मार्कंडेय काटजू का आरोप-यूपीए सरकार के इशारे पर एक भ्रष्‍ट जज को मिलता रहा प्रोमोशन, तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने किए ‘अनुचित समझौते’
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मार्कंडेय काटजू का आरोप-यूपीए सरकार के इशारे पर एक भ्रष्‍ट जज को मिलता रहा प्रोमोशन, तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने किए ‘अनुचित समझौते’

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में एक भ्रष्ट जज को आगे बढ़ाने का सनसनीखेज खुलासा किया है। इसी मामले में सोमवार को संसद में खासा हंगामा हुआ।

मार्कंडेय काटजू का आरोप-यूपीए सरकार के इशारे पर एक भ्रष्‍ट जज को मिलता रहा प्रोमोशन, तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने किए ‘अनुचित समझौते’

ज़ी मीडिया ब्‍यूरो

नई दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में एक भ्रष्ट जज को आगे बढ़ाने का सनसनीखेज खुलासा किया है। इसी मामले में सोमवार को संसद में खासा हंगामा हुआ।

काटजू ने सोमवार को यह आरोप लगाकर एक विवाद खड़ा कर दिया कि तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने यूपीए सरकार के इशारे पर मद्रास हाईकोर्ट के एक अतिरिक्त न्यायाधीश को विस्तार देने के मामले में समझौता किया था और संप्रग ने ऐसा इसके एक सहयोगी, स्पष्टत: द्रमुक के दबाव में किया। काटजू ने आरोप लगाया कि तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों आरसी लाहोटी, वाईके सभरवाल और केजी बालकृष्णन ने न्यायाधीश, जिसके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप थे, को सेवा में बने रहने देने की अनुमति देकर ‘अनुचित समझौते’ किए।

मद्रास हाईकोर्ट में 2004 में मुख्य न्यायाधीश रहे और बाद में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने वाले काटजू ने कहा कि तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने अनुचित समझौते किए। न्यायमूर्ति लाहोटी जिन्होंने इसे शुरू किया, फिर न्यायमूर्ति सभरवाल और न्यायमूर्ति बालकृष्णन। ये प्रधान न्यायाधीश हैं जिन्होंने यह समर्पण किया। क्या कोई प्रधान न्यायाधीश राजनीतिक दबाव के आगे समर्पण करने जा रहा है या राजनीतिक दबाव के सामने समर्पण करने नहीं जा रहा? काटजू ने कहा कि उन्हें बहुत सी रिपोर्ट मिलीं कि संबंधित अतिरिक्त न्यायाधीश कथित तौर पर भ्रष्टाचार में लिप्त थे और उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश लाहोटी से संबंधित न्यायाधीश के बारे में खुफिया ब्यूरो से गोपनीय जांच कराए जाने का आग्रह किया था।

काटजू ने दावा किया कि खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट में आरोप सही पाए गए और संबंधित न्यायाधीश को बख्रास्त कर दिया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि क्योंकि अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उस व्यक्ति का दो साल का कार्यकाल पूरा होने को था, इसलिए उन्हें लगा कि उसकी न्यायाधीश के रूप में सेवा समाप्त कर दी जाएगी। काटजू ने कहा कि लेकिन जब मुझे पता चला कि खुफिया ब्यूरो की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद उसे एक और विस्तार दे दिया गया तो मैं अचंभित रह गया। उन्होंने कहा कि उन्हें पता चला कि इस सबका कारण यह था कि उस समय की यूपीए-1 सरकार अपने सहयोगी दलों के समर्थन पर निर्भर थी। द्रमुक की तरफ स्पष्ट इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि जिनमें से एक तमिलनाडु की पार्टी थी, जिसके नेता को संबंधित अतिरिक्त न्यायाधीश ने जमानत दी थी।

