अटल जी और उनका चहेता लखनऊ
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अटल जी और उनका चहेता लखनऊ

अटल जी प्रधानमंत्री पद पर रहे हों या नहीं, उन्होंने लखनऊ और लखनवियों से सदैव रिश्ता कायम रखा. हरदम कोई न कोई मौका खोज वह लखनऊ आते-जाते रहे.

अटल जी और उनका चहेता लखनऊ

अस्वस्थता के चलते बीते लगभग दो दशक से सक्रिय राजनीति से दूर देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के पुरोधा अटल बिहारी वाजपेयी जी की याद जाने-अनजाने अमूमन आ ही जाती है. मन-मस्तिष्क अचानक लखनऊ में अटल जी की सांसदी और जब सांसद नहीं रहे तब के दौर की ओर पलट सा जाता है. जैसे बतकही में कोई बताता है कि अटल जी लखनऊ में हैं. अटल जी चौक में चाट की दुकान पर दिखे थे, तो कोई बताता है कि नहीं कवि सम्मेलन में थे. तो कोई छाछी कुवां में भाजपा नेता लालजी टण्डन के यहां चाट पार्टी की जानकारी देता है, जहां पत्रकारों का भी जमघट है. और अटल जी चाट, गोलगप्पों का मजा ले रहे. पत्रकारों से लखनऊ की हाल खबर लेने के साथ ही अपने अंदाज में सवालों से भी दो-चार हो रहे. मानो सरल, सौम्य व चुटीली शैली के साथ ही धीर-गम्भीर अटल जी जैसे लखनऊ की आबो-हवा में आस-पास ही कहीं मौजूद हैं ऐसा आभास सा होने लगता है. उनके ठहाकों की भी आवाजें वातारण में तैर रहीं हों. हां, अटल जी जो लखनऊ में न होते हुए भी अपने चहेते लखनऊ और लखनवियों को ऐसा ही अहसास करा देते हैं. 

आगरा के निकट बाह में बटेसर गांव के निवासी अटल जी की शुरुआती पढ़ाई गुजरात के उसी वडनगर में हुई, जहां से भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं. कालांतर में कानपुर के डीएवी कालेज से स्नात्कोत्तर की डिग्री लेने के उद्देश्य से अटल ने जो उत्तर प्रदेश की ओर रुख किया तो फिर यहीं के होकर रह गए. उच्च शिक्षा, छात्र जीवन से हिन्दुस्तान की आजादी के  आंदोलन में सक्रियता, फिर पत्रकारिता और बाद में राजनीतिक ऊंचाइयों तक का सफर अटल जी ने उत्तर प्रदेश से ही पूरा किया. देश की आजादी के बाद जनसंघ के टिकट पर अटल जी दूसरी लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में लखनऊ सहित बलरामपुर और मथुरा से सांसदी के दावेदार थे. बलरामपुर से तो उन्हें चुनाव में जीत हासिल हो गई पर, लखनऊ और मथुरा से निराशा. लखनऊ में अटल जी को अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेसी उम्मीदवार से बारह हजार से अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा. उसके बाद अटल जी भले ही मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा पहुंचे अथवा कभी राज्यसभा गए, लेकिन लखनऊ से उनका नाता बना रहा. वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव से लेकर जबतक अटल जी अस्वस्थ नहीं हो गए तबतक वह लगातार लखनऊ से ही लोकसभा पहुंचते रहे. यही नहीं बतौर प्रधानमंत्री अटल जी ने लखनऊ से सांसदी को ही गौरवान्वित किया.

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अटल जी प्रधानमंत्री पद पर रहे हों या नहीं, उन्होंने लखनऊ और लखनवियों से सदैव रिश्ता कायम रखा. हरदम कोई न कोई मौका खोज वह लखनऊ आते-जाते रहे. इसके चलते लखनऊ के चारबाग रेलवे जंक्शन के प्लेटफॉर्म नम्बर- एक पर अमूमन सुबह सवेरे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं सहित उनके चाहने वालों का जमघट दिख जाता था. वजह, नई दिल्ली से आने वाली लखनऊ मेल उसी प्लेटफॉर्म पर लगती थी और उसके एच-1 कोच से ही अटल जी नमूदार होते थे. और फिर वहीं से उनका काफिला राज्य अतिथि गृह की ओर रवाना होता था. अतिथि गृह में दाखिल होते ही उसके लाऊंज में अटल जी विराजमान हो जाते और जो भी उनसे मिलने पहुंचता सभी का स्वागत वह चिर-परिचित शैली में ‘आइये महाराज आइये’ से करते और फिर चाय के दौर के बीच सभी का हाल खबर लेते. इस बीच वह लखनऊ में चल रहे विकास कार्यों की जानकारी भी लेते रहते. अपनी सांसद निधि से लखनऊ की गरीब बस्तियों के लिए स्वीकृत कामों सहित अन्य विकास कार्यों के हाल पर उनकी विशेष नजर रहती थी. गरीबों की समस्याओं को कैसे दूर किया जा सके यह उनकी विशेष चिन्ता रहती.

