राष्ट्रपति चुनाव: आम सहमति की कवायद तेज
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राष्ट्रपति चुनाव: आम सहमति की कवायद तेज

संप्रग के अधिकतर सहयोगी दलों ने शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के नाम की वकालत की, वहीं प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस की ओर से पश्चिम बंगाल के लिए आर्थिक पैकेज की मांग को राष्ट्रपति चुनाव के विषय से जोड़कर देखा जा रहा है।

 

नई दिल्ली : संप्रग के अधिकतर सहयोगी दलों ने शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के नाम की वकालत की, वहीं प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस की ओर से पश्चिम बंगाल के लिए आर्थिक पैकेज की मांग को राष्ट्रपति चुनाव के विषय से जोड़कर देखा जा रहा है।

 

भाजपा ने अलग रुख अख्तियार करते हुए कहा कि उम्मीदवार आम सहमति वाला होना चाहिए। इससे पहले सुषमा स्वराज ने कांग्रेस उम्मीदवार का विरोध करने की बात कही थी। फिलहाल किसी नाम को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना आसपास नजर नहीं आ रही,लेकिन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अहम बयान देते हुए कहा कि अगला राष्ट्रपति इस आधार पर नहीं बनाया जाना चाहिए कि वह पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति या अल्पसंख्यक समुदाय का हो।

 

इस बीच राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आज इस संबंध में खबरों को अटकलें कहकर खारिज कर दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज कहा कि हमारे सारे विकल्प खुले हैं। वह इस बीच अपने राज्य के लिए कर्ज में छूट की मांग कर रहीं हैं।

 

उन्होंने कहा कि अभी तक किसी उम्मीदवार का नाम नहीं आया है। अभी समय है। अभी मई का पहला सप्ताह है। चुनाव जुलाई में है। दो महीने का समय है। यदि कोई बातचीत होती है तो हमें पता चलेगा और हम उन्हें अपनी राय देंगे। मुखर्जी के बारे में एक सवाल पर उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा कि मैं अपना खुद का समर्थन कर रही हूं।

 

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर चुकीं ममता ने संवाददाताओं से कहा कि अभी तक उनकी पार्टी के साथ किसी नाम पर विचार नहीं हुआ है। कर्ज में छूट के मुद्दे पर अपने अगले कदम के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे राज्य के लिए जो भी संभव होगा मैं राजनीतिक तौर पर करुंगी। कर्ज के भुगतान में छूट के मामले में समस्या की ओर इशारा किये जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जो भी होगा वह कुछ दिन इंतजार करेंगी। उन्होंने कल मुलायम सिंह यादव के आवास पर उनसे भी बातचीत की थी।

 

संप्रग के सहयोगी अजित सिंह ने कहा कि प्रणब मुखर्जी की क्षमताओं को लेकर कोई संदेह नहीं है और सचाई यह है कि वह इस पद के लायक हैं। सभी इसके पक्ष में हैं। राकांपा के सूत्रों ने भी इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए कहा कि वे मुखर्जी को तरजीह देंगे। एक पार्टी नेता ने नाम नहीं जाहिर होने की शर्त पर कहा कि प्रणब मुखर्जी हमें ज्यादा सही लगते हैं। सपा के सूत्रों ने भी कहा कि मुखर्जी उनकी पसंद होंगे। उधर ममता ने पहले ही कहा है कि वह इस मामले में सपा के साथ साझा फैसला करेंगी।

 

कांग्रेस पार्टी के भीतर भी इस मुद्दे पर मंथन की ओर इशारा करते हुए वरिष्ठ पार्टी नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि कोई दिक्कत नहीं है। पार्टी में कई प्रतिभाशाली लोग हैं और संगठन में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। उनसे पूछा गया था कि क्या राष्ट्रपति पद पर मुखर्जी के काबिज होने की स्थिति में पार्टी में उनकी तरह संकटमोचक नेता हैं। पहले मुखर्जी और हामिद अंसारी दोनों के ही नाम पर विरोध दर्ज कराने वाली भाजपा ने आज अलग अंदाज बयां किया और पार्टी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि उम्मीदवार के नाम पर आम सहमति होनी चाहिए। अंसारी और मुखर्जी के खिलाफ सुषमा स्वराज के बयान के उलट राजग की सहयोगी जदयू पहले ही दोनों की उम्मीदवारी की तारीफ कर चुकी है।

 

वाम दलों ने आज पहली बार औपचारिक तौर पर इस मुद्दे पर बातचीत की। बैठक के बाद जारी बयान के मुताबिक कि राष्ट्रपति पद के लिए किसी उम्मीदवार पर आम सहमति बनना बेहतर होगा। वाम दलों ने अन्य दलों से भी विचार विमर्श की बात कही। हालांकि सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति पद पर किसी राजनीतिक शख्सियत के काबिज होने के सपा के रुख को वाम दलों का भी समर्थन है। वामपंथी दलों ने मुखर्जी या अंसारी किसी के नाम पर विरोध नहीं जताया है। पांच साल पहले उपराष्ट्रपति पद के लिए अंसारी उनकी पसंद थे।

 

उधर, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो नेता ओम प्रकाश चौटाला ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अपनी पसंद बताया। चेन्नई में द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि ने आज कहा कि संप्रग के नेता मिलकर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम तय करेंगे। इससे ज्यादा उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। इस बीच एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक सोशलिज्म नामक संगठन ने राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति पद पर किसी ईसाई को चुनने की अपील राजनीतिक दलों से की है। संगठन ने अपने बयान में कहा कि पिछले छह दशक में राष्ट्रपति या उप.राष्ट्रपति पद पर किसी ईसाई को नहीं चुना जाना खेद की बात है।

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