1962 जंग: `भारत का भ्रम दूर करने को जारी की रिपोर्ट`
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1962 जंग: `भारत का भ्रम दूर करने को जारी की रिपोर्ट`

जानेमाने ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार नेविल मैक्सवेल ने कहा है कि उन्होंने 1962 के चीन-भारत युद्ध की एक गोपनीय रिपोर्ट को भारत की सोच को इस ‘प्रेरित भ्रम’ से मुक्त करने के लिए जारी किया था कि भारत बिना उकसावे के चीन द्वारा अचानक किये गये आक्रमण का शिकार था।

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बीजिंग : जानेमाने ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार नेविल मैक्सवेल ने कहा है कि उन्होंने 1962 के चीन-भारत युद्ध की एक गोपनीय रिपोर्ट को भारत की सोच को इस ‘प्रेरित भ्रम’ से मुक्त करने के लिए जारी किया था कि भारत बिना उकसावे के चीन द्वारा अचानक किये गये आक्रमण का शिकार था।
मैक्सवेल ने अब भी गोपनीय हैंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट (एचबीआर) के कुछ अंश हासिल किये हैं, जिनमें जवाहरलाल नेहरू की आगे बढ़ने की नीति (फॉरवर्ड पॉलिसी) और बिना जरूरी उपायों के इसे अंजाम देने के लिए भारतीय सेना की गंभीर खामियों की बात कही गयी है।
मैक्सवेल ने हांगकांग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिये साक्षात्कार में कहा कि रिपोर्ट साबित करती है कि चीन के ‘बिना उकसावे के आक्रमण’ के बारे में बात पूरी तरह झूठ है और 1962 में आक्रमणकर्ता भारत था। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जाहिर है कि इसमें (एचबीआर में) इस तरह से व्याख्या नहीं की गयी है, राजनीतिक निष्कर्ष को जवानों द्वारा जवानों के लिए लिखित गहरे सैन्य शब्दजालों में दफना दिया गया है, रिपोर्ट अनभ्यस्त नागरिकों के लिए पढ़ने के लिहाज से कठिन है।’’
जब मैक्सवेल से पूछा गया कि वह एचबीआर का खुलासा करके क्या हासिल करने की उम्मीद करते हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं वह हासिल करने की उम्मीद करता हूं जो मैं करीब 50 साल से कोशिश कर रहा हूं। भारत की राय को इस प्रेरित भ्रम से मुक्त कराना कि भारत 1962 में चीन की ओर से बिना उकसावे के किये गये आकस्मिक आक्रमण का शिकार था। इसके साथ ही भारत के लोगों को दिखाना है कि सच यह है कि भारत सरकार ने और खासतौर पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने त्रुटियां की थीं जिससे चीन के साथ युद्ध की स्थिति बनी।’’
मैक्सवेल ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट ऑनलाइन जारी की और ऐसा करने से ‘‘भारत सरकार इसे गोपनीय रखने का बहाना बनाते हुए यह झूठा दावा नहीं कर सकती कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से किया गया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन फिर भी कहानी सामने आती है। एक स्वतंत्र देश के तौर पर बहुत शुरुआत से भारत, जिसे इस संदर्भ में नेहरू कहा जा सकता है, ने यह राय बनाई कि भारत की सीमा रेखाओं के मामले में भारत को अकेले एकपक्षीय तरीके से, निजी तौर पर और निर्णायक तरीके से फैसला लेना है।’’
मैक्सवेल के मुताबिक, ‘‘नेहरू और उनके करीबी सलाहकारों ने साझा सीमा पर चीन से बातचीत करने की जरूरत की ओर इशारा करने वाली अच्छी भावना और अच्छे अंतरराष्ट्रीय तरीकों पर एक भी क्षण विचार किये बिना खुद सीमा निर्धारण का काम किया और नये नक्शे बनाकर उसे पूर्ण, औपचारिक, अंतिम अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर दिखाया। इसमें वह भी एक क्षेत्र था जिस पर ब्रिटेन ने भी कभी दावा नहीं किया था और जिसे अकसाई चीन कहा जाता है। इस क्षेत्र पर 1962 की जंग में चीन ने कब्जा कर लिया था।’’
