मनमोहन सिंह ने की थी भ्रष्‍ट जज की तरफदारी? बीजेपी ने मांगा स्‍पष्‍टीकरण
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मनमोहन सिंह ने की थी भ्रष्‍ट जज की तरफदारी? बीजेपी ने मांगा स्‍पष्‍टीकरण

भ्रष्‍ट जज की नियुक्ति को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सवालों के घेरे में आ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों की ओर से भ्रष्टाचार के आरोपी मद्रास हाईकोर्ट के एक जज का कार्यकाल बढ़ा जाने के खिलाफ राय दिए जाने के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कथित रूप से उस जज का कार्यकाल बढ़ाने के लिए मामले में हस्तक्षेप किया था।

मनमोहन सिंह ने की थी भ्रष्‍ट जज की तरफदारी? बीजेपी ने मांगा स्‍पष्‍टीकरण

ज़ी मीडिया ब्‍यूरो/बिमल कुमार

नई दिल्‍ली : भ्रष्‍ट जज की नियुक्ति को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सवालों के घेरे में आ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों की ओर से भ्रष्टाचार के आरोपी मद्रास हाईकोर्ट के एक जज का कार्यकाल बढ़ा जाने के खिलाफ राय दिए जाने के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कथित रूप से उस जज का कार्यकाल बढ़ाने के लिए मामले में हस्तक्षेप किया था। यह जानकारी सूत्रों के हवाले से मिली है।

बुधवार को कुछ रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने मद्रास हाईकोर्ट के जज को स्‍थायी करने के लिए जोर लगाया था, जिन्‍हें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और मौजूदा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मार्केण्‍डेय काटजू ने भ्रष्‍ट करार दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, मई, 2005 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के कलोजियम को एक चिट्ठी लिख कर मद्रास हाईकोर्ट के जज (जस्टिस एस अशोक कुमार) को स्‍थाई करने का समर्थन किया था और इस मामले में जून, 2005 में चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी की अध्‍यक्षता वाले कोलोजियम पर दबाव भी बनाया था। हालांकि इसके बावजूद जब सुप्रीम कोर्ट के जज नहीं माने, तब तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने कलोजियम को चिट्ठी लिखकर उस जज की सिफारिश की। इसके बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आरसी लोहाटी ने उस जज के कार्यकाल को बढ़ा दिया, लेकिन उन्हें स्थाई नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट के कोलोजियम की ओर से जस्टिस कुमार की सेवा को खत्‍म किए जाने को लेकर सामूहिक निर्णय किए जाने के बाद यह सिफारिश आई थी। जस्टिस कुमार उस समय मद्रास हाईकोर्ट में अतिरिक्‍त जज के तौर पर सेवा दे चुके थे। कोलोजियम को 17 जून, 2005 में एक चिट्ठी में पीएमओ ने मद्रास हाईकोर्ट में स्‍थाई जजों की नियुक्ति के बारे में लिखा था। इसके बाद सरकार के दबाव में आकर उक्‍त जज को विस्‍तार दिया गया था।

हालांकि, पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने कहा था कि कथित जज को किसी तरह का लाभ नहीं दिया गया था क्योंकि उनकी नियुक्ति सही प्रक्रिया से हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू के यूपीए सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपी मद्रास हाई कोर्ट के एक जज का कार्यकाल बढ़ाने की सिफारिश संबंधी आरोपों पर मच रहे बवाल पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि उन्हें इस मामले पर कुछ नहीं कहना है। उनके सहयोगी रहे तत्कालीन कानून मंत्री एचआर भारद्वाज इस पर बयान दे चुके हैं। पत्रकारों ने जब इस बारे में मनमोहन सिंह से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि तत्कालीन कानून मंत्री एचआर भारद्वाज इस मामले पर पूरी बात सामने रख चुके हैं। मुझे अब इस पर कुछ नहीं कहना है।

उधर, भारतीय जनता पार्टी ने यूपीए सरकार के दौरान देश के तीन पूर्व प्रधान न्यायधीशों की ओर से अनुचित समझौते किए जाने के आरोपों पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी से जवाब मांगा है। बीजेपी की ओर से कहा गया कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस को इन आरोपों का जवाब देना चाहिए कि कैसे न्यायपालिका सहित विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं का राजनीतिक कारणों से दुरुपयोग किया गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण और गंभीर चिंता का विषय है।

वहीं, एनडीए सरकार ने स्वीकार किया कि यूपीए शासन के दौरान उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम ने तमिलनाडु में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक न्यायाधीश के सेवा विस्तार की सिफारिश की थी।

भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष और उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कन्डेय काट्जू ने ये आरोप लगाकर एक तूफान खड़ा कर दिया है कि भारत के तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने यूपीए शासन के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे एक जज को तमिलनाडु में पद पर बने रहने की अनुमति देने में ‘अनुचित समझौते’ किए।

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