श्रद्धांजलि कुलदीप नैयर: कलम के बिकने से भी खतरनाक है, उसका किसी के हाथों में खेल जाना
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श्रद्धांजलि कुलदीप नैयर: कलम के बिकने से भी खतरनाक है, उसका किसी के हाथों में खेल जाना

हमें बराबर देखना चाहिए कि हमारा या हमारी कलम का कोई इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है. अगर कलम जनता और लोकतंत्र के लिए है तब तो ठीक है, लेकिन अगर वह किसी की आरती का दीया या किसी की पीठ का खंजर है तो बहुत खतरनाक है.

श्रद्धांजलि कुलदीप नैयर: कलम के बिकने से भी खतरनाक है, उसका किसी के हाथों में खेल जाना

कुलदीप नैयर से आखिरी मुलाकात इस साल 25 जून को हुई. उस दिन वह सैफुद्दीन सोज की किताब कश्मीर के विमोचन समारोह में शिरकत करने आए थे. मैं पिछले 15 साल से उन्हें दिल्ली में होने वाले कार्यक्रमों में देखता रहा हूं, इस लिहाज से देखा जाए तो वे फिट ही थे.

उस कार्यक्रम में उन्होंने एक जबरदस्त किस्सा सुनाया और किस्से के अंत में कहा, 'मैं यह बात यह इसलिए साझा करना चाहता हूं ताकि यह मेरे साथ ही दफ्न न हो जाए.' यानी उन्हें अंदाजा था कि अब उनकी यात्रा का पड़ाव आने वाला है.

बहरहाल किसी जमाने में लाल बहादुर शास्त्री के प्रेस सलाहकार रहे नैयर ने किस्सा सुनाया: ‘‘भारत और चीन का युद्ध खत्म हो चुका था और पंडित नेहरू दुनिया से विदा हो चुके थे. शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री थे. शास्त्री जी ने मुझसे कहा कि अगर चीन के साथ युद्ध में पाकिस्तान हमारी मदद करता और उसके बाद वह हमसे कश्मीर मांगता, तो हम मना नहीं कर पाते. अच्छा रहा पाकिस्तान ने हमारी मदद नहीं की.’’ किस्सा सुनाने के बाद नैयर ने कहा: ‘‘आप लोगों को इसलिए सुना दिया कि यह बातें मेरे साथ ही खत्म न हो जाएं.’’

जब नैयर यह किस्सा सुना रहे थे तब मंच पर सोज के अलावा अरुण शौरी भी मौजूद थे और श्रोताओं में जयराम रमेश सहित कई प्रतिष्ठित लोग बैठे थे.

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नैयर देश के ख्यात पत्रकार तो थे ही, साथ ही लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े प्रसंगों के सबसे आधिकारिक जानकार थे. उन्हें पहली बार मैंने उनकी पुस्तक ‘स्कूप’ के हिंदी संस्करण के विमोचन के मौके पर एक दशक पहले देखा था. उस कार्यक्रम में वेद प्रताप वैदिक और मुरली मनोहर जोशी भी मौजूद थे. कार्यक्रम में वैदिक जी ने अपने स्वभाव के मुताबिक अतिकथन कहने में कोई संकोच नहीं किया. उन्होंने कहा कि नैयर अंग्रेजी में लिखते थे, इसलिए उन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते थे. बाद में वैदिक के कहने पर नैयर ने हिंदी के अखबारों में भी कॉलम लिखे, तब लोग उन्हें जानने लगे. बाद में कारगिल युद्ध और दूसरे विषयों पर भी वैदिक जी ने लंबी-लंबी बातें कहीं.

जब जोशी जी का नंबर आया तो उन्होंने वैदिक जी को चुटकी ली, 'अभी तो इन्होंने बिल क्लिंटन से दोस्ती के बारे में तो बताया ही नहीं.’’ इस पर वैदिक जी काफी नाराज हो गए. लेकिन इस पूरे प्रकरण में वह लेखक जिसकी किताब का विमोचन हो रहा था, यानी कुलदीप नैयर खामोशी से बैठे रहे.

नैयर जब भी बोलते थे तो बहुत ही नपे तुले शब्दों में अपनी बात रखते थे. वह अगर मजाक भी करते थे जो उसमें पूरी गंभीरता रहती थी. उस पुस्तक विमोचन के दौरान नैयर ने अपनी स्कूप किताब से लाल बहादुर शास्त्री के बारे में जो अंश सुनाया. वह शास्त्री जी की आम जनमानस में व्याप्त छवि से कुछ अलग है. उनकी छवि सामान्य तौर पर घनघोर ईमानदार व्यक्ति की है. लेकिन नैयर ने बताया कि शास्त्री जी कौटिल्य भी थे.

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उन्होंने पूरा प्रसंग सुनाया कि किस तरह शास्त्री जी ने कुलदीप नैयर के माध्यम से एक ऐसी खबर प्लांट कराई, जिससे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल उनके प्रतिद्वंद्वी मोरारजी देसाई पीछे रह गए और शास्त्री जी को प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली. इस प्रकरण को उनकी किताब स्कूप में विस्तार से पढ़ा जा सकता है.

लेकिन पत्रकार बिरादरी नैयर के उस आत्मस्वीकार से सबक ले सकती है, जिसमें वह कहते हैं कि उन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं लग सका कि शास्त्री जी उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. नैयर ने लिखा कि उसके बाद देसाई उनसे इतने ज्यादा नाराज हुए कि उनसे कभी बात नहीं की. नैयर को भी इस बात का अफसोस रहा कि वह क्यों इस तरह इस्तेमाल हो गए.

आज जब 95 वर्ष की उम्र में कुलदीप नैयर विदा हो गए हैं और उनके साथ भारत की आधुनिक पत्रकारिता का एक अध्याय पूरा हो गया है, तो उनके इस सबक से सबक लेना हम सबके लिए बड़े काम का होगा. हमें बराबर देखना चाहिए कि हमारा या हमारी कलम का कोई इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है. अगर कलम जनता और लोकतंत्र के लिए है तब तो ठीक है, लेकिन अगर वह किसी की आरती का दीया या किसी की पीठ का खंजर है तो बहुत खतरनाक है.

श्रद्धांजलि कुलदीप नैयर...

(लेखक जी न्यूज डिजिटल में ओपिनियन एडिटर हैं)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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