द्वितीय विश्व युद्ध की एक तकनीक से बनी दुनिया की पहली 'नॉन मेल्टिंग आइसक्रीम'
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द्वितीय विश्व युद्ध की एक तकनीक से बनी दुनिया की पहली 'नॉन मेल्टिंग आइसक्रीम'

उमस भरे मौसम में अगर आपको एक आइसक्रीम मिल जाए, तो आपका दिलो-दिमाग फिर से ताजा हो जाता है.

आइसक्रीम लवर्स को आइसक्रीम का तेजी से पिघलना बिल्कुल भी नहीं सुहाता है. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: उमस भरे मौसम में अगर आपको एक आइसक्रीम मिल जाए, तो आपका दिलो-दिमाग फिर से ताजा हो जाता है. आइसक्रीम गर्मी और पसीने से राहत पाने का एक जबरदस्त तरीका है. वैसे तो आइसक्रीम लवर्स को सिर्फ आइसक्रीम खाने से मतलब होता है, लेकिन आइसक्रीम लवर्स हमेशा से ही 'बर्फ की लॉली' में कुछ नया खोजते रहते हैं.

वहीं, आइसक्रीम लवर्स को आइसक्रीम का तेजी से पिघलना बिल्कुल भी नहीं सुहाता है. कहा जाता है कि जल्दी पिघल जाने वाली हर आइसक्रीम को आइसक्रीम लवर्स अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं. इस भावना के मद्देनजर लंदन के फूड स्टूडियो ने ऐसी आइसक्रीम बनाई है, जो करीब एक घंटे तक नहीं पिघलेगी. 

 

 

प्रयोग में लाए द्वितीय विश्व युद्ध के समय का फॉर्मूला
आइसक्रीम लवर्स की इस मांग पर लंदन स्थित फूड डिजाइन स्टूडियो बोम्पास और पार ने इस खोज को आगे बढ़ाया है. इस फूड डिजाइन स्टूडियो ने एक ऐसा फॉर्मूला बनाया है, जिससे अब आपकी आइसक्रीम जल्दी नहीं पिघलेगी. दुनिया की पहली 'नॉन मेल्टिंग आइसक्रीम' बनाने वाले फूड डिजाइन स्टूडियो बोम्पास और पार के अनुसार, इसे बनाने में किसी मॉडर्न तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

उन्होंने बताया कि इसे बनाने की प्रेरणा हमें द्वितीय विश्व युद्ध के समय के 'काफी देर तक जमी रहने वाली बर्फ और फ्रोजेन फूड' से मिली. उन्होंने बताया कि इस आइसक्रीम का स्वाद लोग करीब 60 मिनट तक ले सकेंगे. 

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पत्थर जैसी सख्त होती थी बर्फ
उन्होंने बताया कि एक अंग्रेजी आविष्कारक ज्योफ्री पाइक ने सैनिकों की मदद के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लंबे समय तक जमी रहने वाली बर्फ के लिए एक नुस्खा तैयार किया था. उन्होंने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे लकड़ी के बुरादे और इसकी लुग्दी को मिलाकर इसे बनाया जाता था.

इससे तैयार होने वाली बर्फ पत्थर की तरह सख्त होती थी, जो आसानी से नहीं पिघलती थी. बोम्पास और पार ने इस फॉर्मूले से प्रेरणा लेते हुए इस नए फॉर्मूले को 'पाइक्रेटे' नाम दिया है. 

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फ्रूट फायबर से बनाई यह आइसक्रीम 
फूड स्टूडियो ने बताया कि उन्होंने इस फॉर्मूले में लकड़ी के बुरादे और इसकी लुग्दी को फलों से निकलने वाले फायबर से बदल दिया. उन्होंने बताया कि फलों से निकलने वाले फायबर खाया जा सकता है और इस कारण से ही हम इसे प्रयोग में ला सके.

उन्होंने बताया कि इस पहली 'नॉन मेल्टिंग आइसक्रीम' को बीती 22 अगस्त को ब्रिटिश संग्रहालय ऑफ फूड द्वारा आयोजित स्कूप प्रदर्शनी में भी प्रदर्शित किया गया था.

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