ममता बनर्जी

सियासत के पटल पर ममता बनर्जी कुछ अलग हैसियत रखती है। वह एक अलग मिजाज की सियासतदान है जिनके बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने काफी मेहनत के बाद सियासी मकाम हासिल की है।

सियासत के पटल पर ममता बनर्जी कुछ अलग हैसियत रखती है। वह एक अलग मिजाज की सियासतदान है जिनके बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने काफी मेहनत के बाद सियासी मकाम हासिल की है। ममता बेबाक है और वह कब किस किसक साथ छोड़ देंगी यह कोई नहीं जानता। एक समय में वह यूपीए सरकार में बतौर सहयोगी थी लेकिन शर्तों के मुताबिक सरकार के नहीं चलने पर उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया। अब यह तय नहीं है कि वह चुनाव के बाद कांग्रेस का दामन थामेंगीं या मोदी की अगुवाई वाली एनडीए के साथ जाएंगी। ममता एक चतुर राजनीतिज्ञ है जो उचित मौके पर सोच-समझकर अपने सियासी पासे चलती हैं। इसी दमखम और अंदाज की वजह से उन्हें वर्ष 2012 में टाइम पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 प्रभावी लोगों की सूची में स्थान दिया था। कई ऐसी विवादास्पद घटनाएं हुई हैं जिनके कारण ममता बनर्जी की छवि एक झक्की, सनकी और आत्मप्रशंसा में डूबे रहने वाले एक ऐसे राजनीतिज्ञ की बनीं जो कि अपनी गलतियों के बावजूद लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करना उचित नहीं समझता है।
ममता भी प्रधानमंत्री पद की प्रबल दावेदर हो सकती हैं। लेकिन इसकी संभावना कम नजर आती है। हालांकि ममता की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पीएम बनने की नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता है। ममता की सियासत चतुराई भरी होती है जो ऐन मौके पर अपने सियासी पत्ते खोलती हैं।
ममता बनर्जी बंगाल की 11वीं और वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। राज्य में मुख्यमंत्री बनने वाली वह पहली महिला हैं। 1997 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) बनाई और इसकी अध्यक्षा बनीं। आमतौर पर उन्हें `दीदी` कहकर बुलाया जाता है। 2011 के राज्य विधानसभा चुनावों में उन्होंने माकपा और वामपंथी दलों की सरकार को 34 वर्षों के लगातार शासन के बाद उखाड़ फेंका था।
इससे पहले वे केन्द्र में दो बार रेलमंत्री बन चुकी हैं। रेलमंत्री बनने वाली वे पहली महिला थीं। वे केन्द्र में कोयला, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री, युवा मामलों और खेल तथा महिला व बाल विकास की राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं।
ममता का जन्म 5 जनवरी, 1955 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। निम्न मध्यमवर्गीय दम्पति प्रमिलेश्वर बैनर्जी और गायत्री देवी उनके पिता-माता थे। जब वे बहुत छोटी थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था। अपने स्कूली दिनों से ही राजनीति में जुड़ी ममता कांग्रेस से लम्बे समय तक जुड़ी रहीं। सत्तर के दशक में उन्हें राज्य महिला कांग्रेस की महासचिव बनाया गया। उस समय में वे कॉलेज में पढ़ती थीं।
अपने समूचे राजनीतिक जीवन में ममता ने सादा जीवन शैली अपनाई और वे हमेशा ही परम्परागत बंगाली सूती की साड़ी (जिसे तांत कहा जाता है) पहनती रही हैं। उन्होंने कभी कोई आभूषण या श्रृंगार प्रसाधन की चीज नहीं अपनाई। वे अपने जीवन में अविवाहित रही हैं। उनके कंधे पर हमेशा ही एक सूती थैला लटका नजर आता है जो कि उनकी पहचान बन गया है।
ममता का राजनीतिक करियर कांग्रेस पार्टी के साथ शुरू हुआ और 1976 से 1980 तक वे महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं। 1984 के आम चुनाव में वे भारत की सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक बनीं जब उन्होंने जादवपुर संसदीय क्षेत्र से अनुभवी वामपंथी नेता सोमनाथ चैटर्जी को हरा दिया। वे युवा कांग्रेस की महासचिव भी बन गईं। पर 1989 की कांग्रेसी विरोधी आंधी में वे अपनी सीट नहीं बचा सकीं। 1991 का चुनाव उन्होंने कलकत्ता दक्षिण संसदीय सीट से लड़ा और वे इस पर 2009 के आम चुनावों तक जीतती रहीं।
वर्ष 1991 में जब राव की सरकार बनी तो उन्हें मानव संसाधन विकास, युवा मामले और खेल तथा महिला और बाल विकास राज्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 1999 में उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे (एनडीए) सरकार का हिस्सा बन गई और उन्हें रेलमंत्री बना दिया गया। वर्ष 2002 में उन्होंने अपना पहला रेल बजट पेश किया और इसमें उन्होंने बंगाल को सबसे ज्यादा सुविधाएं देकर सिद्ध कर दिया कि उनकी दृष्टि बंगाल से आगे का नहीं देख पाती है।
वर्ष 2001 की शुरुआत में तहलका खुलासों के बाद ममता ने अपनी पार्टी को राजग से अलग कर लिया, लेकिन जनवरी 2004 में वे फिर से सरकार में शामिल हो गईं। 20 मई, 2004 को आम चुनावों के बाद पार्टी की ओर से केवल वे ही चुनाव जीत सकीं। उन्हें कोयला और खानमंत्री बनाया गया, लेकिन 20 अक्टूबर, 2005 में उन्होंने राज्य की बुद्धदेव भट्‍टाचार्य सरकार के खिलाफ औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनें हासिल किए जाने का विरोध किया।
वर्ष 2009 के आम चुनावों से पहले ममता ने फिर एक बार यूपीए से नाता जोड़ लिया। इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं। उन्हें दूसरी बार रेलमंत्री बना दिया गया। 2010 के नगरीय चुनावों में तृणमूल ने फिर एक बार कोलकाता नगर निगम पर कब्जा कर लिया। 2011 में टीएमसी ने भारी बहुमत से विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। इस बार उन्होंने राज्य से वामपंथी मोर्चे का सफाया कर दिया था और लगातार 34 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद वामपंथी सत्ता से बाहर हो गए।
केन्द्न और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर, 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद नंदीग्राम में हिंसा की घटना हुई। माओवादियों के समर्थन से गांव वालों ने पुलिस कार्रवाई का प्रतिरोध किया, लेकिन गांव वालों और पुलिस बलों के हिंसक संघर्ष में 14 लोगों की मौत हुई थी।
2009 के संसदीय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में 19 सीटें जीत लीं। दूसरी बार रेलमंत्री बनने पर भी ममता का फोकस बंगाल और बंगाल के चुनाव ही रहा। वे रेलमंत्री के तौर पर अपना काम छोड़कर बंगाल में अपनी पार्टी का प्रचार करती रहीं।

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