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काबुल : अफगानिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री अशरफ गनी को देश का नया राष्ट्रपति घोषित किया गया। यह घोषणा सत्ता साझा करने के मुद्दे पर प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ समझौते पर हस्ताक्षर के बाद की गई। इसके साथ ही चुनाव के विवादित परिणामों पर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध समाप्त हो गया।
14 जून के चुनाव में भारी फर्जीवाड़े के आरोपों के चलते देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था क्योंकि दोनों उम्मीदवारों ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया था। इससे अफगानिस्तान में ऐसे समय विकट स्थिति पैदा हो गई थी जब अमेरिकी नेतृत्व वाले बल तालिबान के खिलाफ 13 साल से चले आ रहे अपने युद्ध को खत्म कर रहे हैं ।
बहु प्रतीक्षित ‘एकता सरकार’ समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राष्ट्रपति भवन में 10 मिनट से भी कम चले सादे समारोह में गनी ने अब्दुल्ला को गले से लगा लिया। अब्दुल्ला अब ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ (सीईओ) के नए पद के लिए अपनी पसंद का व्यक्ति चुनेंगे। यह पद प्रधानमंत्री के बराबर है। इससे सत्ता संतुलन स्थापित होने के साथ अफगानिस्तान एक नए युग में प्रवेश करेगा।
राष्ट्रपति भवन में किसी भी उम्मीदवार ने कुछ नहीं कहा और यह अस्पष्ट है कि वे देश को कब संबोधित करेंगे या एकता समझौता आधिकारिक रूप से कब प्रकाशित किया जाएगा। चुनाव आयोग प्रमुख अहमद यूसुफ नूरिस्तानी ने बाद में संवाददाताओं से कहा, ‘स्वतंत्र चुनाव आयोग डॉ. अशरफ गनी को राष्ट्रपति घोषित करता है और लिहाजा चुनाव प्रक्रिया के समापन की घोषणा की जाती है।’
‘चुनाव प्रक्रिया के दौरान सभी पक्षों की ओर से फर्जीवाड़ा हुआ..जिसने लोगों को चिंतित किया है।’ नूरिस्तानी ने जीत के अंतराल, परिणाम संख्या और संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में ऑडिट के दौरान निकाले गए फर्जी मत पत्रों की संख्या के बारे में नहीं बताया। संविधान के तहत राष्ट्रपति के पास लगभग सभी नियंत्रण होता है और नई सरकार को खराब होते सुरक्षा और आर्थिक मोर्चों पर बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ेगा।
समझौते पर दस्तखत के बाद निवर्तमान राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि हमारे भाइयों डॉ. अशरफ गनी और डॉ. अब्दुल्ला ने देश के कल्याण और समृद्धि के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘मैं उम्मीद करता हूं कि उनके प्रयासों से इस देश को स्थाई शांति हासिल होगी।’ भारी फर्जीवाड़े के आरोपों के चलते मतगणना में बाधा उत्पन्न हुई थी। इससे तालिबान विद्रोहियों का हौसला बढ़ा तथा सहायता पर निर्भर अर्थव्यवस्था और कमजोर हुई।