काटजू ने कहा कि अतिरिक्त न्यायाधीश कोई स्थाई न्यायाधीश नहीं थे। उनकी स्थाई नियुक्ति की पुष्टि की भी जा सकती थी और नहीं भी की जा सकती थी। उन्होंने कहा कि उन्हें एक साल का सेवा विस्तार देने का कोई औचित्य नहीं था और इसके बाद न्यायमूर्ति लाहोटी सेवानिवृत्त हो गए। न्यायमूर्ति सभरवाल ने भी मुझे लगता है कि एक या दो बार उन्हें अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में सेवा विस्तार दिया और तब वह भी सेवानिवृत्त हो गए। न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने इस न्यायाधीश को स्थाई न्यायाधीश बना दिया, यद्यपि उन्होंने उनका तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में कर दिया।

काटजू ने कहा कि तमिलनाडु की पार्टी का नेता अतिरिक्त न्यायाधीश का बड़ा समर्थक था। न्यायाधीश ने इस नेता को जमानत दी थी। काटजू ने कहा कि मामला शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों के कॉलेजियम के पास गया और सिफारिश की गई कि जिला न्यायाधीश को सेवा में बरकरार नहीं रहने देना चाहिए। इस कॉलेजियम के लाहोटी और सभरवाल भी सदस्य थे। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिश के बारे में पता चलने पर तमिलनाडु आधारित पार्टी ने कथित तौर पर इस पर आपत्ति की। काटजू ने कहा कि उन्हें जो सूचना मिली वह यह थी कि उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में शामिल होने न्यूयॉर्क रवाना हो रहे थे।

दिल्ली हवाईअड्डे पर तमिलनाडु की पार्टी के मंत्रियों ने उनसे कहा कि जब तक वह न्यूयार्क से लौटेंगे तब तक उनकी सरकार गिर चुकी होगी क्योंकि उनकी पार्टी (उस अतिरिक्त न्यायाधीश को सेवा में बरकरार न रखे जाने के फैसले के खिलाफ) संप्रग से समर्थन वापस ले लेगी। काटजू ने हालांकि, कहा कि उन्हें इस बारे में कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं है। उस समय केंद्र में संप्रग सरकार थी और कांग्रेस इस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन इसके पास लोकसभा में बहुमत नहीं था, और यह समर्थन के लिए अपने सहयोगियों पर निर्भर थी।
काटजू ने कहा कि इस तरह की एक सहयोगी पार्टी तमिलनाडु में थी जो इस ‘भ्रष्ट न्यायाधीश’ का समर्थन कर रही थी। उन्होंने कहा कि उन्हें जो खबर मिली वह यह थी कि इससे मनमोहन घबरा गए, लेकिन कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने उनसे कहा कि वे चिंता नहीं करें और वह (मंत्री) सब कुछ संभाल लेंगे।

काटजू ने कहा कि वह मंत्री तब न्यायमूर्ति लाहोटी के पास गए और उनसे कहा कि यदि अतिरिक्त न्यायाधीश को हटाया जाता है तो ‘संकट’ पैदा हो जाएगा। उन्होंने दावा किया कि यह सुनकर न्यायमूर्ति लाहोटी ने भारत सरकार को उस ‘भ्रष्ट न्यायाधीश’ को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में एक साल का विस्तार देने का पत्र लिखा। काटजू ने कहा वे नहीं जानते कि क्या न्यायमूर्ति लाहोटी ने उच्चतम न्यायालय कालेजियम के अपने अन्य दो सदस्यों से इस बारे में राय की थी अथवा नहीं और कहा कि इन परिस्थितियों में ही इस ‘भ्रष्ट न्यायाधीश’ को एक अन्य वर्ष का सेवा विस्तार मिल गया। यह पूछे जाने पर कि वह यह खुलासा अब क्यों कर रहे हैं, काटजू ने कहा कि समय ‘कोई मायने नहीं रखता’ और इसके बजाय यह जांच होनी चाहिए कि वह जो कह रहे हैं वह सही है या नहीं।

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