मोदी के मंत्री कार्य संस्कृति में ला रहे हैं बदलाव : राम माधव
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मोदी के मंत्री कार्य संस्कृति में ला रहे हैं बदलाव : राम माधव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के फिर से उभरने की बात कहते हुए भाजपा नेता राम माधव ने कहा है कि नई सरकार में युवा मंत्री शामिल हैं जो मेहनत कर रहे हैं और कार्य संस्कृति में एक गुणवत्तापूर्ण बदलाव ला रहे हैं।

मोदी के मंत्री कार्य संस्कृति में ला रहे हैं बदलाव : राम माधव

वाशिंगटन : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के फिर से उभरने की बात कहते हुए भाजपा नेता राम माधव ने कहा है कि नई सरकार में युवा मंत्री शामिल हैं जो मेहनत कर रहे हैं और कार्य संस्कृति में एक गुणवत्तापूर्ण बदलाव ला रहे हैं।

न्यूजर्सी में भारतीय मूल के लोगों को अपने पहले संबोधन में माधव ने कहा कि भारत ‘मोदी के सक्रिय नेतृत्व में एक बार फिर से उभरकर सामने आ रहा है।’ सप्ताहांत दिए अपने इस संबोधन में उन्होंने कहा, ‘उनकी सरकार में युवा मंत्री हैं, जो मेहनत कर रहे हैं और कार्य संस्कृति में एक गुणवत्तापूर्ण बदलाव लेकर आए हैं।’

ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी द्वारा मीडिया को जारी बयान के अनुसार, नौकरशाह साथ दे रहे हैं, फाइलों पर जमी धूल हटाई जा रही है और उन्हें जल्द मंजूरी दी जा रही है।
माधव ने कहा कि हाल ही में संपन्न हुए संसदीय चुनाव सिर्फ इसलिए ऐतिहासिक नहीं थे कि मोदी को भारी जनादेश मिला। ये चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक थे कि कांग्रेस इस स्तर पर जाकर सिमट गई कि वह विपक्षी दल होने के संवैधानिक नियमों को भी पूरा नहीं कर पाई। 12 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली जबकि भाजपा के पास केरल के अलावा हर राज्य से प्रतिनिधित्व है।

माधव ने कहा, ‘इस तरह, भाजपा एक अखिल भारतीय राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है।’ मोदी को दुनिया के सबसे प्रसिद्ध नेताओं में से एक बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस देशों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था और मोदी ने अपने पड़ोसी देशों को उच्च प्राथमिकता देने के संदेश के साथ भूटान और नेपाल की यात्रा की।

उन्होंने कहा, ‘भूटान और नेपाल के लोगों से उन्हें जो स्वागत मिला, वह भारतीय सीमाओं से परे उनकी लोकप्रियता को दिखाता है।’ उन्होंने कहा कि मोदी की सरकार का लक्ष्य पंक्ति के सबसे अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना है। यह वही विचार है जो पार्टी के विचारक, दार्शनिक और संस्थापक नेता दीन दयाल उपाध्याय ने प्रतिपादित किया था।

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