चुनावी उथल-पुथल शांत करने कैरी पहुंचे अफगानिस्तान
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चुनावी उथल-पुथल शांत करने कैरी पहुंचे अफगानिस्तान

अफगानिस्तान में पिछले महीने राष्ट्रपति चुनाव के विभिन्न दौर पर उत्पन्न तीखे विवाद से राजनीतिक स्थिति बिगड़ने के जोखिम के मद्दनेजर अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने आज इस पद के उम्मीदवारों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की।

काबुल : अफगानिस्तान में पिछले महीने राष्ट्रपति चुनाव के विभिन्न दौर पर उत्पन्न तीखे विवाद से राजनीतिक स्थिति बिगड़ने के जोखिम के मद्दनेजर अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने आज इस पद के उम्मीदवारों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की।

कैरी की इस यात्रा का आयोजन जल्दबाजी में हुआ और वह देर रात अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पहुंचे। आज वह पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्ला अब्दुल्ला और पूर्व वित्त मंत्री अशरफ गनी और राष्ट्रपति हामिद करजई से मिल रहे हैं।

उनकी इस मुलाकात का उद्देश्य दोनों ही उम्मीदवारों को इस बात के लिए राजी करना है कि वे विजय की घोषणा या सरकार बनाने का प्रयास नहीं करें और मतदान में भारी गड़बडी के आरोपों की संयुक्त राष्ट्र द्वारा जांच होने का इंतजार करें।

अमेरिका के लिए चिंता की बात यह है कि उसने एक मजबूत अफगानिस्तान के लिये एक दशक से ज्यादा जो प्रयास किये वह खतरे में ना पड जांय । अमेरिका की कोशिश थी कि उसके काबुल से हटने के बाद अफगानिस्तान अलकायदा जैसे उग्रवादी समूह और तालिबान की गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सक्षम हो ।

संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के प्रमुख जान क्यूबिस के साथ बैठक के बाद कैरी ने कहा, ‘अफगानिस्तान को लेकर हम वाकई एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। वैधता अधर में है। संक्रमण की भावी क्षमता अधर में है इसलिए हमारे पास करने को बहुत काम है।’ उन्होंने कहा कि एक ऐसी प्रक्रिया तैयार करने की आशा है जो, कोई भी अफगानिस्तान का उचित नेता बनकर उभरे, उसे वैधता प्रदान करे।

क्यूबिस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा चुनाव नतीजा ढूढ रहा है जिससे देश में स्थायित्व और एकता मजबूत करे। इराक के आतंकवाद के दलदल में फंस जाने के बीच, अफगानिस्तान का चुनाव अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए दो सुरक्षित देश खड़े करने के प्रयास के लिए नयी चुनौती बनकर सामने आया है।

प्रारंभिक परिणामों में गनी विजयी रहे हैं लेकिन अब्दुल्ला ने खुद को असली विजेता घोषित कर दिया और कहा कि भारी गड़बड़ी के कारण वह जीत से वंचित हो गए। गनी विवादास्द माहौल में पहले भी राष्ट्रपति चुनाव हार चुके हैं।

चुनावी गतिरोध से यह आशंका बढ़ गई है कि यह विरोध जातीय हिंसा में बदल सकता है। साथ ही यह भी भय है कि कहीं यह अफगानिस्तान को 1992-96 के बीच चले गृहयुद्ध में वापस न ले आए। अफगानिस्तान के किसी भी नए राष्ट्रपति के सामने कई चुनौतियां होंगी। उन्हें एक ऐसे युद्धरत देश से जूझना होगा जहां से अंतराष्ट्रीय सेनाएं अफगानिस्तान की सेना को अड़ियल तालिबान के साथ खूनी संघर्ष में उलझा हुआ छोड़कर जा रही होंगी।

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