थ्री डी प्रिंट वाले शारीरिक अंगों के दौर में पहुंचा भारत
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थ्री डी प्रिंट वाले शारीरिक अंगों के दौर में पहुंचा भारत

थ्री डी प्रिंट वाले शारीरिक अंग अब भारत में हकीकत का रूप ले चुके हैं और यह निश्चित रूप से देश के चिकित्सकीय परिदृश्य को बदलकर रख सकता है। एक स्कूल शिक्षिका के साहस ने भारत में एक ऐसी चिकित्सकीय क्रांति को जन्म दिया है, जिसपर ज्यादा लोगों का ध्यान ही नहीं गया। यह चिकित्सकीय क्रांति बरेली से गुड़गांव तक फैल गई है।

गुड़गांव: थ्री डी प्रिंट वाले शारीरिक अंग अब भारत में हकीकत का रूप ले चुके हैं और यह निश्चित रूप से देश के चिकित्सकीय परिदृश्य को बदलकर रख सकता है। एक स्कूल शिक्षिका के साहस ने भारत में एक ऐसी चिकित्सकीय क्रांति को जन्म दिया है, जिसपर ज्यादा लोगों का ध्यान ही नहीं गया। यह चिकित्सकीय क्रांति बरेली से गुड़गांव तक फैल गई है।

नोएडा स्थित मेट्रो अस्पताल के एक चिकित्सक ने कहा, ‘थ्री डी प्रिंटिंग एक ऐसा आगामी नवोन्मेष है, जो निजी जरूरत के अनुरूप उपचार देने की पेशकश करता है।’ इसी तकनीक को पूरे-पूरे अंग बदलने के लिए जीवित उतकों पर भी आजमाया जा रहा है लेकिन इसमें अभी वक्त लगेगा। जरा सोचिए कि आप अपने खुद के गुर्दे की एक प्रति निकालें और अपने खराब गुर्दे को बदलवा लें।

इस माह की शुरुआत में गुड़गांव स्थित मेदांता : द मेडिसिटी के युवा चिकित्सकों के एक दल ने एक महिला की खराब हो चुकी रीढ़ को बदलकर पहली बार थ्री डी प्रिंटेड टाइटेनियम इंप्लांट लगा दिया। इस सर्जरी ने महिला को एक नया जीवन दे दिया। सर्जरी के महज चार दिन बाद महिला चलने-फिरने लगी थी। चिकित्सकों का कहना है कि यदि सर्जरी के लिए पारंपरिक तरीके अपनाए गए होते तो उसे चलने में महीनों लग जाते।

मेदांता के संस्थापक डॉ नरेश त्रेहन ने कहा, ‘थ्री डी प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी ने जिंदगियां बचाने के लिए शरीर के अंगों के पुनर्निर्माण का एक नया आयाम खोल दिया है।’ पिछले माह 32 वर्षीय महिला के लिए चलना और बोलना बहुत मुश्किल हो गया था क्योंकि टीबी के कारण उनकी गर्दन की कशेरूक क्षतिग्रस्त होने लगी थी। रीढ़ की हड्डी में संकुचन शुरू होने पर वह अपनी टांगों के प्रति संवेदना खोने लगीं। इससे जीवन मुश्किल हो गया था।

भारत में अपनी तरह की इस पहली सर्जरी ने इस महिला में लगभग सामान्य जीवन बिता पाने की उम्मीद जगा दी है। तीन फरवरी को 10 घंटे तक सर्जरी करवाने वाली यह महिला अपनी पहचान नहीं बताना चाहती। उन्होंने कहा, ‘मैं अब ठीक हूं लेकिन पहले मुझे बहुत समस्या होती थी। मैं चल नहीं सकती थी। दर्द के कारण मैं रात को सो नहीं पाती थी, कुछ भी नहीं कर पाती थी। अब मैं बेहतर महसूस कर रही हूं।’

इस जटिल चिकित्सकीय समस्या के सामने आने पर 10 स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक दल ने पहली बार गर्दन में संक्रमित जोड़ को हटाकर अत्याधुनिक थ्री डी प्रिंटेड टाइटेनियम इंप्लांट लगाने का फैसला किया। इसका अन्य विकल्प यह रहता कि मरीज की ही टांग की एक हड्डी का इस्तेमाल किया जाता लेकिन चिकित्सकीय दल का कहना है कि इस स्थिति में मरीज को सर्जरी के बाद छह माह से अधिक समय तक बिस्तर पर ही रहना होता।

मेंदांता के प्रमुख सर्जन डॉ वी आनंद नाइक ने कहा, ‘हमने गर्दन से नीचे पक्षाघात का शिकार हो रही मरीज की क्षतिग्रस्त रीढ़ में थ्री डी प्रिंटेड कशेरूक लगाया। देश में ऐसा पहली बार किया गया और दुनिया में संभवत: यह तीसरी बार था।’ ऐसी एक सर्जरी पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में हुई थी और एक सर्जरी वर्ष 2015 में चीन में हुई थी।

एक्स-रे और उच्च विभेदन क्षमता वाले कैट-स्कैन का इस्तेमाल करके क्षतिग्रस्त रीढ़ का थ्री डी कंप्यूटर मॉडल बनाया गया। इसके बाद कंप्यूटर पर उचित डिजाइन तैयार किया गया और बरेली में इसे थ्रीडी प्रिंटर में भेजा गया। इस तरह मरीज के लिए टाइटेनियम इंप्लांट तैयार किया गया।

तीन सेमी लंबे इस धात्विक चिकित्सकीय उत्पाद में 154 ग्राम उच्च स्तरीय टाइटेनियम लगा है और इसकी कीमत एक लाख रूपए से कम है। लगभग पूरे दिन चली इस सर्जरी में इसे सिर और धड़ के बीच में लगाया गया और रीढ़ की हड्डी पर पड़ने वाले दबाव से मरीज को राहत दिलाई गई।

मेदांता में इस थ्री डी इंप्लांट के प्रमुख डिजाइनर डॉ राहुल जैन ने कहा, ‘इस इंप्लांट को डिजाइन करना काफी मुश्किल था क्योंकि रीढ़ की संरचना जटिल है। टाइटेनियम के इंप्लांट पूरी तरह सुरक्षित हैं क्योंकि ये जैव अपघटनीय हैं और यह भी सुनिश्चित किया गया कि यह रीढ़ की हड्डी से टकराए नहीं।’

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