जो कबिरा काशी मरै रामहि कौन निहोर
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जो कबिरा काशी मरै रामहि कौन निहोर

किस्सा मशहूर है, कि मगहर में जो मरता है उसे रौरव नरक मिलता है, काशी में मरने वाले को सीधे सरग का दरवाजा खुल जाता है. कबीर कहते हैं कि काशी में मर के स्वर्ग जाने में ईश्वर की क्या बड़ाई है, वो तो काशी का महात्म है.

जो कबिरा काशी मरै रामहि कौन निहोर

मेरे कई मित्र स्नेहवश अक्सर कहा करते हैं कि आप जैसे आदमी को दिल्ली, मुंबई में होना चाहिए यहां कहा घूमफिर के रीवा में घुसे रहते हैं. ऐसे मित्रों को आभार के साथ कबीर का ये दोहा सुना दिया करता हूं- जो कबिरा काशी मरै रामहि कौन निहोर..! कबीरदास मरने के लिए काशी छोंड़कर मगहर चले गये थे. मैं मुंबई, दिल्ली, भोपाल छोड़कर रीवा आ गया. किस्सा मशहूर है, कि मगहर में जो मरता है उसे रौरव नरक मिलता है, काशी में मरने वाले को सीधे सरग का दरवाजा खुल जाता है. कबीर कहते हैं कि काशी में मर के स्वर्ग जाने में ईश्वर की क्या बड़ाई है, वो तो काशी का महात्म है. इसीलिए देशभर के पापी चाहते हैं कि उनके प्राण यहीं छूटें. मगहर में मरने से स्वर्ग मिले तब तो ईश्वर की महत्ता है. 

अपने देश के महानगर कवि,कलाकारों,मीडियाकरों के लिए काशी ही है. कस्बे से निकलकर दिल्ली पहुंचे सीधे राष्ट्रीय हो गए. दिल्ली की छींक भी राष्ट्रीय प्रभाव डालती है. चार साल पहले इन्हीं दिनों निर्भया कांड हुआ, देश हिल गया. हमारे शहर की भी किट्टी पार्टी वाली मैडमों ने कैंडल जुलूस निकाला था. निर्भया जैसी कितनी ही बालिकाएं आए दिन दुराचार की शिकार होती हैं उनके लिए कैंडल जुलूस नहीं निकलते. 

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अभी एक अखबार पढ़ रहा था कि अपने मध्यप्रदेश में 11 प्रतिशत की ग्रोथरेट से दुराचार बढ़ रहे हैं. महिलाओं के लिए भारत विश्व का सबसे खतरनाक देश है. अपराधों का भी ग्रोथरेट से वास्ता होता है. बाजार और अपराध दोनों की ग्रोथरेट रेलपटरी की भांति समानांतर चलती है.

काशी और मगहर की परंपरा आजादी के बाद और भी पुख्ता होती गई. गांव मगहर हैं और शहर काशी. इसीलिए गांव का हर समर्थवान शहर में चैन से मरना चाहता है. गांव वीरान होते जा रहे हैं. अब बच रहे हैं खेती से निष्कासित हो चुके बैल या कि वो किसान जिनका कोई घनीघोरी नहीं. आजादी के बाद गांधी ने कहा सुराज मगहर पहुंचे तभी तो असली आजादी का स्वाद मिलेगा. नेहरू ने सुराज को शहरों के परकोटे में घेर दिया. आर्थिक हदबंदी तो हुई ही साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्रीकरण हो गया. 

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गांव अर्थव्यवस्था भर के ही कच्चामाल नहीं हैं, वे अब राजनीति,साहित्य,संस्कृति के लिए भी ऐसा हैं. गांवों की दुर्दशा कथा,कविताओं,नाटकों,फिल्मों में परोसने से वाहवाही भी मिलती है दाम और इनाम भी. हमारे देश का प्रभुवर्ग काशी और मगहर की परंपरा को और भी संपुष्ट बनाए रखना चाहता है. काशी में रहने का सुख तभी तक सुख है जबतक नरक भोगने वालों के लिए मगहर साबुत बचा रहे.....

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