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एडिलेड टेस्ट भारत भले ही हार गया लेकिन इस टेस्ट ने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को कई अच्छे संदेश भी मिले। कई साल के बाद टेस्ट मैच में जिस तरह से भारत ने लड़ाई लड़ी वह काबिले-तारीफ है। टेस्ट मैच में भारत अक्सर बड़े स्कोर के सामने घुटने टेकता नजर आता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
यह ऐसे वक्त में और भी अच्छा है जब वर्ल्ड कप के शुरू होने में सिर्फ चंद महीने बचे हो। इस टेस्ट में सबसे बड़े योद्धा के रूप में नजर आए पहली बार टेस्ट में कप्तानी की बागडोर संभाल रहे क्रिकेटर विराट कोहली। विराट ने दोनों इनिंग में 'विराट' पारी खेली। दोनों पारी में सेंचुरी ठोंकी। टेस्ट में उनकी कप्तानी का यह पहला मौका था जिसपर वह उम्मीद से ज्यादा खरे उतरे। सबको यह डर सता रहा था कि विराट टेस्ट में बतौर कप्तान वाली चुनौती को क्या निभा पाएंगे? लेकिन विराट ने यह साबित कर दिखाया कि वह वनडे ही नहीं टेस्ट में भी बेहतर खेलने का माद्दा रखते हैं।
विराट की इन दोनों पारियों को आप गौर से देखें। विकेट भले ही गिरते रहे हो। लक्ष्य भले ही पहाड़ सरीखा हो लेकिन विराट का बल्ला अपने अंदाज में चलता जा रहा था। इस लय में आत्मविश्वास की झलक भी दिखी जिसके बलबूते विराट खुद को टेस्ट का 'शेर' साबित करने में जुटे थे। विराट के इन दोनों इनिंग में दबाव को उन्होंने दरकिनार कर अपना आक्रामक खेल जारी रखा।
कोहली ने एडिलेड टेस्ट की पहली और दूसरी पारी में भी शतक लगाया। इस टेस्ट मैच में 256 रन बनाकर वे बतौर कप्तान डेब्यू मैच में सर्वाधिक रन बनाने वाले बैट्समैन बने। उन्होंने 46 साल पुराना वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। बतौर कप्तान डेब्यू मैच में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी थे न्यूजीलैंड के ग्राहम डाउलिंग। उन्होंने 22 फरवरी 1968 को भारत के खिलाफ क्राइस्टचर्च टेस्ट मैच में 244 रन (239+5) बनाए थे। कोहली ने इस कीर्तिमान को भी अपने नाम कर लिया।
रिकार्ड की झोली में रिकॉर्ड डालने का यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। टेस्ट मैच की दोनों पारियों में शतक लगाने वाले विराट भारत के इकलौते कप्तान बने। वैसे तो सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ टेस्ट कप्तान रहे हैं, लेकिन विराट ने धमाकेदार डेब्यू से इन सभी को पीछे छोड़ दिया । गांगुली ने बतौर कप्तान डेब्यू पर 84 रन की पारी खेली थी, जबकि धोनी हाफ सेंचुरी भी नहीं बना सके थे।
बतौर कप्तान डेब्यू टेस्ट की दोनों पारियों में शतक लगाने वाले वे दुनिया के महज दूसरे बल्लेबाज हैं। उनसे पहले यह कारनामा ग्रेग चैपल ने किया था। चैपल ने 28 नवंबर 1975 को ब्रिसबेन में हुए टेस्ट मैच में पहली बार कप्तानी संभाली थी। उन्होंने वेस्ट इंडीज के खिलाफ मुकाबले में क्रमशः 123 व 109 (नाट आउट) रन की पारियां खेली थीं।
विराट अब भारत के चौथे ऐसे कप्तान बन गए हैं, जिन्होंने कप्तान के तौर पर अपने पहले ही टेस्ट में शतक बनाया। विजय हजारे, सुनील गावस्कर और दिलीप वेंगसरकर के बाद कोहली इस उपलब्धि तक पहुंचने वाले चौथे भारतीय कप्तान हैं।
एडिलेड टेस्ट में कोहली ने अपनी कप्तानी से सबको प्रभावित किया । विराट कोहली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि कप्तानी के दबाव ने उनकी बल्लेबाजी को प्रभावित नहीं किया। वह कप्तान के साथ एक बेहतर बल्लेबाज के रूप में भी निखरकर सामने आए हैं। अबतक उनके साथ वन-डे प्लेयर का ही टैग जुड़ा हुआ था लेकिन एडिलेड में उन्होंने टेस्ट टीम के लिए खुद को लंबी रेस का घोड़ा साबित कर दिया है। पहली बार कप्तानी करने के बावजूद उनके चेहरे पर कोई दबाव नहीं दिखा। उनके इन पारियों को क्रिकेट के हर दिग्गज और जानकारों ने सराहा है।
कोहली के खेल में निरंतरता है। अगर वह पिच पर टिक जाते हैं तो फिर बड़ा स्कोर करने में कामयाब होते हैं। इसलिए भारतीय क्रिकेट के दिग्गज उन्हें 'मोस्ट कंसिस्टेंट बैट्समैन' मानते हैं। वह टिककर खेलना जाते हैं और काफी देर तक खेल सकते हैं। कोहली जब बड़ी पारी खेलते हैं तो काफी समय बीत जाने के बाद भी उनका जोश कम नहीं होता। वह ताबड़तोड़ उसी अंदाज में खेलते हैं। यही वजह है कि कोहली आज की तारीख में भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे बड़े मैच विनर कहे जाते है जिसे हर हालात में मैच जिताना आता है। वह बड़े शॉट खेलते हैं। बड़ी पारी खेलकर बड़ा स्कोर बनाते हैं जो टीम के लिए जीत की बुनियाद रखता है।
कोहली के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि वह पेस अटैक के साथ स्पिनर को भी बखूबी खेलते हैं। तेज गेंदबाजों की बखिया उधेड़ने में उनका कोई सानी नहीं है। कोहली 'कैरेबियन स्टाइल' में खेलते है। उनके खेलने की आक्रामकता से गेंदबाज तनाव में आ जाता है जिसका कोहली जमकर फायदा उठाते है। किसी भी गेंदबाज का लय वह बहुत जल्दी बिगाड़कर उस अमुक गेंदबाज पर हावी हो जाते हैं। वह थकते नहीं है और लंबे समय तक अपनी इनिंग को खेलते है जिससे टीम का स्कोर ताबड़तोड़ बढ़ता चला जाता है।
विराट क्रिकेट के हर शॉट को बखूबी खेलते है। उनके लिए बाउंसी ट्रैक हो या सपाट विकेट , वह हर पिच पर बल्लेबाजी कर लेते है। विराट जब शॉट खेलते है तब उनकी टाइमिंग लाजबाव होती है। शॉट्स खेलने के दौरान उनकी टाइमिंग और कंट्रोल का तालमेल शानदार होता है। वह तेज बॉल को भी जल्दी आकलन कर अपने मनमाफिक शॉट लगाते है।
सचिन के बाद यकीनन भारत की टेस्ट टीम को ऐसे बल्लेबाज की कमी खल रही थी जो हर परिस्थितियों में खुद को ढालने का माद्दा रखता हो। विराट जिस अंदाज में खेल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि यह कमी पूरी होती नजर आ रही है। फिलहाल विराट एक बार फिर फॉर्म में लौट चुके हैं। उम्मीद है उनका फॉर्म लंबे समय तक बना रहेगा क्योंकि यह सबकों उम्मीद है कि विराट अगले साल होनेवाले वर्ल्ड कप में भी भारत की जीत के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं।