नीतीश पर मेहरबान हुई केंद्र सरकार?
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नीतीश पर मेहरबान हुई केंद्र सरकार?

कल तक केंद्र सरकार के सामने लाचार दिखने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अचानक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के `कृपापात्र` बन गए हैं।

पटना : कल तक केंद्र सरकार के सामने लाचार दिखने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अचानक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के `कृपापात्र` बन गए हैं। केंद्र सरकार के बदले इस तेवर को प्रदेश की राजनीति में उभर रहे नए समीकरण के रूप में देखा जा रहा है। बिहार में सतारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) ने राष्ट्रपति के चुनाव में संप्रग के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया था। तभी से बिहार की राजनीति में जद (यू) की कांग्रेस से निकटता को लेकर सवाल तैरने लगे थे।
हाल ही में नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि वे उन्हीं दलों का साथ देंगे जो विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने में बिहार का साथ देंगे। इस बयान के बाद सियासी माहौल गरमा गया था। हाल के दिनों में केंद्र सरकार द्वारा बिहार पर मेहरबान होने से सभी राजनीतिक दल विचार मंथन करने पर मजबूर हो गए हैं। नीतीश कई सालों से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते आ रहे हैं। केंद्र सरकार हालांकि बिहार के विशेष राज्य के मानदंड पर खरा नहीं उतरने के कारण उसकी मांगों को खारिज करती रही है। लेकिन इसमें एक नया मोड़ तब आया, जब केंद्रीय वित्त मंत्री पी़ चिदम्बरम ने अपने 2013-14 के बजट भाषण में विशेष राज्य का दर्जा देने के मानदंडों में परिवर्तन करने जिक्र किया। नीतीश ने भी लगे हाथ इसके लिए वित्त मंत्री को बधाई दी थी। इसे भी दोनों के बदले तेवर की एक कड़ी माना जा रहा है।
बिहार में कुलपति और प्रतिकुलपति की नियुक्ति के मामले में राजभवन और सरकार बिल्कुल आमने-सामने आ चुकी थी। यह मामला पटना उच्च न्यायालय भी पहुंचा, लेकिन इस बीच राज्यपाल देवानंद कुंवर को दूसरे राज्य त्रिपुरा भेज दिया गया। राजनीति के जानकार केंद्र सरकार के इस कदम को नीतीश को खुश करने के नजर से देख रहे हैं। बिहार में घोषित केंद्रीय विश्वविद्यालय के अतिरिक्त एक और केंद्रीय विश्वविद्यालय देने का आश्वासन और बरौनी विद्युत तापघर को कोयला आपूर्ति की अड़चनों को दूर करने के भरोसे को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि कांग्रेस पर विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर जारी आंदोलन का दबाव है। इसके अलावा वह वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में नए राजनीतिक समीकरण बनाने की चाहत में जद (यु) से मधुर संबंध बनाना चाहती है। नीतीश और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरी अब किसी से छिपी नहीं है।
उन्होंने कहा कि अगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लोकसभा चुनाव में उतरती है, तो इतना तय है कि नीतीश भाजपा से किनारा कर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश करेंगे। ऐसे में कांग्रेस नीतीश के निकट आने की कोशिश कर रही है, ताकि भाजपा से अलग होते ही उन्हें लपक लिया जाए। किशोर मानते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति के तहत राजनीतिक दांव चले जा रहे हैं, लेकिन अंदर क्या खिचड़ी पक रही है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। (एजेंसी)

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