ओबामा बताएं IS को किसने बनाया?

दहशत और दरिंदगी से दुनिया भर में कुख्यात आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) अब अमेरिका के लिए सिरदर्द बन गया है।

दहशत और दरिंदगी से दुनिया भर में कुख्यात आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) अब अमेरिका के लिए सिरदर्द बन गया है। अमेरिकी पत्रकार जेम्स फॉली और स्टीवेन सोटलॉप का सिर कलम किए जाने के बाद तिलमिलाए राष्ट्रपति बराक ओबामा इस आतंकवादी संगठन को मिटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन किए जाने की बात कहने लगे हैं लेकिन इस संगठन को भस्मासुर बनाने में अमेरिका अपनी भूमिका की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता। अल-कायदा के बाद आज उसे आईएस से भी खतरा दिखने लगा है।  

दरअसल, आईएस जैसे खूंखार आतंकी संगठनों के उभार के लिए ईरान एवं सीरिया की तुलना में अमेरिका और पश्चिमी देश कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं। साल 2003 में ब्रिटेन के समर्थन से अमेरिका का इराक पर हमला एक भारी रणनीतिक विफलता थी। उस समय सद्दाम हुसैन ने इराक में अलकायदा की गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। लेकिन इराक युद्ध ने सद्दाम का खात्मा करने के साथ ही पूरे देश को अस्थिर कर दिया। इसके बाद से इराक में जो शिया-सुन्नी के बीच खून-खराबे का जो दौर शुरू हुआ वह अब तक थमा नहीं है।

इराक के इस अराजक हालात का सबसे ज्यादा फायदा चरमपंथी आतंकी गुटों ने उठाया। अल-कायदा जैसे आतंकी गुटों को अपने लड़ाकों की भर्ती के लिए इराक में सुरक्षित ठिकाना मिल गया। आईएसआईएस आतंकी संगठन अल-कायदा से ही पैदा हुआ है जो 2010 में अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही शिया समुदाय को अपने आत्मघाती हमलों का शिकार बनाना शुरू किया। इराक में स्थिर सरकार के लिए अमेरिका ने नूर-अल-मलिकी का पूरा समर्थन किया। यहां तक कि मलिकी सरकार ने अपने विरोधियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं पर बदले की भावना के तहत जो कार्रवाई की उसे भी अमेरिका का समर्थन मिला हुआ था।

कहने का मतलब यह कि इराक में मलिकी सरकार को बनाए रखने में ईरान से ज्यादा अमेरिका की भूमिका रही। सरकार और सेना में भेदभाव नीतियों को अपनाते हुए और अपने विरोधियों को कुचलते हुए मलिकी ने सुन्नी समुदाय को अलग-थलग कर दिया। वर्षों के अत्याचार और अपने अधिकारों से वंचित सुन्नी समुदाय के आक्रोश ने आईएसआईएस को पनपने की जमीन तैयार की। सीरिया की बात करें तो यहां असद सरकार ने लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों को सख्ती से कुचला। असद के बल प्रयोग से शांतिपूर्वक चलने वाला प्रदर्शन सशस्त्र विद्रोह में तब्दील हो गया। मौके को भांपते हुए सीरिया विरोधी देशों सऊदी अरब, कतर और तुर्की ने विद्रोहियों को धन और हथियार उपलब्ध कराते हुए असद सरकार को अस्थिर करने का कुचक्र रचा। जैसे-जैसे सीरिया में गृह युद्ध गहराता गया आतंकवादी संगठनों को सऊदी अरब, कतर और तुर्की से अमेरिका निर्मित हथियार पहुंचने लगे। कई पर्यवेक्षकों ने यहां तक पाया कि सऊदी अरब ने आईएसआईएस को धन और हथियारों से मदद पहुंचाई है। कई रिपोर्टों में सीरिया में अमेरिका द्वारा विद्रोहियों को मदद पहुंचाने की बात सामने आई है। रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिका ने असद की सेना से लड़ने के लिए उन्हें हथियार उपलब्ध कराए और जॉर्डन के उत्तरी भाग में विद्रोहियों को प्रशिक्षित किया।   

सीरिया में लूटपाट, फिरौती और असद सरकार की संपत्तियों को लूटने के बाद इस्लामिक स्टेट (आईएस) आज दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन बन गया है। ऐसा अनुमान है कि उसके पास 10 हजार लड़ाके और 2 अरब डॉलर की संपत्तियां हैं। उसके पास अमेरिका निर्मित हथियारों का जखीरा और आत्मघाती दस्ते हैं। अब उसे अपनी निर्भरता के लिए शायद अपने आकाओं की जरूरत नहीं है। उसे लगता है कि वह अपने दम पर खलीफा राज्य (इस्लामी राज्य जो शरिया से चलता है) की स्थापना कर लेगा। इराक और सीरिया को आज के हालात के लिए केवल ईरान को उत्तरदायी ठहराना गलत होगा। इन दोनों देशों के अराजक माहौल, हिंसा और गृहयुद्ध के लिए अमेरिका, सऊदी अरब, तुर्की, कतर कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं।

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने पहले इराक को अस्थिर किया फिर सीरिया में विद्रोह भड़काया। अमेरिका, सऊदी अरब, तुर्की और कतर ने ऐसे चरमपंथी आतंकी गुटों को पैदा किया जो इसके पहले कहीं मौजूद नहीं थे। आज आईएसआईएस पूरे क्षेत्र के लिए खतरा बन गया है। ओबामा जानते हैं कि आईएस को केवल सैन्य कार्रवाई से खत्म नहीं किया जा सकता। आईएस एक विचारधारा की तरह मध्य एशिया से यूरोप और अमेरिका तक पहुंच गया है। आईएस में भर्ती होने के लिए यूरोप और अन्य देशों से आने वाले युवा इस बात की तस्दीक करते हैं। ओबामा जानते हैं कि आईएस को जड़ से मिटाने के लिए उन्हें इराक, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब और तुर्की का साथ जरूरी है। इसीलिए वह आईएस के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की बात कर रहे हैं।

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