नरेंद्र दामोदर दास मोदी : सीएम से पीएम तक

नरेंद्र मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने का शोर वातावरण में गूंजने लगा है। 2 सितंबर 2014 को नरेंद्र मोदी धर्मनिरपेक्ष भारतीय गणतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में अपने 100 दिन के कामकाज का हिसाब देश को देंगे। हालांकि सौ दिन का समय किसी भी सरकार के लिए बहुत अधिक नहीं होता है, लेकिन चूंकि सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी हैं इसलिए सौ दिनों का मतलब है।

नरेंद्र दामोदर दास मोदी : सीएम से पीएम तक

प्रवीण कुमार

केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के 100 दिन पूरे होने का शोर वातावरण में गूंजने लगा है। 2 सितंबर 2014 को नरेंद्र मोदी धर्मनिरपेक्ष भारतीय गणतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में अपने 100 दिन के कामकाज का हिसाब देश को देंगे। हालांकि सौ दिन का समय किसी भी सरकार के लिए बहुत अधिक नहीं होता है, लेकिन चूंकि सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी हैं इसलिए सौ दिनों का मतलब है। निश्चित रूप से मोदी की जगह कोई और प्रधानमंत्री होता तो शायद लोगों को यह भी याद नहीं रहता कि सरकार के सौ दिन पूरे होने वाले हैं।

दरअसल पहली बार देश का प्रधानमंत्री एक ऐसा शख्स बना है जिसे लगता है कि हमारी सरकार ने इन सौ दिनों में देश के लिए क्या-क्या किया है, जनता को बताना चाहिए और देश की भी उस नरेंद्र मोदी सरकार से सौ दिन के कामकाज का लेखाजोखा जानने में रूचि है जिसे वह प्रचंड बहुमत से जिताकर केंद्रीय सत्ता की बागडोर सौंपी है। सौ दिनों की मोदी सरकार में क्या अच्छा हुआ और क्या बुरा हुआ, यहां हम इस बहस में नहीं पड़ने जा रहे हैं। यहां हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि चाय बेचने वाला एक मामूली इंसान किस तरह से गुजरात जैसे समृद्ध प्रदेश का मुख्यमंत्री बनकर उसे अतिसमृद्ध की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया और जो पैमाना बना दिल्ली में प्रधानमंत्री की कुर्सी का।

कहते हैं कि राजनीति में सबको सब-कुछ नहीं मिलता है, लेकिन भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी ऐसे इकलौते राजनेता हैं जिन्होंने जब जो चाहा मिला, भले ही उसे पाने के लिए उन्हें बहुतेरे चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अब प्रधानमंत्री के रूप में भी नरेंद्र मोदी के समक्ष बहुतेरे चुनौतियां आएंगी। लेकिन मोदी को करीब से जानने वाले कहते हैं कि मोदी देश के प्रधानमंत्री के रास्ते में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना करेंगे। नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने जब अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार गुजरात की सत्ता संभाली थी तब किसी ने, शायद खुद मोदी ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें प्रधानमंत्री बनकर भारत सरकार का कार्यभार संभालना पड़ेगा। निश्चित रूप से गुजरात की सत्ता ने ही मोदी को वो आधार दिया जिसके बूते उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को पाने तक का सफर तय किया।

दिसंबर 2012 में गुजरात में नरेंद्र मोदी ने जीत की हैट्रिक लगाई थी। यह जीत नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की जीत थी। पिछले डेढ़ दशक से लगातार गुजरात में भाजपा की सरकार है और खास बात यह है कि इन वर्षों में गुजरात ने आर्थिक और सामाजिक दोनों ही मोर्चे पर भारी तरक्की की है। गुजरात की सफलताएं इतनी प्रभावशाली हैं कि देश क्या दुनिया की निगाहें गुजरात पर आकर ठहर जाती हैं। निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी एक ईमानदार राजनेता हैं। नैतिक जिम्मेदारी के साथ जीते हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता संदेह से परे है। जब वो गुजरात में थे तो विकास के लिए उनकी गिनती देश के काबिल मुख्यमंत्रियों में होती थी। मोदी के नाम पर भाजपा के कार्यकर्ता जोश से भर जाते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा जिस विचारधारा से ऊर्जा पाती है, मोदी उसके सबसे बड़े प्रतीक पुरुष हैं। मोदी ने इस विचारधारा को नया आयाम दिया है। उन्होंने भाजपा के `हिंदुत्व` को `विकास` से जोड़कर एक नया मॉडल पेश करने की कोशिश की जिसमें वह बेहद सफल रहे।

