डियर जिंदगी : जिंदगी के दुश्‍मन हैं, सोचना और बस सोचते ही रहना!
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डियर जिंदगी : जिंदगी के दुश्‍मन हैं, सोचना और बस सोचते ही रहना!

हमारा सबसे बड़ा शुभचिंतक, अनुशासन, संघर्ष करने की क्षमता और निर्णय में स्‍पष्‍टता है. यह और बात है कि इन दिनों बच्‍चों, किशोर और युवाओं में सबसे अधिक कमी इन्‍हीं गुणों की है. यही तनाव के सबसे बड़े केंद्र हैं.

डियर जिंदगी : जिंदगी के दुश्‍मन हैं, सोचना और बस सोचते ही रहना!

आज 'डियर जिंदगी' आईआईएम, अहमदाबाद के एक प्रतिभाशाली छात्र के ई-मेल पर है. जिसे शेयर करते हुए उन्‍होंने लिखा कि जिंदगी में प्रतिभा, 'आइडिया' बैंक होने से अधिक मायने रखता है, अनुशासन, निर्णय लेने की क्षमता और मुश्‍किल हाल में टिके रहने की क्षमता. सारे अनुभव और बातें उनकी ही हैं, मेरे बस शब्‍द हैं!

वह जितने प्रतिभाशली हैं, उतने ही सबके प्रिय हैं. वह आईआईएम, अहमदाबाद के छात्र हैं. वह बेहद विनम्र और अध्‍ययनशील हैं. आर्थिक और राजनीति के मामलों में उनकी गिनती देश के चुने हुए चिंतकों में की जा सकती है. उसके बाद समस्‍या क्‍या है! समस्‍या केवल इतनी है कि वह सोचते हैं, खूब सोचते हैं और सोचते ही रहते हैं. उनके एमबीए के दिनों के बिजनेस आइडियाज को बाद के दिनों में कुछ मोबाइल और वेस्‍ट मैनेजमेंट कंपनियों तक ने अपनाया. वह टेक्‍नोलॉजी को मनुष्‍य के लिए सरल, सहज और मानवीय बनाने के पक्षधर और बुनियादी चिंतक हैं.

फिर समस्‍या क्‍या है. समस्‍या होनी भी क्‍यों चाहिए. समस्‍या इसलिए है क्‍योंकि वह सोचते बहुत हैं. सोचते ही रहते हैं. विचारों, ख्‍यालों की दुनिया में ही रहते हैं. एक के बाद दूसरा विचार और उसके बाद सौ, दो सौ. वह योजना और विचार (आइडिया) के धनी हैं. लेकिन यही बात उनके खिलाफ चली जाती है. क्‍योंकि वह एक विचार से दूसरे पर बहुत जल्‍दी चले जाते हैं. इतने जल्‍दी कि दूसरा वाला अगले ही दिन बासी लगने लगता है.

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इतने प्रतिभाशाली आईआईएम के छात्र होते हुए भी पिछले एक दशक से एक ही कंपनी का हिस्‍सा हैं. इसमें भी कोई परेशानी नहीं, क्‍योंकि एक ही कंपनी में काम करते रहने में कोई समस्‍या नहीं होनी चाहिए. समस्‍या केवल इतनी है कि वह अपनी जिम्‍मेदारियों और उन्‍नति के लिहाज से एकदम सामान्‍य स्‍तर पर हैं. उनकी प्रतिभा, उनके विचार और तकनीक की गहरी समझ का उनके करियर से कोई तालमेल नहीं है. यही बात अब उनकी परेशानी का कारण बन रही है. हालांकि उनके पास एक संपन्‍न आर्थिक आधार है, शायद यह आधार ही उनके करियर के आड़े आ गया. क्‍योंकि उन्‍हें अनुशासन और अपने दायरे को बड़ा करने की जगह खुद में सिमटे रहने को चुना. उनके पास हर बहाने के तर्क थे! जरूरत से अधिक तर्क जिंदगी को प्रेम, स्‍नेह और आशीर्वाद से रिक्‍त कर देते हैं.

वह दूसरों के लिए दीपक बने, हर किसी को रोशनी बख्‍शने के बाद भी खुद अपने जीवन में वह स्थिरता और अंधकार का अनुभव करते हैं. उन्‍होंने जो बताया, जितना मैं समझ पाया उसके अनुसार सबसे बड़ी समस्‍या अनुशासन की है. वह दूसरों के लिए तो अनुशासित रहे लेकिन अपने लिए नहीं. निजी जीवन, करियर और निर्णय लेने के बारे में वह हमेशा 'अभी टालते हैं' की रणनीति पर चलते रहे. धीरे-धीरे 'अभी नहीं' की उनकी नीति कभी नहीं में बदल गई.

प्रतिभाशाली होने जैसी बातों का कोई अर्थ नहीं है. अनुशासन, निर्णय की क्षमता और संघर्ष की चाहत ही सबसे खास हैं! इनका कोई मुकाबला नहीं है. यही जिंदगी की दशा, दिशा बदलने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं. जीवन में सबसे अधिक यही बात मायने रखती है कि हम कितनी शिद्दत से मुश्किल हालत में हौसला बनाए रखते हैं.

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आईआईएम का यह छात्र अनुशासन और निर्णय लेने की क्षमता के कारण ही उन राहों पर चलने से वंचित रहा, जो उसके साथ ही दूसरों के लिए भी 'टर्निंग प्‍वाइंट' हो सकती थीं.

कोई दस बरस पहले मुझे भोपाल में एक प्रमुख हिंदी अखबार के लिए काम करते हुए क्रिकेटर राहुल द्रविड के माता-पिता शरद और पुष्‍पा द्रविड़ से लंबी बातचीत का अवसर मिला. दोनों ने जो कहा, वह युवाओं के लिए बेहद खास है. उन्‍होंने कहा था, 'द्रविड़ की सबसे बड़ी खूबी उसका अनुशासन, एकाग्रता है. उसके निर्णय स्‍पष्‍ट हैं. उसे क्‍या चाहिए, क्या करना है, से कहीं अधिक यह पता है कि क्‍या नहीं करना है. यहां तक कि क्‍या नहीं सोचना है.'

मां पुष्‍पा ने बताया था कि द्रविड़ प्रतिभाशाली नहीं है, वह जो कुछ भी हैं, बस उसका अनुशासन और अपने चुने विचारों पर टिके रहने की क्षमता है.

हमारा सबसे बड़ा शुभचिंतक, अनुशासन, संघर्ष करने की क्षमता और निर्णय में स्‍पष्‍टता है. यह और बात है कि इन दिनों बच्‍चों, किशोर और युवाओं में सबसे अधिक कमी इन्‍हीं गुणों की है. यही तनाव के सबसे बड़े केंद्र हैं.

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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