खिलाड़ियों की तरह ही लोकप्रिय थे जसदेव सिंह
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खिलाड़ियों की तरह ही लोकप्रिय थे जसदेव सिंह

उम्र के उस पड़ाव पर भी उनकी गंभीरता प्रभावित करने वाली थी. जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया. तब समझ में आया कि क्यों खेल कमेन्ट्री के क्षेत्र में व अन्य राष्ट्रीय आयोजनों में उनकी तूती बोलती थी.

खिलाड़ियों की तरह ही लोकप्रिय थे जसदेव सिंह

प्रख्यात कमेंटेटेर जसदेव सिंह जी के इस दुनिया से चले जाने की खबर के साथ ही अनायास ही उनकी आवाज कानों में गूंजने लगी. ऐसा लग रहा था कि मानो आज भी पूरे मनोयोग से ध्यान केन्द्रित कर उनके द्वारा प्रसारित की जा रही किसी मैच, राष्ट्रीय आयोजन का आंखों देखा हाल सुन रहा हूं. एक पल के लिए खामोशी और उस खामोशी में उनके साथ बिताये गए वो लम्हें, आंखों के सामने आ गए. केवल तीने दिन मैंने जसदेव सिंह जी के साथ बिताए थे. लेकिन वो तीन दिन मेरे जीवन के अति महत्वपूर्ण दिनों में शामिल हो गए. 2010 में जसदेव जी भोपाल में औबेदुल्ला गोल्ड कप टूर्नामेंट के दौरान मप्र शासन के विशेष आमंत्रण पर सपत्नीक आये थे. मुझे शासन ने दो दिनों तक उनके साथ रहने के निर्देश दिये थे. पहले तो मैंने मना किया कि मैं इतनी बडी जिम्मेदारी नहीं उठा सकूंगा. क्योंकि, मैं भी कमेन्ट्री फील्ड से था, इसलिए शासन ने मुझे उनके साथ संलग्न किया था. उनके बारे में बहुत पढ़ा था, उन्हें बचपन से सुना था, किन्तु मन में बहुत हलचल भी थी. असमंजस में था कि क्या होगा इन दो दिनों में. कैसे उनका सामना कर पाऊंगा. अपने कमेन्टेटर होने की बात उन्हें बताने की सबसे बड़ी हिचक मेरे मन में उथल पुथल मचा रही थी.

एयरपोर्ट पर उनकी आगवानी करते ही उनके व्यक्तित्व के सम्मोहन में बंध गया था. उनकी खनकती सी मीठी आवाज, सरल व्यक्तित्व, चेहरे पर तेज और मोहक मुस्कान. आज भी वो पल मेरी आंखों के सामने सजीव है. विश्वास करना कठिन हो रहा था कि मैं जसदेव जी के साथ हूं. एयरपोर्ट से होटल तक के सफर में  मैं बस खामोशी से उनके सवालों के जवाब देता रहा. अधिकतर सवाल, जिस आयोजन में वे आये थे उससे जुडे थे. शहर की खूबसूरती पर भी छोटी बड़ी बात वे मुझसे जानते रहे और मैं भी अपने ज्ञान के अनुसार उन्हें बताता गया. जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे जसदेव जी और उनकी पत्नी बड़े आत्मीयता से मुझसे मेरे परिवार के बारे में भी जानकारी लेते गए.

जिस आयोजन में उन्हें जाना था, उसके लिए वह मुझसे एक-एक कर सारी जानकारी मांगते गए. आयोजन में जाने से पूर्व पूरा होमवर्क उन्होंने कर लिया था. 80 वर्ष की आयु में भी सारा होमवर्क स्वयं अपने हाथों से पेपर पर लिखकर उन्होंने किया. बहुत व्यवस्थित रूप से अनेक पाईंट उन्होंने लिखे. मैं सबकुछ मंत्रमुग्ध सा देख रहा था. एक दो बार मैंने बोला भी कि सर मैं लिख देता हूं तो मजाकिया लहजे में बोले ’कि फिर मैं क्या करूंगा. मुझे भी कुछ काम करने दो.’ शहर की मोटी मोटी जानकारी, आयोजन से अतिथियों की जानकारी, आयोजन के विषय में जानकारी, बहुत सी बातें जो आयोजन में उनके काम आने वाली थीं. उन्होंने एक विस्तृत खाका तैयार कर लिया था.

मैं, ये सब देखकर आश्चर्यचकित था कि इस उम्र में भी काम के प्रति इतनी गंभीरता. जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया. तब समझ में आया कि क्यों खेल कमेन्ट्री के क्षेत्र में व अन्य राष्ट्रीय आयोजनों में उनकी तूती बोलती थी. उस दौर में कैसे उन्होंने अपने अन्दर कमेन्ट्री की कला को विकसित किया होगा. वह रेडियो का दौर था. रेडियो में बहुत प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी. हिन्दी में खेलों के आंखों देखा हाल सुनाने की कला आज उनके नाम के साथ जुडी है. आज तो सुविधाएं हैं, लेकिन उस दौर में चुनौतियां अधिक थीं. उन चुनौतियों के साथ हमेशा जूझते हुए ’ऑखों देखा हाल’ सुनाने की इस कला को जिस तरह उन्होंने आयाम दिया वह कभी नहीं भुलाया जा सकता. उनके समकालीन कमेन्टेटर भी उनकी इस कला के दीवाने थे.

जसदेव जी स्वयं कहते थे कि वह दौर ’ऑखों देखा हाल’ सुनाने वालों का स्वर्णिम दौर था. सब आपस में एक परिवार की तरह हुआ करते थे. तब फोन जैसी सुविधाएं नहीं थी तब पत्र व्यवहार से हम आपस में जुडे रहते थे. हम तो बस अपना काम पूरी मेहनत, ईमानदारी और शिद्दत से करते थे. आपस में ’हेल्दी कॉम्पीटीशन’ भी रहता था, जिस कारण अपने साथियों से बहुत कुछ सीखते थे. इस क्षेत्र में  लगभग 40 वर्षों तक निरंतर प्रयोगात्मक कार्य हुए. जिसकी वजह से हिन्दी में ’ऑखों देखा हाल’ सुनाना मानों देशवासियों की बात को कहना होता था. यह विद्या जसदेव जी की वजह से फलती फूलती गई. हर आयोजन उनके बिना खाली खाली सा प्रतीत होता था. इस विद्या को जितना उन्होंने ऊपर उठाया वह उनकी तपस्या रही है. उस दौर में जितने खिलाडी लोकप्रिय हुआ करते थे, उतने जसदेव जी भी. यह महान व्यक्ति का बनाया हुआ एक आभामंडल था, जिसने उन्हें कमेन्ट्री जगत का पर्याय निरूपित किया. खेलों को लोगों तक पहुंचानें में उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है.

मीडिया से बेबाक बातचीत के दौरान जसदेव जी के दिल को कचोटने वाली एक बात सामने आई. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के 48 आयोजनों में अपने बुलंद आवाज से सबको मंत्रमुग्ध करने वाले जसदेव जी इन आयोजनों के 50 संस्करण को पूरा नहीं कर सके. जिसके लिए उनके मन में मलाल था. वे चाहते थे कि वे इसका अर्धशतक पूरा करें. लेकिन यह न हो सका. अपनी आवाज से देशवासियों के दिल में राज करने वाले जसदेव जी की आवाज हमेशा हमारे कानों में गूंजती रहेगी. जब भी आयोजन आयेगें, उनकी आवाज हमेशा श्रोताओं को उनकी याद दिलाती रहेगी.  

(लेखक खेल समीक्षक व कमेंटेटर हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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