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बतौर उदाहरण प्रधानमंत्री रहते लखनऊ की एक झुग्गी-झोपड़ी बस्ती में यह देखने पहुंच गए कि उनकी सांसद निधि से जो हैण्डपम्प उस बस्ती में लगाया गया था उससे पानी निकलता भी है कि नहीं. अटल जी की निधि से कराए जाने वाले कार्यों की देखरेख वाली टोली के युवा सदस्य अमित पुरी बताते हैं कि अटल जी पैदल ही बस्ती में टहलते हुए गए और हैण्डपम्प को चलाया. पम्प से पानी की मोटी धार निकलने पर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा. उन्होंने अपने सहयोगी शिवकुमार की ओर देखा और सबका मुंह मीठा कराने को कहा. स्वयं भी मिठाई का आनंद लिया. पुरी के अनुसार लखनऊ में पीने के पानी के संकट से अटल जी चिंतित रहते थे. 

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यही वजह थी कि उन्होंने अपने पहली सांसद निधि का उपयोग लखनऊ संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों में 12-12 हैंडपंप लगवाने में किया था. यही नहीं अटल जी के समय में ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ को पीने के पानी की गम्भीर समस्या से उबारने के लिए एक के बाद एक तीन वाटर वर्क्स का निर्माण कराया गया. उनकी सांसदी के बाद से अबतक किसी नए वाटर वर्क्स का निर्माण नहीं हो सका. अटल जी लखनऊ को लेकर सदैव ही सचेष्ट रहे. वह गरीबों, वंचितों के बारे में सोचने के साथ ही शिक्षा का क्षेत्र रहा हो अथवा लखनऊ की आबोहवा को बेहतर बनाने या फिर नए मार्गों का सवाल, वह भी उनकी चिन्ता का सबब रहता रहा. लखनऊ में टेक्निकल विश्वविद्यालय उन्हीं की देन है. अब उस विश्वविद्यालय को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है. लखनऊ को जाम से मुक्त कराने के उद्देश्य से ही अटल जी ने महोना क्षेत्र से नई रिंग रोड का निर्माण शुरू कराया. यही नहीं राजधानी में विशाल साइंटिफिक साइंस कन्वेंशन सेंटर भी अटल जी की देन है. राजधानी लखनऊ की एक शान की पहचान रहने वाले मशहूर अमीनाबाद के झण्डेवाला पार्क में अण्डरग्राउन्ड पार्किंग और मार्किट बनवाने के नाम किए जा रहे भ्रष्टाचार को लेकर व्यापारियों के तीव्र विरोध में अटल जी विरोध करने वालों के साथ खड़े दिखे. इस मामले पर युवा नेता अमित पुरी जब सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचेतो अटल जी, जो बेहद सौम्य थे, संवैधानिक संस्थाओं के सम्मान के प्रति सदैव सजग रहते थे. उन्‍होंने सब कुछ भूलकर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एएम अहमदी तक से टकराव लेने में संकोच नहीं किया. अमीनाबाद की शान और ऐतिहासिक झण्डेवाला पार्क के साथ किए जा रहे खिलवाड़ एवं उसके प्रति न्यायालय के रवैए के खिलाफ अपनी कलम उठा ली. दि इंडियन एक्सप्रेस के 7 मार्च 1995 के अंक में उन्होंने आधे पृष्ठ का लेख तक लिख डाला.

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बहरहाल अटल जी के कराए गए कार्यों से इतर अगर उनके व्यक्तित्व और लखनऊ से उनके नातों पर चर्चा की जाए तो साफ है कि कवि, पत्रकार और धुरंधर राजनेता से अलग उन्हें अवध की शान लखनऊ का प्रेमी भी कहा जा सकता है. वह लखनऊ पर फिदा थे और लखनऊ भी उन पर. यही वजह रही कि अटल जी जब भी लखनऊ में होते थे तो अदब के इस शहर में बेहद मस्त और बेलौस होते थे. लोगों के बीच रहना, अपने अंदाज में हंसी-ठिठोली करना उनका शगल होता था. हालांकि शायद यही वजह थी कि जब वह प्रधानमंत्री की हैसियत से लखनऊ आते तो अपने और लोगों के बीच सुरक्षा कारणों की वजह से बढ़ी दूरी उन्हें कचोटती भी थी. अटल जी ने अपनी इसी पीड़ा को एक कविता की कुछ पंक्तियों ‘अपनों के मेले में मीत नहीं पाता, भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज अपनी परछायीं से हारा’ के  जरिए बताना भी चाहा.

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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