दरअसल जिस सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में राम मंदिर के लिए रथयात्रा शुरू की थी, वहीं से आशीर्वाद लेकर नरेंद्र मोदी ने भी औपचारिक रूप से गुजरात में अपना चुनावी अभियान छह करोड़ गुजरातियों के विकास के नारे के साथ शुरू किया था। यह पहला मौका था जब हिंदुत्व की जमीन पर खड़े नरेंद्र मोदी का छह करोड़ गुजरातियों के विकास का नारा प्रभावी दिखा। सद्भावना उपवास के बाद मोदी ने गुजरात में किसी मुस्लिम को भाजपा का टिकट नहीं दिया, लेकिन विकास में बराबर की भागीदारी के नाम पर उन्हें भी अपने अभियान में शामिल करने की कोशिश की। इसके अलावा मोदी ने महिलाओं और युवाओं पर सबसे ज्यादा फोकस किया। गुजरात ने अपने पिछले रिकार्ड को तोड़ते हुए 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत का नया रिकार्ड बनाया। साल 1995 में विधानसभा चुनावों में रिकार्ड 64.70 फीसदी मतदान हुआ था। तब केशुभाई पटेल भाजपा के मुख्यमंत्री बने थे। 2012 के चुनावों ने पिछले रिकार्ड को ध्वस्त करते हुए 71.30 फीसदी का नया रिकार्ड कायम किया है। मोदी ने सत्ता की हैट्रिक बनाई।

गोधरा कांड के बाद राज्य भर में भड़के दंगों के बाद साल 2002 के विधानसभा चुनावों में 61.55 फीसदी मतदान हुआ था और भाजपा सत्ता में आई थी। साल 2007 के विधानसभा चुनावों में हालांकि 59.77 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था और तब भी भाजपा को सत्ता मिली थी। उस समय भाजपा को कुल 182 में से 117 सीटें मिली थी। कहने का मतलब यह कि मतदान प्रतिशत बढ़ने का तो गुजरात में भाजपा को फायदा होता ही है साथ ही एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर के पंख भी इस प्रदेश में आकर कट जाते हैं। नरेंद्र मोदी ने मतदान के अंतिम चरण में मतदान करने से पहले कहा भी था कि गुजरात में प्रो-इनकम्बेंसी फैक्टर काम करता है। गुजरात में भाजपा की भव्य विजय होगी। निश्चित रूप से यह विकास में समाहित हिंदुत्व का एजेंडा ही है जो नरेंद्र मोदी की साख को लगातार बढ़ा रहा है।

दरअसल मोदी हिंदुत्व के जिस एजेंडे को लेकर चल रहे हैं वह वास्तविक हिंदुत्व की परिभाषा से ओतप्रोत है। मोदी के हिंदुत्व एजेंडा को आप सांप्रदायिकता के चश्मे से नहीं देख सकते हैं। नरेंद्र मोदी दरअसल वास्तविक राष्ट्रवाद के आधार पर शासन चलाते हैं और यह सत्य नियम है कि वास्तविक राष्ट्रवाद की बुनियाद पर काम किया जाए तो हिंदुत्व उस राष्ट्र का भविष्य बदल देता है। सोमनाथ मंदिर के सामने ठेला लगाने वाले मुसलमान भाई को इस बात से कोई मतलब नहीं कि प्रदेश में कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। वह मोदी राज में काफी सुरक्षित महसूस करते रहे हैं। असुरक्षा का भाव होने का सवाल अगर उनसे पूछेंगे तो उनका कहना है कि साहब! यहां मंदिर में सब हिंदू ही तो आते हैं। आज तक तो ऐसा कोई भाव नहीं आया।

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी देश के ऐसे इकलौते राजनेता रहे जो जिंदगी अपनी शर्तों पर जीते हैं और इसी दर्शन के साथ वह तीसरी बार सत्ता में आए। वर्ष 2002 में गुजरात में गोधरा की आग फैली थी तो पूरी दुनिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अछूत मान लिया गया था। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उन्हें `राजधर्म` का पालन करने की नसीहत दे डाली थी। ब्रिटेन ने 2002 में द्विपक्षीय सम्बंधों पर रोक लगा दी थी और मार्च-2005 में अमरीका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था। तब मोदी ने कसम खाई थी कि वह जीते जी अमेरिका की धरती पर कदम नहीं रखेंगे। और फिर मोदी ने गुजरात के परिदृश्य को ऐसे बदला कि गुजरात बना विकास मॉडल और नरेंद्र मोदी बने विकास पुरूष।

