1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
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1993 मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

मुंबई में 1993 में हुए बम धमाकों के मामले में दोषी करार दिए गए याकूब अब्दुल रजाक मेमन की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।

ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम विस्फोट मामले में मुख्य षड्यंत्रकारी और मौत की सजा का सामना कर रहे याकूब अब्दुल रजाक मेमन की फांसी पर आज रोक लगा दी। न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार और अन्य को मेनन के आग्रह पर नोटिस जारी कर कहा कि इस दौरान मौत की सजा की प्रक्रिया पर रोक रहेगी।
न्यायालय ने मेनन का आग्रह संविधान पीठ को भी भेज दिया जिसमें कहा गया है कि मौत की सजा के मामलों में पुनरीक्षण याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट को कक्ष में नहीं बल्कि खुली अदालत में सुनवाई करनी चाहिए। मेमन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता उपमन्यु हजारिका ने कहा कि वर्ष 2000 में हुए लालकिला हमला मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे दोषी मोहम्मद आरिफ का ऐसा ही आग्रह संविधान पीठ को भेजा गया था।
तब न्यायालय ने कहा कि यह याचिका भी लालकिला हमला मामले के दोषी के आग्रह के साथ नत्थी कर दी जाए और उसके साथ ही इसकी सुनवाई भी की जाए। न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और बी एस चौहान की पीठ ने 21 मार्च 2013 को मेमन की मौत की सजा बरकरार रखी थी।
इस मामले में विशेष टाडा अदालत ने 10 अन्य दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी जिसे पीठ ने यह कहते हुए उम्र कैद में बदल दिया था कि इन लोगों की भूमिका मेमन की भूमिका से अलग थी। इन 10 लोगों ने मुंबई में विभिन्न स्थानों पर आरडीएक्स विस्फोटक से लदे वाहन खड़े किए थे। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट मेमन भगोड़े अपराधी टाइगर मेमन का भाई है।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा था कि वह मुंबई में हुए सीरियल बम विस्फोटों का मुख्य षडयंत्रकारी था। मुंबई में भीड़ भरे 12 स्थानों पर हुए इन विस्फोटों में 257 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए थे। न्यायालय ने यह भी कहा था कि मौत की सजा का सामना कर रहे 10 अन्य दोषी समाज के कमजोर वर्ग के थे, उनके पास रोजगार नहीं था और वह लोग मुख्य षड्यंत्रकारियों के गुप्त इरादों के शिकार बन गए।
न्यायालय ने कहा था मेमन और अन्य भगोड़े (दाउद इब्राहिम तथा अन्य) मुख्य षड्यंत्रकारी थे जिन्होंने इस त्रासद कार्रवाई की साजिश रची थी। 10 अपीलकर्ता सिर्फ सहयोगी थे जिनकी जानकारी उनके समकक्षों की तुलना में बहुत कम थी। हम कह सकते हैं कि उसने (याकूब ने) और अन्य फरार आरोपियों ने निशाना लगाया जबकि शेष अपीलकर्ताओं के पास हथियार थे। फिल्म अभिनेता संजय दत्त को इस मामले में अवैध हथियार रखने के जुर्म में पांच साल की सजा सुनाई गई थी। उन्हें शेष साढ़े तीन साल की सजा काटने का आदेश दिया गया था।
विशेष टाडा अदालत ने संजय को वर्ष 2007 में 6 साल की सजा सुनाई थी जिसे न्यायालय ने घटा कर 5 साल कर दिया था। संजय पहले ही 18 माह तक जेल में बंद रहे थे।
दस दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करते हुए न्यायालय ने 25 अन्य को सश्रम उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इनमें से चार को पूर्व में टाडा अदालत बरी कर चुकी थी। जिन दस दोषियों की मौत की सजा उम्र कैद में बदली गई थी वह अब्दुल गनी इस्माइल तुर्क, परवेज नजीर अहमद शेख, मुश्ताक तरानी, असगर मुकादम, शहनवाज कुरैशी, शोएब घंसार, फिरोज अमानी मलकी, जाकिर हुसैन, अब्दुल अख्तर खान और फारूक पावले हैं।
टाडा अदालत ने नवंबर 2006 में इस मामले के 123 आरोपियों में से 100 को दोषी ठहराया था। आतंकवाद निरोधक कानून, भारतीय दंड संहिता और अन्य संबंधित कानूनों के प्रावधानों के तहत 12 आरोपियों को मौत की सजा, 20 को उम्र कैद और शेष 68 को अलग अलग अवधि की जेल की सजा सुनाई गई थी।
निचली अदालत के फैसले के विरोध में कई दोषियों ने और सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई। न्यायालय में मामला लंबित रहने के दौरान 100 दोषियों में से दो की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दो व्यक्तियों को बरी कर दिया और 84 की दोषसिद्धि बरकरार रखी। साथ ही न्यायालय ने जमानत पर रिहा दोषियों को शेष सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण करने का आदेश भी दिया।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि उम्र कैद की सजा काट रहे दोषी अपनी पूरी जिंदगी जेल में ही गुजारेंगे। न्यायालय ने कहा कि आरोपियों को आरडीएक्स तथा अन्य विस्फोटकों का उपयोग कर बम बनाने का प्रशिक्षण, एके-56 जैसे स्वचालित हथियार चलाने और हैंड ग्रेनेड के उपयोग का प्रशिक्षण पाकिस्तान में दिया गया। प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनियोजित तरीके से दाउद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, मोहम्मद दोसा और सलीम बिस्मिल्ला खान (अब जीवित नहीं) ने की थी।

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