डियर जिंदगी: कितने कीमती हैं हम!
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डियर जिंदगी: कितने कीमती हैं हम!

अपनी कीमत जानने की बात केवल भौतिक अर्थ में नहीं समझी जानी चाहिए. यह हमारे अवचेतन मन से संवाद की दिशा में भी उतनी ही खास बात है.

डियर जिंदगी: कितने कीमती हैं हम!

इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप कितने बीएचके में रहते हैं. इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी महंगी कार से उतरते हैं, कितने महंगे अपार्टमेंट में रहते हैं. सारा अंतर बस इससे तय होता है कि आप अपने बारे में क्‍या नजरिया रखते हैं. आपकी अपने बारे में राय क्‍या है. आप क्‍या और कैसे सोचते हैं.

मैं यहां दूसरों के बारे में नहीं, आपकी अपनी राय के बारे में कह रहा हूं. देश के अलग-अलग हिस्‍सों में रहने के दौरान मैंने यह पाया कि आपकी अपने बारे में राय ही सबसे जरूरी चीज़ है. इतनी जरूरी कि इससे जरूरी दूसरी कोई बात ही नहीं है. इस बात को समझना बेहद जरूरी है, क्‍योंकि हम अक्‍सर अपने बारे मेंदूसरों की राय को जरूरत से अधिक महत्‍व देते हैं.

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हमारी सोच की सुइयां कल पर अटकी हैं. हम 'कल' के बीच उलझे लोग हैं. पहला जो बीत गया और दूसरा वह जो आने वाला है. वर्तमान फोकस से बहुत दूर है. इस फोकस की कमी के कारण हम कभी खुद को दीन-हीन तो कभी डरा हुआ महसूस करते रहते हैं. कभी जिंदगी में कुछ मिल गया तो उसे इत्‍तेफाक का नाम दे दिया. अगर कुछ छूट गया तो उसे दुर्घटना का नाम दे दिया. लेकिन जो हमने हासिल किया उसका क्‍या.

जिंदगी में कुछ भी यूं ही नहीं होता. जैसे आसमान केवल ध्रुव तारे के कारण नहीं चमकता. उसकी रोशनी में हजारों छोटे-छोटे तारों और जुगनुओं की भी हिस्‍सेदारी होती है. ठीक वैसे ही जिंदगी है. छोटे-बड़े और अनगित लोगों की मदद से बनी हुई इमारत. जाहिर है, इमारत है तो उसकी कुछ कीमत हो होगी ही. यह कीमत क्‍या है, कितनी है. यह जानना अपने अर्थ को समझने की दिशा में जरूरी कदम है. अपनी कीमत जानने की बात यहां केवल भौतिक अर्थ में नहीं समझी जानी चाहिए. यह हमारे अवचेतन मन से संवाद की दिशा में भी उतनी ही खास बात है.

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मैं जैसा हूं. मैं जो हूं. क्‍या मैं उससे प्रेम करता हूं. क्‍या मैं खुद से प्रेम करता हूं. जो खुद से प्रेम नहीं करते. जिनका खुद के प्रति स्‍नेह नहीं है, वह दूसरों के प्रति कैसे स्‍नेहिल हो सकते हैं. बंजर धरती पर फूल खिलाने के लिए पहले धरती को तैयार करते हैं या फूल को. जाहिर है, धरती को. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि धरती के मिजाज का मोल समझकर क्‍या करना है, यह तय किया जाता है.

एकदम यही बात अपने चित्‍त, मन और जीवन के बारे में है. पहले अपनी खूबियों को जानिए. अपने होने से प्रेम करिए. जो भी हैं, जैसे भी हैं. उससे स्‍नेह करिए. अपने मोल को अनमोल समझिए. तभी दूसरों को सरलता से समझ पाएंगे. सरल होने का यह अर्थ नहीं कि खुद को हमेशा 'हल्‍के' में लेते रहें. लंबे समय तक ऐसा करने का असर यह होता है कि आप अपनी राय बनाना भूल जाते हैं. बस, दूसरों के नजरिए के हिसाब से खुद को हांकने लगते हैं. जो अपने प्रति सबसे बड़ा अन्‍याय है. लोगों को नजरअंदाज करना सही है. उनकी बातों में खुद को नहीं उलझाना भी सही है. लेकिन इसके मायने यह नहीं है कि आप क्‍या हैं, आपका नजरिया क्‍या है. इस बात को आप एकदम बिसरा दें.

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जो अपने विचारों पर दृढ़ नहीं रहते. ऐसे लोग जिंदगी की नाव में बहते तो रहते हैं, लेकिन हमेशा तटों से दूर रहते हैं. इसलिए आप कितने मूल्‍यवान हैं. आपके विचार क्‍या हैं. यह मूल्‍यांकन जितनी सरलता, शीघ्रता से किया जाएगा, जीवन उतना ही सुखद होगा.

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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