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इंचियोन: भारत ने आज यहां एशियाई खेलों के रोइंग एरीना से दो कांस्य पदक अपनी झोली में डाले जिसमें सेना के रोअर्स सवर्ण सिंह वर्क ने थकान से चूर होने के बावजूद सिंगल स्कल्स में तीसरा स्थान हासिल किया और इसके बाद पुरूष टीम ने ऐट्स टीम ने दिन का दूसरा कांसा जीता।
चुंगजू तांगेयूम लेक इंटरनेशनल रोइंग सेंटर में रोइंग स्पर्धायें खत्म हो गयी हैं और इसमें भारत के पदकों की संख्या तीन कांस्य ही रही। कल एक अन्य रोअर दुष्यंत चौहान ने भारत को पोडियम स्थान दिलाने में सफल रहे थे, उन्होंने पुरूष लाइटवेट सिंगल स्कल्स में कांस्य पदक जीता था।
यह प्रदर्शन हालांकि 2010 ग्वांग्झू एशियाड से कमतर ही रहा जिसमें देश के नाम एक स्वर्ण, तीन रजत और एक कांसा रहा था। सिख रेजीमेंट के नायक सूबेदार युवा रोअर सवर्ण सिंह ने आज साहसिक प्रयास किया। सिंह ने 2000 मी की दूरी सात मिनट 10.65 सेकेंड में पूरी की जो दो साल पहले लंदन ओलंपिक खेलों में उनके प्रदर्शन से बेहतर समय था, जिसमें उन्होंने सात मिनट 29.66 सेकेंड लिये थे।
लेकिन इस 24 वर्षीय पूर्व वालीबाल खिलाड़ी ने अंत में दक्षिण कोरिया के किम डोंगयंग को पछाड़ने की कोशिश की जिससे वह थक गये। वह इसके कारण नौका से पानी में गिर गये और उन्हें बचाव दल ने एम्बुलेंस तक पहुंचाया। किम डोंगयंग ने सात मिनट 6.17 सेकेंड से रजत पदक हासिल किया। भारतीय रोइंग महासंघ के महासचिव एम वी श्रीराम ने कहा, ‘उसे ठीक होना चाहिए। यह सिर्फ थकान थी जो रोअर्स को कई बार हो जाती है। उसने साहसिक प्रयास किया, उसे पिछले तीन से छह महीने में पीठ में बहुत दर्द था। उसे फिट बनाने में हमें सचमुच कड़ी मेहनत करनी पड़ी। ’
सिंह 1.89 मी लंबे हैं और उनका वजन 88 किग्रा है। पहली एक किमी की रेस में वह छह रोअर्स में सबसे आगे थे। वह आसानी से रजत पदक की दौड़ में बने हुए थे लेकिन ईरान के मोहसेन शादीनाघादेह ने उन्हें पीछे छोड़कर सात मिनट 5.66 सेकेंड में स्वर्ण पदक जीता। पंजाब में जन्में सिंह रेपेशाज के जरिये पदक की दौड़ में शामिल हुए। हैदराबाद में ट्रेनिंग करने वाले सिंह ने कहा, ‘मैंने बहुत मेहनत की और मैं बढ़त बनाये था लेकिन अंतिम 200 मी की दूरी पर रजत पदक से चूक गया। मैं पदक से खुश हूं लेकिन यह नहीं कह सकता कि मैं रोमांचित हूं। मुझे लगता है कि मैं इससे बेहतर कर सकता था, अगर मैंने कुछ महीने पहले हुई पीठ की समस्या के कारण ट्रेनिंग का कुछ समय नहीं गंवाया होता। मैं इसके कारण अच्छी तरह ट्रेनिंग नहीं कर सका। ’ इसके बाद भारतीय पुरूषों ने ऐट्स टीम कांसा अपनी झोली में डाला। वे विजेता चीन और जापान से पीछे रहे, जिन्होंने क्रमश: एक मिनट 27.96 सेकेंड के समय से स्वर्ण और एक मिनट 30.39 सेकेंड से रजत पदक हासिल किया।
कपिल शर्मा, रंजीत सिंह, 2010 सिंगल स्कल्स स्वर्ण पदक विजेता बजरंग लाल ताखड़, पी यू रोबिन, के सावन कुमार, मोहम्मद आजाद, मनिंदर सिंह, देविंदर सिंह और मोहम्मद अहमद की भारतीय टीम आधी दूरी के बाद चौथे स्थान पर चल रही थी और अतिरिक्त प्रयास के बाद कांसा जीतने में सफल रही। एशियाड इतिहास में भारत के एकमात्र स्वर्ण पदकधारी बजरंग लाल ताखड़ ने बाद कहा कि वह कांसा जीतकर खुश हैं क्योंकि उनकी टीम चौथे स्थान पर चल रही थी। उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत खुश हूं। ’
हालांकि महिला क्वाड्रपल स्कल्स फोरसम में भारत को निराशा हाथ लगी जिसमें अमनजोत कौर, संजुक्ता डुंग डुंग, एन लक्ष्मी देवी और नवनीत कौर ओवरआल आठवें स्थान पर रहीं जिन्होंने सात मिनट 10.55 सेकेंड का समय निकाला। इसमें स्वर्ण चीन ने जबकि हांगकांग ने रजत और इंडोनेशिया ने कांस्य पदक जीता। पुरूष डबल स्कल्स में ओम प्रकाश और दत्तू बब्बन भोकनलाल की भारतीय जोड़ी फाइनल्स में पांचवें स्थान पर रही, उन्होंने 2000 मी की रेस छह मिनट 37.01 सेकेंड में पूरी की। चार साल पहले ताखड़ ने भारत को ग्वांग्झू में एशियाई खेलों में रोइंग का पहला स्वर्ण पदक दिलाया था और पुरूष रोअरों ने दो और रजत तथा महिलाओं ने कांस्य पदक जीता था।
श्रीराम ने कहा, ‘मैं हमारे रोअर्स के प्रदर्शन से खुश हूं क्योंकि हमारे देश में सुविधाओं की कमी है। यहां की सुविधायें विश्व स्तरीय हैं और कोरिया के पास इस तरह की पांच छह सुविधायें हैं। चीन के पास 60 हैं। हमारे पास कोई नहीं है। रोइंग ऐसा खेल है जिसमें बेहतरीन परिणामों के लिये बेहतर उपकरणों की जरूरत होती है। ’ भारत यहां 22 पुरूष और नौ महिलाओं के रोइंग दल के साथ आया है, उनके साथ चार कोच और एक फिजियो है।