घिरे हैं हम सवाल से...हमें जवाब चाहिए!

टीवी पत्रकारिता आज जिस दौर में पहुंच चुकी है और मार्केटिंग के जिस खेल में आज के पत्रकार चाहे अनचाहे शामिल हो चुके हैं उसमें एक ब्रांड बन जाना तो आसान होता है लेकिन उस ब्रांड की गरिमा को बरकरार रखना और अपनी पेशेगत ईमानदारी बनाए रखना खासा मुश्किल।

घिरे हैं हम सवाल से...हमें जवाब चाहिए!

अतुल सिन्हा

टीवी पत्रकारिता आज जिस दौर में पहुंच चुकी है और मार्केटिंग के जिस खेल में आज के पत्रकार चाहे अनचाहे शामिल हो चुके हैं उसमें एक ब्रांड बन जाना तो आसान होता है लेकिन उस ब्रांड की गरिमा को बरकरार रखना और अपनी पेशेगत ईमानदारी बनाए रखना खासा मुश्किल। न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर के पास जो कुछ हुआ उसे लेकर तमाम बहस चल रही है। किसने सही किया किसने गलत, पत्रकारिता कितनी शर्मसार हुई] देश के पत्रकारों की छवि कितनी खराब हुई और क्या एक वरिष्ठ पत्रकार को इस तरह की हरकत शोभा देती है?

दरअसल जब आपकी निजी सोच और पूर्वाग्रह पत्रकारिता पर हावी होने लगती है तो कहीं न कहीं आपके व्यवहार और बातचीत में भी उसी की झलक दिखने लगती है। पॉजीटिविटी और निगेटिविटी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। किसी भी घटना को देखने का आपका अपना नज़रिया हो सकता है, लेकिन कोई ज़रूरी नहीं कि हर कोई उस नज़रिये से इत्तेफाक रखे। रही बात वरिष्ठता की, तो इसके अपने अपने पैमाने हैं।   
अब ज़रा कुछ तथ्यों पर गौर कीजिए। भारत की टीवी न्यूज़ इंडस्ट्री लगातार फल फूल रही है। तकरीबन आठ सौ चैनल्स इस वक्त देश के तमाम हिस्सों से चल रहे हैं। जिनमें से करीब 200 न्यूज़ चैनल्स हैं। सरकारी आंकड़ों पर ही गौर करें तो आठ सालों में भारत में टीवी इंडस्ट्री का करोबार 18,300 करोड़ से बढ़कर 50,140 करोड़ का हो गया है। दुनिया भर में टीवी के बाज़ार में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे नंबर पर है। जाहिर है जब इतना बड़ा बाज़ार है तो इसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उतने ही लोग भी चाहिए। यहां यह साफ कर देना ज़रूरी है कि ‘लोग’ का मतलब पत्रकार नहीं हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, इस वक्त भारतीय टीवी इंडस्ट्री में तकरीबन एक लाख से ज्यादा लोग नौकरी कर रहे हैं, जिनमें से तकरीबन 60 फीसदी न्यूज़ चैनलों के लिए काम करते हैं। यानी करीब 60 हज़ार लोग। जब भी हम किसी चैनल की ढांचागत स्थिति की बात करते हैं तो इनमें 40 फीसदी कर्मचारी वो होते हैं जो चैनल की मार्केटिंग, सेल्स, डिस्ट्रिब्यूशन और प्रशासनिक कामकाज आदि से जुड़े होते हैं जबकि बाकी के 60 फीसदी कंटेट के लोग होते हैं। कंटेट के लोग यानी वो लोग जिन्हें आप पत्रकारों की श्रेणी में मान सकते हैं। इनमें हर ज़िले और कस्बे में फैले वो हज़ारों स्ट्रिंगर्स औऱ रिपोर्टर्स होते हैं जहां से खबरें वाकई जन्म लेती हैं और किसी चैनल के लिए एक बेहतरीन कहानी बनती हैं। फिर हज़ारों की संख्या में वो लोग होते हैं जो इन खबरों को सधे हुए अंदाज़ में लिखकर और उनके विजुअल्स को एडिट कर स्क्रीन पर लाने का काम करते हैं। फिर आता है उन एंकर्स का काम जो दर्शकों की निगाह में असली स्टार बन जाते हैं और जिन्हें पत्रकारिता में महान योगदान के लिए तमाम तमगों से नवाज़ा जाता है। इनकी संख्या गनती की है। अगर कुल मिलाकर देखें तो इस इंडस्ट्री में काम करने वालों का एक फीसदी से भी कम। इनमें से भी कुछ क्रीमीलेयर हैं जिन्हें आप उंगलियों पर गिन सकते हैं। इस इंडस्ट्री में ये जुमला बेहद आम बना दिया गया है– जो दिखता है वो बिकता है। तो उंगलियों पर गिने जाने वाले यही चंद नाम बिकाऊ बना दिए गए हैं और इन्हें ही तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों की श्रेणी में ला खड़ा किया गया है।

‘जो दिखता है, वो बिकता है’ का जो गणित है, वो आपको कहीं न कहीं एक ऐसे अहंकार से भर देता है जहां आप जो बोल रहे होते हैं, उसमें भी कहीं न कहीं खबरों में बने रहने की भूख सी झलकती है। चाहे मैडिसन स्क्वायर हो या फिर अपने देश के तमाम मेगा इलेक्शन शोज़.. जहां ये ‘बिकाऊ ब्रांड’ अपनी पत्रकारिता का नमूना पेश करते अक्सर नज़र आ जाते हैं। और अब तो फैशन बड़े बड़े कॉन्क्लेव का है जहां ग्लैमर भी है, कनेक्शन भी और मोटी कमाई भी। ऐसे में आप असली पत्रकार और पत्रकारिता को तलाशते रहिए।

तो आखिर वरिष्ठ पत्रकार की परिभाषा है क्या...? क्या बाल सफेद हो जाना? क्या इस पेशे में तमाम जोड़ तोड़ के साथ लंबे समय तक अहम पदों पर बने रहना? या फिर किसी बड़े बैनर के तहत अपने ‘पत्रकारीय ज्ञान’ के आभामंडल से तथाकथित बड़े नेताओं और शख्सियतों के साथ इंटरव्यू करना? वो कौन से तत्व हैं जो आपको वरिष्ठ और बड़ा बनाते हैं?

ये चंद गंभीर सवाल हैं जो खबरों की इस ग्लैमर इंडस्ट्री में तैर रहे हैं। शलभ श्रीराम सिंह की इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए–
"नफ़स नफ़स, कदम कदम
बस एक फ़िक्र हम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से
हमें जवाब चाहिए...।"

(लेखक ज़ी रीजनल चैनल्‍स में एक्‍जीक्‍यूटीव प्रोड्यूसर हैं)

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