युवाओं की भूमिका अहम, परिणाम में होंगे निर्णायक

साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव के वक्त जहां मतदाताओं की संख्या 17.6 करोड़ थी, वहीं 2014 में मतदाताओं की कुल संख्या 81.4 करोड़ हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव (2009) की तुलना में इस बार मतदाताओं की संख्या करीब दस करोड़ तक बढ़ी है।

साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव के वक्त जहां मतदाताओं की संख्या 17.6 करोड़ थी, वहीं 2014 में मतदाताओं की कुल संख्या 81.4 करोड़ हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव (2009) की तुलना में इस बार मतदाताओं की संख्या करीब दस करोड़ तक बढ़ी है।
सोलहवीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनावों में पहली बार सबसे अधिक युवा मतदाता भाग लेंगे। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इन चुनावों में करीब 10 करोड़ लोग पहली बार मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इन युवा वोटरों में 18-19 साल वालों की संख्या दो करोड़ 31 लाख है। जहां तक पहली बार मताधिकार का इस्तेमाल करने वाले 10 करोड़ लोगों का सवाल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सहित दुनिया के 11 देशों की आबादी ही 10 करोड़ से अधिक है। देश में सिर्फ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार की जनसंख्या ही 10 करोड़ से अधिक है। चुनाव आयोग ने इस बार यह बताया है कि देश में कितने युवा वोटर हैं और बीते पांच साल में बने नए वोटरों में 18-19 साल वालों की संख्या कितनी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के युवाओं का राजनीति की ओर तेजी से रुझान बढ़ा है। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है, जो राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं या निभाने की सोच रहे हैं। कुछ माह पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारी संख्या में युवाओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया और इसकी वजह से इन चुनावों में मतदान प्रतिशत भी काफी अधिक रहा। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत में भी युवाओं भूमिका अहम रही।
एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली में आम आदमी पार्टी को अन्य पार्टियों के मुकाबले युवाओं के 17-18 फीसदी वोट अधिक मिले। आम आदमी पार्टी को युवाओं की ओर से अधिक वोट मिलने के पीछे कारण जरूर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने अपने अभियान में युवाओं को राजनीति से जोड़ने पर खासा जोर दिया था। जिसके बाद युवा सक्रिय रूप से काम करते नजर आए। आम आदमी पार्टी ने प्रचार के लिए भी नए प्रयोग किए। पार्टी ने सोशल मीडिया का व्यापक इस्तेमाल किया और युवाओं को बड़ी संख्या में जोड़ने में सफल रही। इसी तरह अब अन्‍य राजनीतिक दल युवाओं को अपने पाले में खींचने में जुटे हैं। पार्टियों को राजनीति में युवाओं की बढ़ती हैसियत का अंदाजा हो गया है और वे युवाओं को विभिन्‍न तरीके से आकर्षित करने में जुटे हैं। मौजूदा राजनीति को देखकर अब इस बात में कोई संशय नहीं है कि युवाओं की भूमिका को कोई भी राजनीतिक दल नजरअंदाज नहीं कर सकती है। युवा जिस भी दल की ओर अपना रुझान प्रदर्शित करेंगे, निश्चित ही उस दल को फायदा पहुंचेगा।
अभी तक राजनीतिक पार्टियां युवाओं का इस्तेमाल चुनाव प्रचार या पार्टी के कार्यो में करती रही हैं, लेकिन जब बात चुनाव लड़ने की आती है तो कम अनुभव का हवाला देकर इनकी अनदेखी कर दी जाती है। अब इस सोच में बदलाव आया है है और बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी अपने साथ ज्यादा युवाओं को जोड़ रही हैं। अब हर दल इस बात को समझ रहा है कि युवाओं की उपेक्षा कर वह आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए पार्टियां विशेष रूप से इस वर्ग पर ध्यान दे रही हैं। सभी पार्टियां अधिक से अधिक युवाओं से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रही हैं। नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी जैसे बड़े नेता युवाओं से संवाद बढ़ा रहे हैं। वरिष्‍ठ नेता कॉलेज, यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित कर उन्‍हें अपनी नीतियों से आकर्षित करने में लगे हैं। संभवत: इस बार के चुनाव में ऐसा पहली बार हो रहा है कि विभिन्‍न दलों के घोषणापत्रों के लिए उनके सुझाव भी शामिल किए जा रहे हैं। बीते साल दिल्‍ली में अन्‍ना हजारे के आंदोलन के समय युवा खासे सक्रिय हुए। उसके बाद आम आदमी पार्टी में इनकी दिलचस्‍पी भी काफी बढ़ी।
1974 के जेपी आंदोलन के समय भी छात्रों की अहम भूमिका सामने आई। जेपी के समय बिहार में छात्रों का आंदोलन संपूर्ण क्रांति के रूप में तब्‍दील हो गया।
इस बार ऐसा माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में युवाओं के वोट डालने की तादाद बढ़ेगी। अभी तक युवा मतदाता अन्य आयु वर्गों के मुकाबले मतदान केंद्र तक कम संख्या में ही पहुंचते थे। बीते साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में युवाओं का मत प्रतिशत बढ़ा। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि लोकसभा चुनावों के दौरान युवाओं के वोट प्रतिशत में इजाफा होगा।
चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका काफी बढ़ चुकी है और इस मीडिया का सर्वाधिक इस्‍तेमाल भी युवा ही करते हैं। वहीं, राजनीतिक दल भी सोशल मीडिया का पूरा इस्‍तेमाल कर रहे हैं। बीते आम चुनाव में जितने लोगों का वोट पाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, इस बार करीब-करीब उतनी ही संख्या भारत में सोशल मीडिया का इस्‍तेमाल करने वालों की है। अब सोशल मीडिया से जुड़ने वालों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। इतनी बड़ी आबादी को नजर अंदाज करना आसान नहीं है।
कई नेता ट्विटर पर सक्रिय हैं और इसके जरिये वे अपनी बातें लोगों तक पहुंचा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने अधिक से अधिक युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया वेबसाइटों पर अभियान भी चला रखा है। इस अभियान के जरिये पार्टी अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी की छवि को बेहतर करने में लगी है। सोशल साइटों पर युवाओं की सक्रियता के चलते चुनावी अभियान को काफी रिस्‍पांस मिल है। वहीं, बीजेपी भी सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाकर युवाओं को लुभाने का काम कर रही है। इन साइटों पर प्रचार अभियान के जरिये युवाओं के बीच पैठ बनाने की कवायद में सभी राजनीतिक दलों की नजर है।

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