फिल्‍म समीक्षा: वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा
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फिल्‍म समीक्षा: वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा

फिल्‍म वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा तो पिछले काफी समय से सुर्खियों में थी। इसकी रिलीज के साथ ही इस सीक्‍वल फिल्‍म को लेकर सारा रहस्‍य खत्‍म हो गया। इस फिल्म की खासियत यह है कि कोई भी किरदार सीधे मुंह बात नहीं करता है। ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा’ ऐसी फिल्म है जो सिर्फ अपने संवादों के दम पर चलेगी। इसमें डॉयलांग का बेहतर सामंजस्‍य है।

ज़ी मीडिया ब्‍यूरो
नई दिल्‍ली : फिल्‍म वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा तो पिछले काफी समय से सुर्खियों में थी। इसकी रिलीज के साथ ही इस सीक्‍वल फिल्‍म को लेकर सारा रहस्‍य खत्‍म हो गया। इस फिल्म की खासियत यह है कि कोई भी किरदार सीधे मुंह बात नहीं करता है। ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा’ ऐसी फिल्म है जो सिर्फ अपने संवादों के दम पर चलेगी। इसमें डॉयलांग का बेहतर सामंजस्‍य है।
संवाद पूरी फिल्म में दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब होगी। हालांकि फिल्म को केवल संवादों के आधार पर अच्छा नहीं कहा जा सकता है, मगर इसमें कुछ तो ऐसा है जो दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब होगी। शेष विभागों में यह फिल्‍म कुछ कमजोर साबित होती है।
फिल्‍म की कहानी को वही से आगे बढ़ाया गया है जहां पर पिछली फिल्म खत्म हुई थी। इमरान हाशमी की जगह अक्षय कुमार ने ले ली। हाजी मस्तान से प्रेरित किरदार सुल्तान का पूरा चित्रण था तो दाउद से प्रेरित किरदार शोएब का उदय फिल्म में दिखाया गया था। फिल्म में खूब उतार-चढ़ाव थे और गैंगस्टर की दुनिया को मनोरंजक तरीके से पेश किया गया था। इस बार किरदार तो वास्तविक जीवन से प्रेरित है, लेकिन कहानी में हकीकत कम और कल्पना का प्रतिशत बहुत बढ़ गया है। कहानी इतनी दमदार नहीं है कि बांध कर रखे सके।
शोएब (अक्षय कुमार) अपने दुश्मन रावल (महेश मांजरेकर) को सबक सिखाने के लिए विदेश से मुंबई आता है। पूरा मुंबई उसके कब्जे में है जहां उसके काले कामों का साम्राज्य चलता है। शोएब का असलम (इमरान खान) बहुत एहसान मानता है क्योंकि जब वह छोटा था तब शोएब ने उसकी जिंदगी को बेहतर बनाया। जस्मीन (सोनाक्षी सिन्हा) कश्मीर से मुंबई हीरोइन बनने आई है। शोएब और असलम दोनों जस्मिन पर मर मिटते हैं। वफादारी, दोस्ती, एहसान जैसी बातें उठती हैं।
गैंगस्टरों की इस फिल्‍म में प्रेम कहानी भी है। पूरी फिल्म प्रेम त्रिकोण के आसपास घूमती है। लंबे समय तक कहानी आगे ही नहीं बढ़ती है। सोनाक्षी का किरदार कुछ सस्‍पेंस से भरा है। शोएब के किरदार को बहुत बड़ा दिखाया गया है। अंतरराष्ट्रीय मैच में उसके इशारे से टॉस और मैच का परिणाम निकलता है।
मिलन लथुरिया ने सत्तर और अस्सी का दशक पिछली फिल्म में अच्छे तरीके से पेश किया था, यहां भी किया है, लेकिन यही काफी नहीं है। उन्होंने सिंगल-स्क्रीन दर्शक को ध्यान में रखकर सीन गढ़े हैं, लेकिन इनके लिए ठीक से जगह नहीं बन पाई है। फिल्म का अंत और बेहतर किया जा सकता था। फिल्म का म्‍यूजिक और कैमरावर्क बेहतर है। एक-दो गीत अच्छे बन पड़े हैं। अक्षय कुमार ने शोएब के किरदार को एक खास किस्म के मैनेरिज्म और स्टाइलिश तरीके से पेश किया है। सोनाक्षी सिन्हा का किरदार ठीक से नहीं लिखा गया है और इसका असर उनकी एक्टिंग पर भी नजर आता है।
इस फिल्‍म के निर्माता हैं एकता कपूर, शोभा कपूर और निर्देशक हैं मिलन लुथरिया। फिल्‍म के मुख्‍य कलाकार हैं अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा, इमरान खान, सोनाली बेन्द्रे, सोफी चौधरी, महेश मांजरेकर।

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