भीड़ से अलग दिखना नहीं चाहते। उसके भी दो कारण है एक यह हो सकता है कि भारतीय लोगों को पहले ही अंग्रेज एक अलग ढंग से देखते सुनते है। दूसरा कारण पहनावा भी हो सकता है क्योंकि एक तो यहाँ का मौसम जिसके चलते यहाँ का पहनावा ज्यादातर ऐसा होता है कि यदि आप उस पर हिन्दुस्तानी सुहाग चिन्हों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तो जरूरत से ज्यादा ही अलग नज़र आयेंगे या यूँ कहिए उल्लू दिखेंगे। तीसरा और सबसे अहम कारण है फ़ैशन, फ़ैशन की दुनिया तो हर किसी को अपनी और आकर्षित करती है। फिर आप यहाँ रह रहे हों, या फिर दुनिया के किसी भी कोने में, फ़ैशन की चमक दमक से आप बच नहीं सकते।

इस विषय में मैंने एक दो महिलाओं से बात भी की। भई माना कि यहाँ रहकर सभी सुहाग चिन्हों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। मगर एक दो का तो बड़ी आसानी से किया जा सकता है। जैसे माँग में थोड़ा सा सिंदूर या पाँव में बिछिये, तो मुझे जवाब मिला अरे आप भी कौन से ज़माने की बात कर रही हो, हम नहीं करते यह सब शुरू में हमको भी लगता था। इसलिये हम भी ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम पाँव में बिछिये तो पहनते ही थे। मगर जब यहाँ स्पोर्ट शूज पहनने पड़े तो बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा इसलिए फिर हमने सब छोड़छाड़ दिया अब तो बस जब इंडिया जाते हैं तभी सब कुछ करते हैं तब ही अच्छा भी लगता है वरना यहाँ कौन देख रहा है। आप अभी नयी-नयी हो इसलिए आपको लग रहा है थोड़े साल गुज़र जाने दो आप भी हम जैसी ही हो जाओगी। यह सब सुनकर जहां एक और मुझे अजीब लगा वहीं दूसरी ओर मैं सोच में पड़ गयी कि यह मात्र दिखावा है या मन की भावनाए या फिर वक्त की मांग। यह सब सोच कर मेरे मन में कई तरह की बातें आने लगीं।

जैसे यह दिखावे की चीज़ें हैं या मान्यता की या फिर अपनी संस्कृति या परंपरा की क्योंकि मानो तो भगवान वरना पत्थर ही है। यदि मैं अपने अनुभव की बात करुँ तो बिंदी न लगाना, या सिंदूर न लगाना, या हाथों में काँच की चूड़ी का ना होना, या फिर पाँव में बिछिये का न होना मेरी माँ को तो ज़रा भी पसंद नहीं, उनके हिसाब से किसी भी सुहागन महिला के श्रृंगार में और कुछ सम्मिलित हो न हो मगर यह सब सुहाग वाली चीजें न सिर्फ उस औरत के जो की विवाहित है बल्कि मेरे श्रृंगार में भी जरूर शामिल होना ही चाहिए। इसलिए जब भी मैं उनके सामने होती हूँ तो यह सब चीज़े मेरे श्रृंगार में शामिल जरूर होती है वरना बहुत डांट पड़ती है। मगर ऐसा नहीं है कि मेरे अंदर इन चीजों को लेकर केवल दिखावा है। मैं दिल से भी इन चीजों को बहुत मान देती हूँ। इसलिए यहाँ रहकर भी मेरे हाथों में काँच की एक चूड़ी और माँग में सिंदूर और पाँव में बिछिये हमेशा रहते है। फिर चाहे मुझे कोई उल्लू समझे या दकियानूसी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह हो सकती है। जिसके कारण लोग खुद को हमेशा जवान और अविवाहित अर्थात कुँवारा दिखाना चाहते है। तो मेरे विचार से पूरी ज़िंदगी जवान और खूबसूरत दिखने की चाह इंसान के अंदर मरते दम तक विद्धमान रहती है और शायद कुछ हद तक पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह चाह ज़रा ज्यादा ही रहा करती है। मगर इसका मतलब यह नहीं कि पुरुषों में सदा जवान दिखने या अविवाहित दिखने की चाह नहीं होती। उनमें भी यह चाह कूट-कूट कर भरी होती है। इसलिए यह कहना कि जवान दिखने के लिए कोई भी इंसान बाल रंगने से लेकर पहनावे तक कुछ भी कर सकता है तो उसमें कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। क्योंकि जहां तक इस मामले में किसी भी इंसान का जितना वश चलता है हर कोई उतना ही जवान दिखने का प्रयास करता है फिर भले ही उस इंसान का मन खुद को जवान महसूस करे, न करे, मगर तब भी वह इंसान तन से जरूर जवान दिखने की भरपूर कोशिश जरूर किया करता है। फिर चाहे वह कोई महिला हो या पुरुष।

