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अतुल सिन्हा
रंगकर्म आपकी रग-रग में बसा है। अभिनय की प्रतिभा हरेक शख्स में होती है। थियेटर महज मनोरंजन का साधन नहीं, सामाजिक बदलाव का ज़रिया भी है। इन तमाम धारणाओं को हकीकत में बदलने की कारगर कोशिश करने वाले अरविंद गौड़ ने महज चंद घंटों में ये साबित कर दिया। तकरीबन 75 एकदम नए युवाओं के साथ केवल 5 घंटों का वक्त बिता कर अरविंद और उनकी नाट्य संस्था अस्मिता की टीम ने 15 नुक्कड़ नाटकों का मंचन करवा कर एक रिकॉर्ड बना दिया।
शनिवार की रात अचानक तय किए गए एक कार्यशाला में रविवार सुबह 11 बजे तक तकरीबन 75 ऐसे युवा जमा हो गए जिन्होंने कभी थियेटर नहीं किया, इससे पहले कभी कायदे से नाटकों का मंचन देखा तक नहीं और जिनके लिए थिएटर एक बेहद जटिल विधा है। लेकिन शाम साढ़े पांच बजे यही युवा कलाकारों में तब्दील हो चुके थे और दिल्ली के श्रीराम सेंटर में इन्होंने समसामयिक विषयों पर अलग-अलग ग्रुप्स में बंटकर 15 नाटक पेश कर दिए। नाटकों के थीम आपके मन को छू जाने वाले थे यानि वो मुद्दे जिनसे आप रोज़ाना रू ब रू होते हैं। मसलन – दिल्ली युनिवर्सिटी में दाखिले के लिए बेहद हाई कट ऑफ, अंधविश्वास, महिलाओं के साथ भेदभाव, गरीबी और अमीरी के बीच की कश्मकश, लड़कियों के प्रति उपेक्षा और नफरत की परंपरागत सोच, भ्रष्टाचार, करियर को लेकर बच्चों पर अभिभावकों का दबाव आदि। इन नए युवाओं ने चंद घंटों में ही अभिनय के तमाम हुनर सीख लिए, आवाज़ के उतार चढ़ाव से लेकर भाव भंगिमाएं तक और पात्रों को जीने की कला तक। जाहिर है, अभिनय की बारीकियां और पात्रों को खुद में उतार लेने की प्रतिभा तत्काल नहीं आ सकती, लेकिन इन चंद घंटों में अरविंद ने ये साबित ज़रूर कर दिया कि आप चाहें तो कुछ भी मुश्किल नहीं।
पिछले 21 सालों से अपने थिएटर के ज़रिये तमाम समसामयिक मुद्दों को मज़बूती से उठाने और थिएटर को एक आंदोलन बना देने वाले अरविंद गौड़ एक बेहद चर्चित निर्देशक हैं और अन्ना आंदोलन के दौरान उनकी टीम ने कला और अभिनय को एक हथियार बनाने में अहम भूमिका निभाई। फिलहाल अस्मिता थिएटर देश का इकलौती ऐसी संस्था है जो हर रोज़ कोई न कोई प्रस्तुति देती है, उसका थिएटर फेस्टिवल सबसे लंबा चलने वाला फेस्टिवल होता है और नुक्कड़ नाटकों के अलावा मंच पर भी अपनी बेहतरीन प्रस्तुतियों की बदौलत तमाम चर्चित नाटकों को अस्मिता ने नए आयाम दिए हैं।
मिसाल के तौर पर भीष्म साहनी का हानूश, राजेश कुमार का अम्बेडकर और गांधी, स्वदेश दीपक का कोर्ट मार्शल, महेश दतानी का फाइनल सॉल्यूशन, मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित मोटे राम का सत्याग्रह, मंटो की औरतें, रामकली, ए वुमन अलोन... और जाने कितने ऐसे मशहूर नाटक (अंधा युग, घासीराम कोतवाल आदि) हैं जिसे अस्मिता ने अरविंद गौड़ के निर्देशन में बेहद सधे हुए अंदाज़ में पेश किया है। रविवार (28 जून) को श्रीराम सेंटर में हुए कोर्ट मार्शल के दौरान खचाखच भरे ऑडिटोरियम में नाटक के एक एक दृश्य और संवाद ने दर्शकों को बांध लिया। चाहे कर्नल सूरत सिंह के तौर पर इश्वाक सिंह हों, कैप्टन रॉय के किरदार में बजरंग बली सिंह हों, मेजर पुरी के तौर पर शिल्पी मारवाह हों या फिर रामचंदर के किरदार में अमित रावल, करीब 90 मिनट के इस नाटक में हर किरदार ने सेना की कोर्ट मार्शल प्रक्रिया को हू-ब-हू उतारा और इसके ज़रिये समाज में फैले भेदभाव और दूसरी विकृतियों को मज़बूती से सामने लाने में कामयाब रहे।