डियर जिंदगी : साथ रहते हुए स्‍वतंत्र होना!
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डियर जिंदगी : साथ रहते हुए स्‍वतंत्र होना!

जहां भाव से अधिक ‘समझ’ जमा हो जाती है, वहां रिश्‍तों में दरार की गुंजाइश बढ़ जाती है. रिश्‍तों के नाम भले वही हों, लेकिन उनके मिजाज, व्‍यवहार में जो ‘ताजी’ हवा आई है, उसके अनुकूल स्‍वयं को तैयार करना होगा.

डियर जिंदगी : साथ रहते हुए स्‍वतंत्र होना!

दस साल कम नहीं होते. एक-दूसरे को जानने, समझने के लिए, पर्याप्‍त से कहीं अधिक होते हैं. लेकिन हर रिश्‍ते पर यह बात सही नहीं बैठती. खासकर तब जब आप प्रेम में हों! किसी के साथ जीवन की धूप को मिलजुल कर सहने की तैयारी में हों. अनुभव और अनुधा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. ‘डियर जिंदगी’ को लिखे एक ईमेल में अनुभव ने बहुत ही आदर, प्रेम के साथ इस बात को रेखांकित किया है.

अनुभव ने लिखा, 'हम कॉलेज के जमाने से दोस्‍त थे. समान पारिवारिक स्थिति से आते थे. सुपरिचित थे, इसलिए जब रिश्‍ते की बात चली तो कोई ‘स्‍पीड ब्रेकर’ मिला ही नहीं.' अनुभव-अनुधा पेशे से वकील हैं. तर्कशील, शिक्षित, समझदार हैं. ऐसे में शादी के दस बरस बाद ही रिश्‍ते में दरार थोड़ी चौंकाने वाली है. जहां भाव से अधिक ‘समझ’ जमा हो जाती है, वहां रिश्‍तों में दरार की गुंजाइश बढ़ जाती है. रिश्‍तों के नाम भले वही हों, लेकिन उनके मिजाज, व्‍यवहार में जो ‘ताजी’ हवा आई है, उसके अनुकूल स्‍वयं को तैयार करना होगा.

डियर जिंदगी : ‘आईना, मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे...’

अनुभव के पिता लखनऊ के बड़े बिजनेसमैन हैं. खानदानी जमींदार अलग से. वह बेटे के लिए आधुनिक बहू तो ले आते हैं, लेकिन वह, उनकी पत्‍नी और परिवार अपनी बहू से उस व्‍यवहार की उम्‍मीद करते हैं, जो अनुभव की मां करती रहीं हैं. यह कैसे संभव है. लेकिन हम सब यही तो करते हैं. शरीर तीस बरस का, लेकिन हम उससे व्‍यवहार चाहते हैं, साठ बरस पुराना.

आरंभ के कुछ बरस अनुभव पत्‍नी के साथ खड़े रहे. लेकिन परिवार का विरोध करते-करते, मां और पत्‍नी के बीच बढ़ते टकराव से उनका विश्‍वास अपनी जीवनसाथी के प्रति कमजोर पड़ने लगा. हमारा समाज जितना पिछले बीस बरस में बदला है, उतना पिछले कई दशक में नहीं बदला. महिला अधिकार को लेकर हम सजग हो रहे हैं. इंटरनेट की अब तेजी से हर जगह मौजूदगी से बदलती दुनिया हमसे बस दो मिनट की दूरी पर होती है.

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स्‍कूल, कॉलेज से निकलने वाले यह युवा, किशोर दुनिया से पहले के मुकाबले कहीं अधिक जुड़े हैं. लेकिन क्‍या उनके साथ घर, परिवार और समाज बदल रहा है. जैसे मेरी मां सोचती थीं, वैसा मेरी पत्‍नी तो शायद सोच भी लें, लेकिन क्‍या मुझे मेरी बेटी से पत्‍नी जैसी सोच की अपेक्षा होनी चाहिए! यह अपेक्षा ही सबसे अधिक दुख, घुटन का कारण है. ध्‍यान से देखिए, अनुभव का परिवार बहू से जिस आचरण की अपेक्षा रख रहा है, अपनी बेटी से वैसे व्‍यवहार की कल्‍पना से भी परेशान हो सकता है.

दस बरस तक आते-आते अनुभव और अनुधा ने महसूस किया कि उनके बीच अब स्‍नेह का वह बंधन नहीं रह गया. बस, साथ रहने के वादे, कसमों के साथ अकेले रह गए हैं. अनुधा का कहना है, 'अनुभव अपने परिवार को कहीं अधिक अच्‍छे से समझते थे. तो उन्‍हें पहले ही यह बात बतानी चाहिए थी कि परिवार को आधुनिक नहीं बल्कि ऐसी बहू चाहिए, जो उनके स्‍वर में हमेशा ‘हां’ मिला सके. अनुभव बहुत अच्‍छे व्‍यक्ति हैं, लेकिन वह अपने परिवार के मामले में ‘स्‍टैंड’ लेने में कमजोर रहे. अपने परिवार के लिए मुझे ‘चेंज’ करने पर उनका ध्‍यान इतना अधिक रहा कि मेरी शख्सियत ही बदल गई.'

डियर जिंदगी : परवरिश की परीक्षा!

'यह कैसा प्रेम, स्‍नेह और दुलार था, जहां सबकुछ मुझे ही करना था. मेरी अपनी पहचान कहां गई.' अनुधा ने अपनी बात खत्‍म करते हुए कहा, ‘मेरी मां और खुद अनुभव की मां ने जो किया था, उसकी अपेक्षा मुझसे की जा रही थी, यह कैसे संभव होता! रिश्‍ते को बचाए रखने के लिए कुछ त्‍याग करना और बात है, लेकिन अपनी पहचान, शख्सियत को मिटा देना एकदम अलग बात है. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी.’

डियर जिंदगी : कितने उदार हैं, हम!

इसमें किसी की कितनी गलती है, इसका फैसला कोई दूसरा नहीं कर सकता. क्‍योंकि ऐसा करते समय वह इसमें खुद को शामिल कर लेगा. लेकिन हां, इससे बहुत कुछ सीखा, समझा जा सकता है. शादी का अर्थ एक के लिए दूसरे का मिटना नहीं है. बल्कि साथ रहते हुए एक दूसरे की स्‍वतंत्रता का सम्‍मान करना है. ठीक वैसे ही जैसे वीणा के तार एक ही स्‍वर में धड़कते होते हुए भी अलग-अलग हैं.

एक-दूसरे से प्रेम करिए, लेकिन प्रेम को बंधन में मत बांधिए. बंधन जैसे-जैसे बढ़ेगा, असल में घुटन बढ़ेगी और घुटन के बीच कोई रिश्‍ता नहीं ‘खिल’ सकता!

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