मौन का अर्थ, चुप्पी नहीं है. चुप रह जाना नहीं है. क्रोध और गुस्से को भीतर दबाए रहना नहीं है. मौन का अर्थ है, अपने भीतर शांति रखना. अशांति का प्रवेश वर्जित कर देना.
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मौन क्या है. इसके बारे में हम बहुत सी बातें करते हैं. लेकिन अधिकांश बातें शोर में दब जाती हैं. क्योंकि हमें बचपन से बस बोलना सिखाया गया. मौन के मायने क्या हैं, इससे क्या हासिल किया जा सकता है. इसके बारे में संवाद ही नहीं है. जबकि इसका महत्व बोलने से कहीं ज्यादा है. हम समय के मोड़ पर वाचालता के मार्ग की ओर मुड़ चले हैं. जहां हर दूसरा विशेषज्ञ है. उसके पास सूचनाओं का भंडार है. हर कोई खुद को अधिक से अधिक ज्ञानवान साबित करना चाहता है. ज्ञानी साबित करने का श्रेष्ठ तरीका तो बताने से ही निकला है. इसलिए, हर कोई बताने में मशगूल है. कोई यह मौका नहीं छोड़ना चाहता. इसलिए, बस हम बताने की मशीन बनकर रह गए हैं.
सुनने की ओर कोई जाना नहीं चाहता. सोशल मीडिया ने इस शोर को दोगुना करने का काम किया है. जहां अपने और अपने परिवार के साथ बिताए जा रहे नितांत निजी पलों को सबसे पहले 'सोशल' करने की होड़ मची रहती है. हम भारतीय इस मामले में एकदम अनाड़ी साबित हो रहे हैं.
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हम भारतीय रिश्तों, परिवार के मामले में एक घने वृक्ष की तरह थे, जहां हर किसी के लिए प्रेम था. छाया थी. अब हम उस घने पेड़ की टहनियां हर दिन काटते जा रहे हैं. हम उस कहानी की तरह हैं, जो बचपन में हमें सुनाई गई थी कि कैसे एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा है, लोगों के मना करने के बाद भी उसे ही काट रहा है. हम बचपन में इस कथा पर हंसते थे. अब हंसते-हंसते यही काम खुद करने की गलती कर रहे हैं.
हम जिंदगी को बीच बाजार में नीलाम करने पर आमादा हैं. रिश्तों, संबंधों में ईमानदारी पर से हम हर दिन पीछे हटते जा रहे हैं. शिकायत के साथ. शोर के संग. हम अपने समय को उनसे, जिनका जिंदगी में सबसे कम दखल है, साझा करने के जुनून में जो असल हैं, उसने किनारा कर रहे हैं.
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यह कैसा जीवन है. हमारे जीवन के उद्देश्यों में यह शोर कैसे शामिल हो गया. बच्चे तेजी से आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं. परिवार के पास उनके लिए समय नहीं है. बच्चे जो बड़े हो रहे हैं, उनके लिए माता-पिता के पास समय नहीं है. वह अपनी दुनिया में किसी दूसरे का दखल नहीं चाहते. संवाद को वह दखल कैसे कहने लगे हैं, यह समझ से परे है.
बच्चों का मिजाज खुरदरा होता जा रहा है. उनमें चंचलता की जगह बेचैनी, सहज प्रेम की जगह 'चतुरता' लेती जा रही है. हमें लग रहा है, बच्चा स्मार्ट बन रहा है, जबकि हो उल्टा रहा है. बच्चा स्नेहिल होने की जगह क्रूरता की ओर बढ़ गया है. प्रेम गली से वह ऐसी गली की ओर भटक गया है, जिसमें हर ओर जंग चल रही है. खुद को आगे ले जाने की जंग. दूसरे से बेहतर साबित करने की जंग.
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मौन का अर्थ, चुप्पी नहीं है. चुप रह जाना नहीं है. क्रोध और गुस्से को भीतर दबाए रहना नहीं है. मौन का अर्थ है, अपने भीतर शांति रखना. अशांति का प्रवेश वर्जित कर देना. प्रिय, अप्रिय के बीच ऐसा संतुलन स्थापित करना जहां स्वभाव एक किस्म के सम पर आ जाए. वहां आकर मौन मिलता है.
मौन को समझा नहीं जा सकता, समझाया नहीं जा सकता. बस, महसूस किया जा सकता है. इसलिए इसे महसूस करना शुरू करिए. जिंदगी को अर्थ की गहरी नदी में बिना मौन की नौका के सहारे पार नहीं किया जा सकता. जीवन की तलाश मौन के बिना कभी पूरी नहीं हो सकती.
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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