अमेरिकी कृषि विभाग में वैज्ञानिक मैट मूर ने कहा कि हम ऐसा कुछ चाहते थे जो सामान्य हो और जिन्हें कई अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल किया जा सके.
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वॉशिंगटन: वैज्ञानिकों का कहना है कि खेतों से निकलने वाले कीटनाशक युक्त अपशिष्ट जल के नदी, झील सहित विभिन्न जलाशयों में जाकर मिलने से पहले, उन्हें धान के पौधों की मदद से शुद्ध किया जा सकता है. खेतों से निकलने वाले कीटनाशकयुक्त जल को जलस्रोतों में घुलने से रोकने के लिये अनुसंधानकर्ता ऐसा तरीका इजाद करना चाहते थे जो किसानों के लिये बेहद आसान और किफायती हो. अमेरिकी कृषि विभाग में वैज्ञानिक मैट मूर ने कहा कि हम ऐसा कुछ चाहते थे जो सामान्य हो और जिन्हें कई अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल किया जा सके. इसके लिये अनुसंधानकर्ताओं ने चार खेतों में से दो में धान की खेती की और दो में अन्य फसलें उगायीं.
इसके बाद उन्होंने उन खेतों में तीन किस्म के कीटनाशक दिये और खेतों को लबालब पानी से भर दिया. उन्होंने यह प्रक्रिया साल में दो बार दोहरायी. उन्होंने पाया कि तीनों कीटनाशकों का स्तर उन खेतों में कम था जिसमें उन्होंने धान की फसल लगायी थी. कीटनाशकों के स्तर में 85 प्रतिशत से 97 प्रतिशत की कमी आयी थी. धान ने ऐसा ‘‘फाइटोरेमेडिएशन’’ क्रिया के जरिये किया.
‘‘फाइटोरेमेडिएशन’’ क्रिया की मदद से पौधे खतरनाक दूषित पदार्थों को मिट्टी, वायु और पानी से साफ कर देते हैं. इस क्रिया में धान के पौधे और उनकी जड़ें पानी, मिट्टी और हवा में घुले दूषित पदार्थ को अवशोषित कर लेते हैं. निकट भविष्य में हम वास्तविक जीवन में भी कीटनाशक हटाने की धान की इस क्षमता का इस्तेमाल कर सकते हैं. मूर ने कहा कि किसान अपने खेतों में बने जल निकास मार्गों के पास धान उगा सकते हैं और ये धान वहां से निकलने वाले दूषित जल को किसी नदी, झील या जलस्रोत में मिलने से पहले ही साफ कर देंगे. बहरहाल अभी इस बात के लिये अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता है कि क्या ये रसायन धान के दानों में तो जाकर संचित तो नहीं होते और अगर अनुसंधान में ऐसा नहीं पाया जाता तो धान दूषित जल को साफ करने का एक प्राकृतिक स्रोत हो सकता है.
इनपुट भाषा से भी