31 अक्टूबर को मनाई जाएगी अहोई अष्टमी, जानें क्या है विधि और कथा
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31 अक्टूबर को मनाई जाएगी अहोई अष्टमी, जानें क्या है विधि और कथा

इस पर्व में संतान की लंबी उम्र के साथ ही उनके जीवन से बाधाओं को दूर करने के लिए यह व्रत महिलाएं रखती हैं. वहीं इस व्रत को वे महिलाएं रखती हैं जिनकी कोई संतान होती है.

अहोई अष्टमी पर्व का भी काफी महत्व है.

नई दिल्ली: भारत में विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं. करवा चौथ के बाद महिलाएं अब अहोई अष्टमी की तैयारियों में जुट गई है. जैसे पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं करवा चौथ करती है, उसी तरह बच्चों के लिए महिलाए करवा चौथ के चौथे दिन अहोई अष्टमी का व्रत करती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई अष्टमी का पर्व आता है. वैसे तो ये व्रत पुत्र के लिए किया जाता है, लेकिन अब महिलाएं इसे अपनी पुत्रियों के लिए भी करने लगी हैं. इस बार अहोई अष्टमी का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जायेगा. 

कार्तिक मास के इस व्रत का है खास महत्व
इस पर्व में संतान की लंबी उम्र के साथ ही उनके जीवन से बाधाओं को दूर करने के लिए यह व्रत महिलाएं रखती हैं. वहीं इस व्रत को वे महिलाएं रखती हैं जिनकी कोई संतान होती है. कार्तिक मास की काफी महत्ता है और इसकी महिमा का बखान पद्मपुराण में भी किया गया है. कहा जाता है कि इस माह में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, व्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप एवं सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश होता है. इसलिए इस माह में आने वाले सभी व्रत का विशेष फल है और यही कारण है कि इस माह मनाए जाने वाले अहोई अष्टमी पर्व का भी काफी महत्व है. 

व्रत की विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान करने और पूजा के समय ही पुत्र की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए अहोई अष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है. अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं, इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता के चित्र के साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों की तस्वीर भी बनाई जाती है. देवी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़ा आदि रखकर कहानी कही और सुनी जाती है. सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं. इसमें उपयोग किया जाने वाला करना वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया हो. शाम में इन चित्रों की पूजा की जाती है. माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाना अनिवार्य माना जाता है. लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ्य दिया जाता है. 

अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहुकार के सात बेटे और सात बहुएं थी. इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और ननद मिट्टी लाने जंगल गई. साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस जगह पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी. 

स्याहू की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वो उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं. इसके बाद उसने पंडित को बुलवाकर कारण पूछा तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी.

सेवा से प्रसन्न सुरही उसे स्याहु के पास ले जाती है. इस बीच थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहुकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है. वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है. स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है. 

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