सिंधु घाटी सभ्यता 200 साल के सूखे से हुई थी तबाह

भारतीय मूल के एक पुराजलवायु विशेषज्ञ के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं की अभूतपूर्व खोज में पता चला है कि लगभग 4200 वर्ष पूर्व 200 वर्षो तक के भयंकर दुर्भिक्ष (सूखा) के कारण सिंधु घाटी सभ्यता तबाह हो गई थी।

लंदन: भारतीय मूल के एक पुराजलवायु विशेषज्ञ के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं की अभूतपूर्व खोज में पता चला है कि लगभग 4200 वर्ष पूर्व 200 वर्षो तक के भयंकर दुर्भिक्ष (सूखा) के कारण सिंधु घाटी सभ्यता तबाह हो गई थी। इस सभ्यता के अवशेष आज के पाकिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत में मिलते हैं। एक प्राचीन झील की तलहटी के गाद से हासिल समस्थानिक आंकड़े के आधार पर अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण एशिया में जीवनयापन का सबसे बड़ा आधार मानसून चक्र दो शताब्दियों तक अवरुद्ध हो गया था जिससे सिंधु घाटी सभ्यता तबाह हो गई। इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
सिंधु घाटी को उसकी विस्तृत और सुनियोजित नगर योजना खास तौर से उन्नत नगरीय स्वच्छता प्रणाली और एक ऐसी लिपि जिसका आज तक खुलासा नहीं हो पाया है के लिए जाना जाता है।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पुराजलवायु विशेषज्ञ यामा दीक्षित ने व्याख्या की लेकिन हड़प्पा के लोग धीरे-धीरे शहरी सहभाजिता खोते गए और उनके शहर वीरान होते चले गए। अध्ययन दल ने कोटला दाहर के से प्राप्त गाद का निरीक्षण किया। कोटला दाहर सिंधु घाटी के उत्तर पश्चिम छोर पर स्थित एक प्राचीन झील आज के हरियाणा (भारत) में स्थित है और इसमें आज भी यदा-कदा बाढ़ आती है। अध्ययन दल ने गाद स्तर का अध्ययन करने के लिए कार्बनिक तत्वों के रेडियो कार्बन डेडिंग का इस्तेमाल किया।
विभिन्न स्तरों पर दल ने झील में पाए जाने वाले छोटे घोंघे संरक्षित जीवाश्म एकत्रित किए। घोंघे का खोल कैल्सियम कार्बोनेट का बना होता है जिसे एरागोनाइट कहा जाता है। दल ने एरागोनाइट के अणुओं में आक्सीजन पर ध्यान दिया जिसमें बहुतायत उपलब्ध ऑक्सीजन-16 की जगह दुर्लभ ऑक्सीजन-18 का अनुपान बना हुआ था।
कोटला दाहर चारों तरफ से घिरा हुआ नत तल है जिसमें मुख्य रूप से वर्षा का पानी जमा होता है और इससे निकासी नहीं होती। सूखे के दौरान ऑक्सीजन-18 के मुकाबले हल्की ऑक्सीजन-16 तेजी से वाष्पित हो जाता है जिससे कि झील में बचा पानी और परिणामस्वरूप घोंघे के खोल अक्सीजन-18 से संपृक्त हो जाते हैं।
टीम ने 4200 और 400 वर्ष पूर्व के बीच सापेक्षिक मात्रा में ऑक्सीजन-18 पाया है। यह आंकड़ा जियोलॉजी-1 में प्रकाशित किया गया है जिसमें कहा गया है कि नियमित ग्रीष्मकालीन मानसून करीब 200 वर्षो तक रुका रहा।
इस सूखे का कारण हालांकि अज्ञात है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक अनिल गुप्ता ने कहा कि 4200 वर्ष पूर्व किन कारकों ने जलवायु परिवर्तन किया होगा? हमें उस काल में उत्तरी अटलांटिक में सौर गतिविधि में कोई बदलाव नजर नहीं आता। (एजेंसी)

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