डियर जिंदगी : कल्‍पना के ‘स्‍वेटर’ और रिश्‍तों में दरार
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डियर जिंदगी : कल्‍पना के ‘स्‍वेटर’ और रिश्‍तों में दरार

रिश्‍तों के जाले वक्‍त के साथ साफ होने चाहिए. उनकी उलझनों से अपनों को दुविधा देने की जगह रोशनी देनी चाहिए. लेकिन दुर्भाग्‍य से कई बार हमारे अपने ही हमारे जीवन में रोशनी की जगह अपनी परेशानी, दुविधा और नासमझी का अंधेरा डालने पर आमादा हो जाते हैं.

डियर जिंदगी : कल्‍पना के ‘स्‍वेटर’ और रिश्‍तों में दरार

हमें अनुमान लगाने और कल्‍पना के स्‍वेटर बुनने में सबसे अधिक मजा आता है. इन दोनों ही चीजों में बस अपनी ही दुनिया रची होती है. न तो किसी दूसरे की बात के लिए जगह होती है, न ही उसके विचार का महत्‍व. जो धारणा हम एक बार बना लेते हैं, बस उसी की बु‍नियाद पर कल्‍पना के स्‍वेटर बुनते जाते हैं.

मुस्‍कुराइए कि आप लखनऊ में हैं! इस अनुरोध के बीच लखनऊ में दाखिल होते ही यहां से डियर जिंदगी को कुछ खत मिले हैं. जिसमें संबंधों की बनावट, उनमें दरार और एक-दूसरे के प्रति अविश्‍वास की छाया है. लखनऊ के गोमती नगर से सुयश दीवान ने लिखा है कि वह जल्‍द ही शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. उनकी होने वाली पत्‍नी एक बड़ी कंपनी में काम करती हैं. दोनों के परिवार एक-दूसरे से परिचित हैं. सुयश और उनकी भावी जीवनसाथी को एक-दूसरे को समझने का दोनों परिववार से अवसर भी मिला. सुयश के मुकाबले उनकी पत्‍नी को अधिक वेतन और सुविधाएं हासिल हैं. सुयश का मानना है कि इससे दोनों के बीच कोई परेशानी नहीं है, दोनों इस मामले को अधिक महत्‍व नहीं देते. उन्‍हें लगता था कि इससे भला कैसी परेशानी. आखिर दोनों में से किसी को भी अधिक मिल रहा है तो आएगा तो उनके ही घर!

लेकिन शादी के दो महीने पहले इस मामले ने अचानक तूल पकड़ लिया. सुयश की बड़ी बहन जो ओडिशा से इस शादी के लिए आई हैं, उन्‍होंने अपनी ओर से इस मामले में पहल करते हुए सुयश को आने वाली परेशानियों के बारे में बताया. सुयश की बहन का दावा है कि यह रिश्‍ता बहुत लंबा नहीं चलने वाला, क्‍योंकि लड़की का अधिक वेतन पाना लड़के के ‘ईगो’ को आज नहीं तो कल ‘हर्ट’ करेगा ही. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि सुयश दूसरी बड़ी नौकरी जल्‍दी से हासिल करे, या कन्‍या इस नौकरी से अलग हो जाए.

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सुयश पर उनकी बहन का बचपन से बड़ा प्रभाव रहा है. इसलिए वह अपनी बहन जो कि प्रोफेसर भी हैं, उनकी सलाह को एकदम नजरअंदाज नहीं कर पा रहा है.

मैंने कहा, 'आप उससे बात तो करो! इसमें कोई रॉकेट साइंस जैसी चीज नहीं है. किसी एक को अधिक वेतन मिलने से तब तक परेशानी नहीं होती, जब तक दोनों का मन साफ रहे. कभी परेशानी होती थी, जो सामाजिक परिवेश ही ऐसा था. कामकाजी लड़कियां पसंद नहीं की जाती थीं. लेकिन अब तो तस्‍वीर बदल चुकी है. बिना बात किए आशंका का महल क्‍यों बना रहे हो.’     

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अगले ही दिन सुयश का फोन आया. उन्‍होंने अपने दिल की सारी बातें बयां कर दी. जैसी उम्‍मीद थी, उनकी जीवनसाथी ने इस तरह की आशंका को बेबुनियाद बताते हुए दीदी की बात सुनकर आगे बढ़़ जाने की सलाह दी.
लेकिन सुयश इसके बाद भी अपनी दीदी के ‘ज्ञान’ से बाहर नहीं आ पा रहे हैं. क्‍योंकि दीदी की सलाह हमेशा उनके लिए अनमोल रही है. मैंने उनसे अपनी बात खत्‍म करते हुए बस इतना ही पूछा, तुम्‍हारे जीजाजी क्‍या करते हैं. उत्‍तर में जीवन का सार छुपा है, ‘वह उसी कॉलेज में क्‍लर्क हैं, जहां दीदी प्रोफेसर हैं.’

मैंने सुयश से कहा, 'अगर तुम अब भी दीदी की सलाह का मूल कारण नहीं समझ पा रहे हो, तो तुमसे बात करना मुश्किल है. दीदी अपनी जिंदगी की उलझनों का बोझ तुम्‍हारे रिश्‍ते पर डालने की गलती कर रही हैं. उनको परेशानी आर्इ्, क्‍योंकि उनकी शादी दस बरस पहले हो गई थी. तब दुनिया कुछ और थी. अब कुछ और.'

रिश्‍तों के जाले वक्‍त के साथ साफ होने चाहिए. उनकी उलझनों से अपनों को दुविधा देने की जगह रोशनी देनी चाहिए. लेकिन दुर्भाग्‍य से कई बार हमारे अपने ही हमारे जीवन में रोशनी की जगह अपनी परेशानी, दुविधा और नासमझी का अंधेरा डालने पर आमादा हो जाते हैं.

मुझे खुशी है, सुयश के रिश्‍ते पर आए दुविधा के मकड़जाल साफ हो गए हैं. आप भी ऐसे जालों से जिंदगी को दूर रखें, यही कामना है.

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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