विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर खर्च बढ़ना चाहिए: पीएम
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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर खर्च बढ़ना चाहिए: पीएम

विज्ञान को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक कोष की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर देश का वार्षिक व्यय कम से कम जीडीपी का दो प्रतिशत होना चाहिए।

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जम्मू : विज्ञान को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक कोष की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर देश का वार्षिक व्यय कम से कम जीडीपी का दो प्रतिशत होना चाहिए।
मनमोहन ने कहा, ‘विज्ञान का किसी न किसी को पोषण करना चाहिए। हमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर वार्षिक व्यय को जीडीपी का कम से कम दो प्रतिशत करना चाहिए। यह सरकार और उद्योगों से आना चाहिए।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘दक्षिण कोरिया जैसे देशों में उद्योग का योगदान काफी अधिक है जहां जीडीपी का बड़ा प्रतिशत विज्ञान को जाता है।’ 101वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सर्न, यूरोपीय परमाणु शोध संगठन में शामिल हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘भारत दुनिया के महत्वपूर्ण अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय से गठजोड़ करेगा। गुरुत्व तरंग प्रयोग में भारत तीसरे डिटेक्टर की मेजबानी करना चाहता है।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु में 1450 करोड़ रुपए की लागत से न्यूट्रीनों आधारित वेधशाला स्थापित किया जाना प्रस्तावित है। भारत सहयोगी सदस्य के रूप में सर्न में शामिल है।
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों के कार्यों की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया है। मनमोहन ने कहा, ‘फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के विकास के प्रयासों में भारतीय परमाणु वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि कलपक्कम में निर्माणाधीन नमूना इस वर्ष पूरा हो जाएगा। हम पूरी तरह से परमाणु प्रौद्योगिकी के इस नए क्षेत्र में दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों में शामिल हो गए हैं।’
उन्होंने कहा, ‘चंद्र अभियान और मंगल अभियान अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारे व्यापक प्रयासों का गवाह है। हमने 13 मिनट के भीतर सूनामी से जुड़ी गतिविधि के बारे में चेतावनी देने की क्षमता हासिल कर ली है।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हिन्द महासागर में 2004 में सूनामी के बाद हमने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय गठित करने और 2007 में सूनामी की चेतावनी देने विश्वस्तरीय प्रणाली में निवेश करने का निर्णय किया।’
उन्होंने कहा कि मौसम विज्ञान के क्षेत्र में देश ने कितनी तरक्की की है, यह ओडिशा में चक्रवात के दौरान सामने आया। हमने इस दौरान जानी मानी अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अधिक सटीक भविष्यवाणी की। (एजेंसी)

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