क्यूँ? क्योंकि सीधी सी बात है भेड़ों में शामिल होने के लिए सियार को भेड़ का रूप तो धारण करना ही पड़ेगा ना बस वैसा ही कुछ हाल उन लोगों का भी है जो विवाहित होते हुए भी खुद को कुँवारा अर्थात अविवाहित दिखाना चाहते है या फिर अधेड़ होते हुए भी खुद को जवान दिखाना चाहते है और जो लोग खुद को अविवाहित दिखाना चाहते है उनकी इस सोच के पीछे मुझे तो केवल एक मात्र कारण यही समझ आता है, कि यदि उन्होंने अपने सुहाग चिन्हों के माध्यम से यह जाहिर कर दिया कि वह अविवाहित नहीं विवाहित है। तो फिर कोई और जवान व्यक्ति अर्थात कुँवारा व्यक्ति उनकी और देखेगा भी नहीं जिसके कारण उनकी शान में कमी आ जायेगी, सब उन्हें उम्रदराज़ समझने लगेंगे जो उन्हें कतई मंजूर ना होगा। लेकिन इस मामले में पुरुषों की चाँदी है क्योंकि इस पुरुष प्रधान समाज ने सारे सुहाग चिन्ह केवल औरत के लिए ही बनाए है और न सिर्फ बनाए है बल्कि उन्हें धर्म से जोड़कर सभी नारी जाती के लिए अनिवार्य भी करार दे दिया गया है। यहाँ इस बात से मुझे आपत्ति है।

माना कि इन सब चिन्हों को लगा लेने से, या पहन लेने से आप किसी कि ज़िंदगी में आने वाले मौत रूपी काल को रोक नहीं सकते। क्योंकि होनी को कोई नहीं टाल सकता है। जो होना है, वह होकर ही रहता है। फिर आप चाहे कितने भी सुहाग चिन्ह को अपने ऊपर लादे रही हैं। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन तब भी यदि यह बात महिलाओं को ध्यान में रखकर धर्म से जोड़ी गयी है। तो इसे पुरुषों पर भी लागू किया जाना चाहिए था। मगर हाय रे यह पुरुषों का अहम और खोखला दिखावा इन्हें अपनी ऊपर ही भरोसा नहीं इसलिए अपनी अर्धांगिनी की सुरक्षा के लिए खुद ही यह नियम बना दिया, कि जो कोई भी महिला विवाहित है उसके लिए यह सुहाग चिन्ह अपने ऊपर सजाना साँस लेने से भी ज्यादा अनिवार्य है ताकि कोई पर पुरुष उस पर अपनी गंदी नीयत न डाल सके।

मगर आज की तारीख़ में ऐसा नहीं है आज महिलायें पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है इसलिए यदि पुरुष अपने विवाहित होने का कोई प्रमाण लेकर नहीं चल सकते तो भला हम महिलाएं क्यूँ चले। मगर यहाँ बात अहम के टकराव की नहीं कुछ हद तक संस्कृति, परंपरा और सुंदरता यहाँ तक की बहुत हद तक सुरक्षा की भी है। क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि एक लड़की चाहे कितनी भी खूबसूरत क्यूँ न हो, मगर यदि वह विवाहित है तो बिना, सिंदूर, बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियों और बिछिये के उसका सौंदर्य हमेशा अधूरा ही लगेगा। ऐसा मुझे लगता है हो सकता है आप सब मेरी इन बातों से सहमत ना भी हों लेकिन तब भी मैं इतना जरूर कहूँगी कि "सुहागिन के सर का ताज होता है, एक चुटकी सिंदूर" क्योंकि यह अपने आप में सिर्फ एक मात्र सुहाग की निशानी ही नहीं बल्कि आपसी प्रेम और विश्वास का रंग भी लिए होता है। जो न सिर्फ बुरी नियत रखने वाले लोगों से आपकी सुरक्षा ही करता है। बल्कि आपके सौंदर्य में चार चाँद भी लगता है यही एक चुटकी सिंदूर। इसलिए इसका सम्मान करने के साथ-साथ इसको पूरे दिल से अपनाये। इसमें कोई नुकसान नहीं उल्टा आप ही का भला है।

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