ज़ी हेल्पलाइन की बदौलत बकाये वेतन का 70 फीसदी शासन ने किया जारी
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ज़ी हेल्पलाइन की बदौलत बकाये वेतन का 70 फीसदी शासन ने किया जारी

रुड़की की प्रेम प्रभा सैनी (68), किंडर गार्डन, श्री गांधी बाल निकेतन, रूड़की से प्रिंसिपल की पद से 2005 में रिटायर हुईं। उन्होंने 30 साल तक मेहनत और ईमानदारी से नौकरी की। इससे पहले 1987 में उन्हें प्रमोशन मिला। हालांकि शिक्षा विभाग के भ्रष्ट बाबुओं की वजह से उन्हें प्रिंसिपल का पे-स्केल पाने में भी ख़ासी दिक्कतें झेलनी पड़ीं।

ज़ी मीडिया/हेल्‍पलाइन डेस्‍क
रूड़की : रुड़की की प्रेम प्रभा सैनी (68), किंडर गार्डन, श्री गांधी बाल निकेतन, रूड़की से प्रिंसिपल की पद से 2005 में रिटायर हुईं। उन्होंने 30 साल तक मेहनत और ईमानदारी से नौकरी की। इससे पहले 1987 में उन्हें प्रमोशन मिला। हालांकि शिक्षा विभाग के भ्रष्ट बाबुओं की वजह से उन्हें प्रिंसिपल का पे-स्केल पाने में भी ख़ासी दिक्कतें झेलनी पड़ीं। इससे पहले भी 2002 से 2005 के बीच स्कूल प्रबन्धन और शिक्षा विभाग के भ्रष्ट बाबुओं की मिलीभगत की वजह से प्रेम प्रभा को तेरह महीने तनख्वाह नहीं मिली। इतना ही नहीं, न सिर्फ़ रिटायर होने तक, बल्कि उसके बाद भी आठ साल तक उन्हें पे-रिवीज़न का बक़ाया नहीं दिया गया।

वो आठ साल तक उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में पसरी अंधेरगर्दी का सितम झेलती रही। उनकी 13 महीने की बकाया तनख्वाह और पे-रिवीज़न से जुड़ा करीब पांच लाख रुपये 11 साल से फ़ाइलों में अटकी रही। हारकर अगस्त, 2013 में सैनी दम्पति ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। दरअसल बक़ाया राशि का 75 फ़ीसदी सरकार और 25 फ़ीसदी स्कूल प्रबन्धन को देना है। हक़ की मुहिम के बाद ढ़ाई साल से धूल फाँक रहे राज्य सूचना आयोग के नोटिस पर भी हरक़त हुई। अक्टूबर में ज़िला शिक्षा अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट देहरादून भेजी। वहां से फ़ौरन भुगतान करके रिपोर्ट देने का हुक़्म हुआ। लेकिन प्रेम प्रभा सैनी को स्कूल ने कुछ नहीं दिया। ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर तीन महीने पहले भले ही हरिद्वार के ज़िला शिक्षा अधिकारी ने प्रेम प्रभा सैनी को उनका बकाया देने के लिए अपना 75 फ़ीसदी हिस्सा स्कूल प्रबन्धन के पास भेज दिया। लेकिन रुड़की के श्री गांधी बाल निकेतन स्कूल के मैनेजमेंट की तानाशाही अब भी बेलग़ाम है। वो अब भी हाईकोर्ट, सरकार और सूचना आयुक्त के हुक़्म को ठेंगा दिखाने पर आमादा है और उसका बाल तक बाँका नहीं हुआ है। दिसम्बर में हमने श्री गांधी बाल निकेतन स्कूल के मैनेजमेंट की तानाशाही को लेकर एक बार फिर ज़िला शिक्षा अधिकारी को आड़े हाथ लिया। फिर स्कूल मैनेजमेंट को और रिमाइंडर भेजा गया है। लेकिन कानूनी कार्रवाई अब भी नदारद ही है। ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम ज़ारी है और जब तक प्रेम प्रभा सैनी को उनका बकाया नहीं मिल जाता तब तक ज़ी हेल्पलाइन भी चैन से नहीं बैठेगी।
ज़ी हेल्पलाइन ने छात्र को दिलाया 25 हज़ार रुपये का वज़ीफा
जयपुर : जयपुर के जयनारायण गुर्जर ने जसोला देवी टीचर ट्रेनिंग कॉलेज से बीएड का कोर्स कर रहे हैं। उन्हें पिछले साल जुलाई से छात्रवृत्ति नहीं मिली। इस हक़ को लेकर जयनारायण ने कई बार कॉलेज के प्रिंसिपल और ज़िला समाज कल्याण अधिकारी से गुहार लगायी। इसका कोई असर नहीं हुआ तो अप्रैल में जयनारायण ने ज़ी हेल्पलाइन से सम्पर्क किया। हमने उसके हक़ की ख़ातिर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. हर्ष के अलावा समाज कल्याण विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पवन पुनिया को झकझोरा तो पता चला घूसखोर बाबुओं ने फ़ार्म भरने में जानबूझकर कमी छोड़ी थी, जिसे दुरुस्त करके जुलाई में जयनारायण को बकाया छात्रवृत्ति का 25 हज़ार रुपये दे दिया गया।
 
ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर मिले पीएफ के 75 हज़ार रुपये
कच्छ : ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर मिले पीएफ के 75 हज़ार रुपये
कच्छ के भुवनेश प्रताप सिंह ने 2008 में तेरापंथ फूड्स लिमिटेड की दस साल पुरानी नौकरी छोड़ दी। इसके पांच साल बाद तक भी उन्हें अपने पीएफ और ग्रेच्यूटी वगैरह की रकम नहीं मिली। इसे लेकर भुवनेश ने पाँच साल तक कच्छ के पीएफ दफ़्तर और तेरापंथ फूड्स लिमिटेड के पास खूब चक्कर काटे। मायूस होकर मई में भुवनेश ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने भुवनेश के हक़ की ख़ातिर पीएफ विभाग और तेरापंथ फूड्स के मालिकों को झकझोरा तो चार महीने बाद भुवनेश को उसके 75 हज़ार रुपये मिल पाये।
 
‘हक़’ की बदौलत कर्मचारी को मिला बकाया वेतन
गाजियाबाद : गाजियाबाद के विनोद कुमार शर्मा ने गुड़गांव की सी एंड सी कन्ट्रक्शन लिमिटेड में एचआर मैनेजर की नौकरी की। लेकिन सी एंड सी कन्ट्रक्शन के मैनेजमेंट के रवैये को देखते हुए पिछले साल अगस्त में उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। तब सी एंड सी कन्ट्रक्शन ने महीने भर में विनोद को उनका बकाया चुकाने का वादा किया। लेकिन साल भर तक सी एंड सी कन्ट्रक्शन की पैंतरेबाजी झेलने के बाद जून में विनोद ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने उनके हक़ को लेकर सी एंड सी कन्ट्रक्शन के एमडी, सीएस सेठी और एचआर हेड, डी पी सिंह को इस क़दर झकझोरा कि सितम्बर में विनोद को उनके सवा तिरसठ हज़ार रुपये मिल गए।
ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर मिले पीएफ के 34 हज़ार रुपये
नोएडा : हेल्पलाइन की मुहिम पर मिले पीएफ के 34 हज़ार रुपये
नोएडा के जीवन सिंह बिष्ट को 2006 में न्यूमैट्रिक इंज़ीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड में चार हज़ार रुपये पर ऑफ़िस ब्यॉय की नौकरी मिली। दो साल बाद 2008 में कम्पनी ने जीवन सिंह को कर्मचारी का दर्ज़ा दिया। लेकिन तीन साल बाद ही उसे नौकरी से निकाल दिया गया। फिर पीएफ की रकम देने से सीईओ शैलैन्द्र प्रसाद सिंह मुकर गया। लाचार होकर अक्टूबर में जीवन सिंह बिष्ट ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। उनके हक़ को लेकर हमने नोएडा के पीएफ कमिश्नर, शशांक दिनकर को झकझोरा। दिनकर ने फ़ौरी कार्रवाई की और जीवन सिंह महीने भर में 34 हज़ार रुपये का भुगतान हो गया।
 
ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर ऋतिक को मिला 15 हज़ार रुपये रिफंड
दिल्ली : दिल्ली के ऋतिक बंसल ने दो साल पहले मुरथल के इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट में सिविल इंज़ीनियरिंग कोर्स में दाखिला लिया। कॉलेज पहुंचकर ऋतिक को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलीं तो उसने दाखिला रद्द करने का आवेदन कॉलेज मैनेजमेंट को दे दिया। लेकिन कॉलेज ने उसे बेइज्जत करके बैरंग लौटा दिया। फिर साल भर तक कॉलेज मैनेजमेंट रिफंड ऋतिक को दौड़ाता ही रहा। हारकर जुलाई में ऋतिक ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने ऋतिक के हक़ की ख़ातिर, कॉलेज के चेयरमैन, देवेन्दर कौशिक और को-चेयरमैन मुनीश बजाज़ को घेरा तो अक्टूबर में ऋतिक को उसके 15 हज़ार रुपये लौटा दिये गये।
 
‘हक़’ मुहिम रंग लायी, बुज़ुर्ग महिला को मिला फ्लैट बुकिंग का रिफंड
गाजियाबाद : 65 साल की विधवा किरण शर्मा ने 1995 में 50 हज़ार रुपये देकर ग़ाज़ियाबाद में अंसल हाउसिंग की सुमंगलम बिल्डिंग में एक दुकान बुक की। लेकिन 17 साल बाद भी जब किरण को दुकान नहीं मिली तो उन्होंने अंसल हाउसिंग को अलॉटमेंट रद्द करके पैसा लौटाने की अर्ज़ी दी। इसी रिफंड को लेकर अंसल हाउसिंग ने बुज़ुर्ग किरण शर्मा को दो साल दौड़ाया। तब हारकर उन्होंने सितम्बर में ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने किरण के हक़ को लेकर अंसल हाउसिंग के आला अफ़सरों को आईना दिखाया तो नवम्बर में उन्हें 52,370 रुपये का चेक दे दिया गया।
‘हक़’ की मुहिम पर तहसीदार ने की वसूली, सुनील मिला इन्साफ
गुड़गांव : गुड़गांव के सुनील कुमार को 1999 में एसडी ब्यॉज़ सीनियर सेकेंड्री स्कूल में लेक्चरर की नौकरी मिली। नौ साल बाद प्रबन्धन ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। फिर चार साल उन्हें ग्रेच्यूटी के लिए दौड़ाता गया। हारकर दो साल पहले सुनील ने गुड़गांव के लेबर कोर्ट में गुहार लगायी, जिसने पिछले साल प्रबन्धन को 65 हज़ार 255 रुपये चुकाने का आदेश दिया। इस आदेश की तामील का ज़िम्मा गुड़गांव के तहसीलदार, सतीश सिंगला को मिला। लेकिन सिंगला भी सुनील को दौड़ाने लगा। मायूस होकर अक्टूबर में सुनील ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने सतीश सिंगला को इस क़दर झकझोरा कि महज़ महीने भर में सुनील को 65,255 रुपये का भुगतान हो गया।
 
जगदीश को ‘हक़’ की बदौलत मिले 12 लाख 60 हज़ार रुपये
झारसूगुडा : झारसूगुडा, उड़ीसा के जगदीश कुमार भारद्वाज ने छह महीने पहले गोवा के मिरलोक कदम्ब प्रोजेक्ट में 13 लाख रुपये देकर एक फ्लैट बुक किया। लेकिन तीन महीने पहले उनकी आर्थिक हालत बिगड़ गयी तो मज़बूरन उन्होंने फ्लैट की बुकिंग रद्द करने की अर्ज़ी दी। तब मिरलोक कदम्ब प्रोजेक्ट के सीईओ शेखर ने चालीस हज़ार रुपये काटकर बुकिंग रकम लौटाने की बात की थी। लेकिन अगले दो महीने तक वो जगदीश को टरकाता ही रहा। हारकर दिसम्बर में जगदीश ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। तब हमने बिल्डर शेखर को ऐसा झकझोरा कि हफ़्ते भर में जगदीश को उसके 12 लाख 60 हज़ार रुपये मिल गये।

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