नरेंद्र मोदी ने जब अक्तूबर 2001 में मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार कार्यभार संभाला था तब गुजरात 26 जनवरी, 2001 को आए विनाशकारी भूकंप की विभीषिका तले दबा हुआ था। तब लगता था मानो गुजरात फिर कभी उठ नहीं पाएगा। लेकिन पुनर्वास और पुनर्निमाण के तेज प्रयासों और पुन: उठ खड़े होने के लोगों के अदम्य साहस और जज्बे से गुजरात विकास के मार्ग पर अग्रसर हो गया। उस दौर में गुजरात के पुनर्वास कार्य को रोल मॉडल के तौर पर स्वीकार किया गया। अपने डेढ़ दशक से अधिक के शासनकाल में मोदी के विकासवादी सोच के कुछ अहम फैसलों ने गुजरात कि किस्मत ही बदल दी।

किसी भी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था की बात जब हम करते हैं तो निश्चित रूप से उसके सकल घरेलू उत्पाद दर (जीडीपी दर), कृषि विकास दर, औद्योगिक विकास दर और सेवा क्षेत्र में तरक्की की जमीनी हकीकत को आंका जाता है। गुजरात के सकल घरेलू उत्पाद (तरक्की की रफ्तार) की बात करें तो यह हमेशा डबल डिजिट में रही है। वर्ष 2000 के बाद गुजरात में कृषि की विकास दर बहुत अच्छी रही है। गुजरात में कृषि विकास दर हमेशा 10 प्रतिशत से ज्यादा रही है। वर्ष 2001 में गुजरात में 2000 मेगावाट बिजली पैदा होती थी जो उसकी अपनी जरूरत से बहुत कम थी, लेकिन 2012 के अंत में गुजरात में अतिरिक्त बिजली पैदा होने लगी। चूंकि बिजली औद्योगिक विकास के लिए संजीवनी होती है इसलिए गुजरात में औद्योगिक विकास की रफ्तार भी तेज है।

लोग अक्सर पूछते हैं कि गुजरात मॉडल क्या है। दरअसल इस राज्य में व्यक्तिगत पहल और उद्यमशीलता के लिए पूरी आजादी दी गई है और राज्य ने इसके लिए अनुकूल माहौल भी पैदा किया है। यह नियोजन के सशक्तिकरण और लोगों के सशक्तिकरण का बेजोड़ उदाहरण है। इसमें केंद्र के अनुदान से चलनेवाली योजनाओं के साथ राज्य की विशिष्ट योजनाओँ को पूरक बनाया गया है। यह विकास का एक मानक सांचा है जिसे कोई भी राज्य अपनाकर तरक्की की राह पकड़ सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के इसी मानक सांचे को प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने का सशक्त माध्यम बनाया।

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले चुनावी अभियान के दौरान अपने भाषणों में अक्सर कहते थे कि कांग्रेस ने देश का भरोसा तोड़ा है। यह `भरोसा` शब्द भी एक चुनौती है नरेंद्र मोदी के लिए। देश की जनता ने आपको प्रचंड बहुमत से जिताकर आपके ऊपर भरोसा किया है। आप आएंगे तो भ्रष्टाचार मिट जाएगा, महंगाई खात्म हो जाएगी, बेटियां असुरक्षित नहीं रहेंगी, सर्व धर्म सम्भाव की अस्मिता को ठोस नहीं पहुंचेगी, युवा बेरोजगार नहीं रहेंगे, देश में नक्सली हमला नहीं होगा, सबको बिजली और पीने के पानी का हक आदि-आदि। इन अहम् समस्याओं को लेकर एक ठोस एजेंडा देश के सामने रखना होगा और सिर्फ रखने से नहीं होगा, बल्कि देश की जनता को यह समझ में आना चाहिए कि हां, इस एजेंडे से वाकई उसका, उसके परिवार, समाज और अंतत: देश का भला होगा। तो गुजरात के मुख्यमंत्री से केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के लिए `जन भरोसा` को बरकरार रखना होगा।

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