क्या सीवीसी सिर्फ मूकदर्शक है?: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय में सोमवार को जब यह कहा गया कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग की ‘सीमित’ भूमिका है और वह किसी भी तरह से सीबीआई की जांच के लिए कोई निर्देश नहीं दे सकता और न ही इसमें इस्तक्षेप कर सकता है तो शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, ‘क्या सीवीसी सिर्फ मूक दर्शक है।’

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में सोमवार को जब यह कहा गया कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग की ‘सीमित’ भूमिका है और वह किसी भी तरह से सीबीआई की जांच के लिए कोई निर्देश नहीं दे सकता और न ही इसमें इस्तक्षेप कर सकता है तो शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, ‘क्या सीवीसी सिर्फ मूक दर्शक है।’
न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग कानून, 2003 की धारा 8 और दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून 1946 की धारा 4 से संबंधित मसले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि सिर्फ रिपोर्ट और जांच की प्रगति रिपोर्ट प्राप्त करने के अलावा आपके (सीवीसी) के हाथ में कुछ नहीं है। जांच पूरी होने के बाद रिपोर्ट पेश की जाती है लेकिन सवाल यह है कि क्या सीवीसी सिर्फ एक मूक दर्शक है।’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘इसका मतलब ही क्या रहा।’
केन्द्रीय सतर्कता आयोग कानून के ये प्रावधान जांच के मसले को भी देखते हैं। कोयला खदानों के आबंटन में घोटाले की जांच की निगरानी कर रही शीर्ष अदालत ने 10 फरवरी को सीबीआई के कामकाज की निगरानी के बारे में सीवीसी से उसके अधिकार के दायरे के संबंध में जवाब मांगा था।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल दीवान ने सीवीसी के काम के दायरे और अधिकार के बारे में आयोग का नजरिया पेश किया जबकि सीबीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण ने कहा कि जांच प्राधिकरण को स्वतंत्र रखना है और दंड प्रक्रिया संहिता तथा सीबीआई की मैनुअल में उसके अधीक्षण की व्यवस्था है।
दीवान ने कहा कि सीवीसी को कोई स्पष्ट निर्देश देने या किसी भी मामले में किसी विशेष तरीके से जांच करने या इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। (एजेंसी)

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