मराठी गौरव के प्रतीक थे बाल ठाकरे
Advertisement

मराठी गौरव के प्रतीक थे बाल ठाकरे

प्रभावशाली संदेश वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र की राजनीतिक मंच पर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया।

मुंबई : प्रभावशाली संदेश वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र की राजनीतिक मंच पर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया।
शिवसेना के 86 वर्षीय प्रमुख को उनके शिवसैनिक भगवान की तरह पूजते थे और उनके विरोधी भी उनके इस कद से पूरी तरह वाकिफ थे।
अपने हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने वाले ठाकरे अपने मित्रों और विरोधियों को हमेशा यह मौका देते रहे कि वह उन्हें राजनीतिक रूप से कम करके आंकें ताकि वह अपने इरादों को सफाई से अंजाम दे सकें। वह अकसर खुद बड़ी जिम्मेदारी लेने की बजाय किंगमेकर बनना ज्यादा पसंद करते थे। कुछ के लिए महाराष्ट्र का यह शेर अपने आप में एक सांस्कृतिक आदर्श था।
अपनी उंगली के एक इशारे से देश की वित्तीय राजधानी की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल ठाकरे ने आर के लक्ष्मण के साथ अंग्रेजी दैनिक फ्री प्रेस जर्नल में 1950 के दशक के अंत में कार्टूनिस्ट के तौर पर अपना कॅरियर शुरू किया था, लेकिन 1960 में उन्होंने कार्टून साप्ताहिक ‘मार्मिक’ की शुरूआत करके एक नए रास्ते की तरफ कदम बढ़ाया।
इस साप्ताहिक में ऐसी सामग्री हुआ करती थी, जो ‘मराठी मानूस’ में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने का जज्बा भर देती थी और इसी से शहर में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर आवाज बुलंद की गई।
ठाकरे का मराठी समर्थक मंत्र काम कर गया और उनकी यह बात कि ‘महाराष्ट्र मराठियों का है,’ स्थानीय लोगों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि उनकी पार्टी ने वर्ष 2007 में भाजपा के साथ पुराना गठबंधन होने के बावजूद राष्ट्रपति के चुनाव में अपनी एक अलग राय बनाई और संप्रग की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया, जो महाराष्ट्र से थीं।
उन्होंने वर्ष 2009 में सचिन तेंदुलकर की आलोचना कर डाली, जिन्होंने कहा था कि मुंबई पूरे भारत की है।
ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और उसके बाद मराठियों की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली। उन्होंने मराठियों के लिए नौकरी की सुरक्षा मांगी, जिन्हें गुजरात और दक्षिण भारत के लोगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था।
23 जनवरी 1926 को जन्मे बाल केशव सीताराम ठाकरे की चार संतानों में दूसरे थे। उनके पिता लेखक थे और मराठी भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करने वाले आंदोलन ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ के सक्रिय कार्यकर्ता थे।
खुद को अडोल्फ हिटलर का प्रशंसक बताने वाले बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र में मराठियों की एक ऐसी सेना बनाई, जिनका इस्तेमाल वह विभिन्न कपड़ा मिलों और अन्य औद्योगिक इकाइयों में मराठियों को नौकरियां आदि दिलाने में किया करते थे। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बना दिया।
हालांकि ठाकरे ने खुद कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन शिवसेना को एक पूर्ण राजनीतिक दल बनाने के बीज बोए जब उनके शिव सैनिकों ने बॉलीवुड सहित विभिन्न उद्योगों में मजदूर संगठनों पर नियंत्रण करना शुरू किया।
शिवसेना ने जल्द ही अपनी जड़ें जमा लीं और 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहनमुंबई नगर निगम पर कब्जा कर लिया। भाजपा के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। वह खुद कहते थे कि वह ‘रिमोट कंट्रोल’ से सरकार चलाते हैं। हालांकि उन्होंने मुख्यमंत्री का पद कभी नहीं संभाला।
बहुत से लोगों का मानना है कि 1993 के मुंबई विस्फोटों के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में शिव सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके चलते सेना-भाजपा गठबंधन को हिंदू वोट जुटाने में मदद मिली।
‘मराठी मानूस’ की नब्ज को बहुत अच्छी तरह समझने का हुनर रखने वाले बाल ठाकरे इस कहावत के पक्के समर्थक थे कि ज्यादा करीबी से असम्मान पनपता है और इसीलिए उन्होंने सदा खुद को सर्वश्रेष्ठ बताया। अपने समर्थकों से ज्यादा घुलना मिलना और करीबी उन्हें पसंद नहीं थी और वह अपने बेहद सुरक्षा वाले आवास ‘मातोश्री’ की बालकनी से अपने समर्थकों को ‘दर्शन’ दिया करते थे। प्रसिद्ध दशहरा रैलियों में उनके जोशीले भाषण सुनने लाखों की भीड़ उमड़ती थी।
पाकिस्तान और मुस्लिम समुदाय को अकसर निशाने पर रखने वाले बाल ठाकरे ने एक बार मुस्लिम समुदाय को ‘कैंसर’ तक कह डाला था।
ठाकरे अपने गैर परंपरागत खयालात के लिए पसंद किए जाते थे। हालांकि इस दौरान उन्हें कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। 11 दिसंबर 1999 से 10 दिसंबर 2005 के बीच उनके मताधिकार पर रोक लगा दी गई क्योंकि उन्होंने लोगों से सांप्रदायिक आधार पर वोट देने की अपील की थी, जिसके बाद उच्च न्यायालय के आदेश और चुनाव आयोग की अधिसूचना के द्वारा उनपर यह रोक लगाई गई।

अपने प्रवासी विरोधी विचारों के कारण ठाकरे को हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। उन्होंने बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए ‘बोझ’ बताकर खासा विवाद खड़ा कर दिया था। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वह प्रशंसक थे।
ठाकरे की पार्टी को 1991 में बड़ा झटका लगा जब छगन भुजबल ने बाल ठाकरे द्वारा मंडल आयोग रिपोर्ट का विरोध करने के विरोध में पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए।
ठाकरे को उस समय व्यक्तिगत आघात लगा,जब उनकी पत्नी मीना की 1995 में मौत हो गई। अगले ही वर्ष ठाकरे के सबसे बड़े पुत्र बिंदुमाधव की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई।
उन्हें 2005 में अपने जीवन का सबसे बउ़ा झटका लगा जब उनके भतीजे राज ने शिवसेना को छोड़ दिया और 2006 में अपनी राजनीतिक पार्टी एमएनएस बना ली। इस घटना ने शिवसेना-भाजपा के दोबारा सत्ता में लौटने की उम्मीदों को भी कमजोर कर दिया।
ठाकरे की सेहत पिछले कुछ समय से ठीक नहीं थी। 24 अक्तूबर को दशहरा रैली में ‘शेर की दहाड़’ सुनाई नहीं दी। उन्होंने वीडियो रिकार्डेड भाषण के जरिए अपने समर्थकों को संबोधित किया और सार्वजनिक जीवन से सन्यास का ऐलान किया। उनहोंने अपने समर्थकों से उनके पुत्र उद्धव और पोते आदित्य का साथ देने का आग्रह किया और इसके साथ ही शिवसेना के उत्तराधिकार की बेल को सींच दिया। (एजेंसी)

Trending news