मैक्सवेल के मुताबिक वह सालों तक रिपोर्ट को सार्वजनिक कराने का प्रयास करते रहे। 2012 में उन्होंने भारत में कई अखबारों को सामग्री उपलब्ध कराई थी जो इसे सार्वजनिक करने की बात पर सहमत हुए थे लेकिन सोचा कि यह काम सरकार को करना होगा। जब मैक्सवेल से पूछा गया कि चीन के सहयोगी माने जाने वाले नेहरू ने इस तरह का कड़ा रख क्यों अपनाया तो उस समय टाइम के संवाददाता के तौर पर भारत में काम कर चुके मैक्सवेल ने कहा, ‘‘इस पर मैं कुछ जवाबों पर पहुंचता हूं जो डेविड हॉफमैन और पैरी एंडरसन जैसे विद्वानों से प्रेरित हैं।
उनकी सोच है कि भारतीय नेताओं ने चाउ एनलाई (दिवंगत चीनी प्रधानमंत्री) के बातचीत के जोर देने से अपमानित महसूस किया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे निश्चित सीमाओं वाले प्राचीन राष्ट्र के तौर पर भारत के चरित्र को खारिज किया जा रहा है।’’ भारत और चीन के बीच मौजूदा सीमा वार्ताओं के संबंध में मैक्सवेल ने कहा कि उन्हें समझौते की उम्मीद है।
मैक्सवेल ने यह आरोप भी लगाया कि 1914 में ब्रिटिश सरकार ने मैकमोहन रेखा के बारे में रिकार्डों में हेरफेर की। यह रेखा भारत के दृष्टिकोण से चीन के साथ देश की 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा की भारत की धारणा का आधार बनाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत का चीन के साथ सीमा विवाद था और स्वतंत्र भारत के लिए यह जन्मजात था। ब्रिटिश शासकों ने 1930 के दशक के मध्य में तब इसे पैदा किया था जब उन्होंने फैसला किया था कि रणनीतिक कारणों से उन्हें अपनी उत्तर पूर्व सीमा को कुछ 60 मील आगे बढ़ाना चाहिए।’
मैक्सवेल के मुताबिक, ‘‘वे जानते थे कि चीन इस पर राजी नहीं होगा क्योंकि वे 1914 में शिमला कांफ्रेंस में कूटनीतिक दबाव से बीजिंग को उस क्षेत्र को देने के लिए मनाने में विफल रहे थे और 1936 में उन्होंने इसे जबरन ले लिया।’’ जब ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार से पूछा गया कि भारत ने ब्रिटिश रुख क्यों अपनाया होगा, उन्होंने कहा कि यह कुछ इस तरह का फॉस्टियन प्रस्ताव था, ‘‘हमने जो किया, उसके बारे में आप चुप रहो और मैकमोहन सीमा को अपने कब्जे में रखे रहो। और अगर अवरोध पैदा करते हो और हमारी चाल को उजागर करते हो तो मैकमोहन सीमाक्षेत्र छोड़ दो और मिस्टर नेहरू आपकी जनता और विपक्ष इस बारे में क्या सोचेगा?’’
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने रिपोर्ट का कुछ हिस्सा ही क्यों उजागर किया है और बाकी का भाग कहां है तो पत्रकार ने कहा, ‘‘मेरे पास जो था , मैंने अपलोड कर दिया। मैंने वॉल्यूम 2 कभी नहीं देखा। मेरा मानना है कि लेखकों ने मुख्य रूप से ज्ञापनों, लिखित बयानों और अन्य दस्तावेजों पर रिपोर्ट आधारित रखी।’’ नेहरू से नफरत के सवाल पर जवाब देते हुए मैक्सवेल ने कहा कि ‘नफरत’ काफी कड़ा शब्द है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने केवल उनकी सीमा नीति की आलोचना की। मैं नेहरू को अच्छी तरह जानता था और उन्हें अत्यंत पसंद करता था। वह आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे।’’ (एजेंसी)

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