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नयी दिल्ली: आपस में कड़े प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद पश्चिमी घाटों के वन्यजीवन रिजर्वों के तीन मांसाहारी पशुओं ने मिलजुलकर रहने के लिए अनुकूलन कर लिया है। यह दावा एक अध्ययन में किया गया है।
यह अनुकूलन तीन मांसाहारी पशुओं- बाघ, तेंदुआ और ढोले (एशियाई जंगली कुत्ता) को बचाने में मददगार साबित होगा। वाइल्डलाइफ कन्जर्वेशन सोसाइटी की ओर से कराए गए अध्ययन में पाया गया है कि इन पशुओं के बीच भले ही सीधी प्रतिद्वंद्विता है लेकिन ये आश्चर्यजनक रूप से बेहद कम संघर्ष के एकसाथ रह रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि आमतौर पर बिल्ली और कुत्ता प्रजाति के पशु एक दूसरे से बचने के लिए अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं। हालांकि इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ये पशु एक ही तरह के शिकार के लिए प्रतिस्पर्धा करने के बावजूद एक-साथ रह रहे हैं। इनके शिकारों में सांबर हिरण, चीतल और सुअर शामिल हैं। यह अध्ययन पश्चिमी घाट क्षेत्र में वन्यजीवन से समृद्ध चार अपेक्षाकृत छोटे रिजर्वों में किया गया है।
शोधकर्ताओं ने दर्जनों कैमरों का इस्तेमाल पूरी जनसंख्या के नमूने एकत्र करने के लिए किया और तीन शिकारकर्ता पशुओं की लगभग 2500 तस्वीरें रिकॉर्ड कीं। उन्होंने पाया कि जिन रिजर्वों में शिकारों की संख्या ज्यादा है, वहां दिन में सक्रिय रहने वाले जंगली कुत्ते रात को सक्रिय होने वाले बाघों और तेंदुओं के संपर्क में ज्यादा नहीं आए।
लेकिन भद्र रिजर्व में, जहां शिकार बनने वाले पशुओं की संख्या कम है, वहां दोनों प्रजाति के शिकारी पशुओं का समय एक-दूसरे से टकरा जाता है। हालांकि जंगली कुत्ते अब भी बड़ी बिल्लियों का आमना-सामना होने से रोकने में समर्थ रहे। नागरहोल नामक पार्क में तीनों शिकारी पशु और उनके शिकार मौजूद हैं। यहां तेंदुए बाघांे के साथ आमना-सामना की स्थिति में आने से बचते हैं।
अध्ययन में कहा गया, ‘इन मांसाहारियों ने शिकार का साझा आधार होने के बावजूद सहअस्तित्व का कुशल अनुकूलन विकसित कर लिया है। हालांकि ये प्रक्रियाएं भिन्न-भिन्न हैं और शिकार स्रोतों की सघनता और आवास संबंधी अन्य गुणों पर निर्भर करते हैं।’