दलों की किच-किच!
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दलों की किच-किच!

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं... जैसे-जैसे कैंपेन में तेजी आ रही है और जैसे-जैसे टिकटों का बंटवारा हो रहा है... सभी राजनीतिक दलों में सुरक्षित सीट की तलाश और टिकट पाने की लालसा नेताओं में बेचैनी बढ़ा रही है...बेचैनी के शिकार लगभग सभी दलों के नेता हैं.

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वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं... जैसे-जैसे कैंपेन में तेजी आ रही है और जैसे-जैसे टिकटों का बंटवारा हो रहा है... सभी राजनीतिक दलों में सुरक्षित सीट की तलाश और टिकट पाने की लालसा नेताओं में बेचैनी बढ़ा रही है...बेचैनी के शिकार लगभग सभी दलों के नेता हैं...ऐसा नहीं है कि इस तरह का माहौल देश में पहली बार देखने को मिल रहा है...चुनाव से पहले ऐसा होता आया है... यूपीए विरोधी दलों के नेताओं को लगता है कि अगर उनको अपने पसंद की जगह से टिकट मिल जाए तो लोकसभा तक पहुंचना आसान हो सकता है... शायद इसीलिए सबसे ज्यादा खींचतान बीजेपी के अंदर देखने को मिल रही है।
भारतीय जनता पार्टी में मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह सरीखे तमाम कद्दावर नेता भी अपने पसंदीदा संसदीय क्षेत्रों से टिकट पाने को लेकर पार्टी नेतृत्व के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं... इन नेताओं को भी ऐसा लग रहा है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की लहर पर सवार होकर दिल्ली की सरकार में शामिल हो सकते हैं... तमाम धुर बीजेपी विरोधी नेताओं का बीजेपी में शामिल होना और चुनाव लड़ना देश में बीजेपी के पक्ष में चल रही लहर का संकेत भी माना जा रहा है... टिकट ना पाने से नाराज नेताओं की तादाद कांग्रेस में भी है लेकिन बीजेपी की तुलना में कांग्रेस में सतही तौर पर ये तनाव कम दिखाई दे रहा है... शिवसेना, डीएमके, ADMK, SP और बीएसपी भी कमोबेश अंदरूनी कलह का शिकार हैं।
राजनीति में आए लोगों की चाह होती है कि चुनाव के दौरान पार्टी से टिकट मिले और राजनीतिक भविष्य संवर जाए... ऐसे में अगर किसी नेता को टिकट ना मिले तो हर चुनाव में इस तरह की किच-किच होती है... ऐसे में जब इस बार ऐसा लग रहा है कि चुनाव निर्णायक और महत्वपूर्ण होने जा रहा है तो इस तरह की किच-किच बढ़ गई है... साथ ही दूसरे दलों के कई नेताओं को ऐसा लगने लगने लगा है कि इस बार अगर बीजेपी का हाथ थामेंगे तो फायदा होगा उसी का नतीजा है कि लोग अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम रहे हैं... फिर चाहे वो उत्तराखंड में सतपाल महाराज हों, बिहार में एन के सिंह या राम विलास पासवान हों या फिर उत्तर प्रदेश में जगदंबिका पाल हों।
एक तरफ लोग बीजेपी से जुड़ते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी में टिकट को लेकर इनफाइटिंग भी बढ़ती जा रही है... इसकी वजह देश में बन रहा चुनावी माहौल है... बीजेपी को लेकर जो उसका मूल कैडर है उसमें ये धारणा बन चुकी है कि बीजेपी सत्ता के करीब है.. इसीलिए इनमें महात्वाकांक्षा भी ज्यादा है... लेकिन कांग्रेस के लिए पूरे देश में अलग तरह की धारणा बनी हुई है कि शायद इस बार पार्टी सत्ता विरोधी लहर का शिकार हो जाए... ऐसे में पार्टी में खींचतान कम ही दिख रही है।

टिकटों को लेकर मचे घमासान के बीच इस बार चुनाव धीरे-धीरे बाइपोलर होता जा रहा है... देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी यही चाहती हैं कि चुनाव बाइपोलर हो...चुनाव मोदी बनाम राहुल हो जाए... ताकि क्षेत्रीय दलों की राजनैतिक दादगिरी से निजात मिले... और इस बीच बीजेपी की पूरी कोशिश है कि कांग्रेस की अगुआई में जो यूपीए की सरकार चली है उसकी नाकामी का पूरा फायदा उठाया जाए... बीजेपी को पूरा भरोसा भी है और पार्टी के नेता पूरे विश्वास के साथ ये दावा भी कर रहे हैं कि वो जीत जाएंगे और उनका मिशन 272+ कामयाब होगा... लेकिन देखना होगा कि सत्ता के लिए बढ़ी हुई महात्वाकांक्षा पूरी होती है या नहीं।

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